मदनगंज-किशनगढ । आचार्य विमद सागर जी महाराज ने सिटी रोड स्थित जैन भवन मे सोमवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये कहा कि किसी श्रावक या साधु को कम ज्ञान होता है अपितु उनकी श्रद्धा भक्ति अज्ञान अवस्था मे भी बहुत बडी हुआ करती है। ज्ञानी आदमी ज्ञान के अभिमान कणय मे आकर धर्म एवं भगवान की पूजन पाठ करता है लेकिन एक अज्ञानी द्वारा बहुत दिव्य ज्ञान ज्योती प्रकट हो जाती है वह अल्प समय मे बडा ज्ञान प्राप्त कर लेता है। आदमी का ज्यादा ज्ञान संसार का कारण होता है और अज्ञान अवस्था मे मुनिराज का ज्ञान वैराग्य का कारण होता है आदमी का ज्ञान घमण्ड, अहंकार, अभिमान, लालच, लोभ पूर्वक होता है। लेकिन मुनि महाराज का ज्ञान वैराग्य पूर्वक निस्वार्थ पूर्वक ज्ञान है वैराग्य एवं ज्ञान देता है। उन्होंने कहा कि जिनागम मे पांच प्रकार के कहे गये पहला मतिज्ञान दुसरा श्रुतज्ञान तीसरा अवधिज्ञान चौथा मननर्पय ज्ञान केवल ज्ञान होता है। उन्होने कहा कि श्रावक को पांच मे से दो ज्ञान होतेे है मति ज्ञान और श्रुतज्ञान दो ज्ञान प्रत्यक्ष और तीन ज्ञान परोक्ष होते है। चौथा नम्बर ज्ञान सामान्य है और पांचवा ज्ञान विशेष है चार ज्ञान अशुद्ध है जीव का एक केवल ज्ञान शुद्ध है। वह जलता हुआ दिपक के समान है जीवन मे कभी आदमी गुरू भगवान की पूजन भगवान की भक्ति कमी नही कर सकता है सात तत्वो पर श्रदान करने वाला ही गुरू भगवान की भक्ति कर सकता है ऐसे आदमी ही संसार सागर मे तर जाते है एवं भवसागर से पार हो जाते है वैसे श्रावक का जीवन एक समस्या है और मुनिराज का जीवन व्रत उपवास तप संयम चारित्र धर्म सबसे बडी तपस्या है। पहले किये नखरे बाद मे जाकर अखरे आदमी जीवन मे चिंता करता है जो चिता समान होती है। साधु का जीवन आत्म चिंतन मनन होता है । धर्म सभा मे मंगलाचरण नुपुर जैन व दीप प्रज्जवलन व पाद प्रक्षालन बाबुलाल विमल कुमार वैद ने किया। मंच संचालन संदीप पापडीवाल ने किया।
सन्मित सागर समाधि दिवस आज
आचार्य सन्मित सागर समाधि दिवस पर आज आदिनाथ कॉलोनी मे सुबह 11 बजे नमोकार महा मण्डल विधान मे आचार्य विमद सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य मे आयोजित किया जायेगा।
-राजकुमार शर्मा