संस्कृत-जनपद-सम्मेलनों का आयोजन करने का निर्णय

press vartaसंस्कृत भारत की सभ्यता और सांस्कृतिक-प्रवाह की भाषा है। भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान हेतु यह आवश्यक है कि संस्कृत भाषा जन-जन तक पहुँचे और भारतवासी संस्कृत का अध्ययन करके संस्कृत-शास्त्रों में निहित विशाल ज्ञान-भंडार का उपयोग अपने और राष्ट्र के उत्थान के लिए करें। इस हेतु जनसाधारण को संस्कृत से जोड़ने के लिये उसका संस्कृत के विराट स्वरुप से परिचय करवाना अत्यावश्यक है, साथ ही समाज में संस्कृत को बढ़ावा देने के लिये अधिकाधिक लोगों को संगंठित करने की भी आवश्यकता है।
इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए संस्कृत-भारती संगठन ने इस वर्ष पूरे देश में प्रत्येक जिला-केन्द्र पर संस्कृत-जनपद-सम्मेलनों का आयोजन करने का निर्णय किया है। इसी क्र्रम में संस्कृत-भारती और अन्य सहयोगी संस्थाओं द्वारा अजमेर जिले के संस्कृत-जनपद-सम्मेलन का आयोजन दिनांक 30 नवम्बर 2014 को अजमेर के अग्रसेन विद्यालय में किया जा रहा है । यह कार्यक्रम प्रातः 10 बजे से लेकर सायं 5 बजे तक रहेगा। जनपद-सम्मेलन में संस्कृतानुरागियों को संबोधित करने के लिये केरल से संस्कृत-भारती के राष्ट्रीय महामंत्री (ऑल इण्डिया जनरल सेक्रेटरी) श्री नन्दकुमार आयेंगें ।
सम्मेलन चार सत्रों में पूरा होगा प्रथम सत्र में उद्घाटन समारोह जिसका समय 10 बजे से 11ः30 बजे प्रातः रहेगा। स्वामी श्री हंसाराम जी महाराज (हरिसेवा धाम, भीलवाड़ा), महंत श्री स्वरूपदास जी (ईश्वर मनोहर उदासीन आश्रम, अजयनगर) आर्शीवाद प्राप्त होगा और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय श्री वासुदेव जी देवनानी (शिक्षा राज्यमंत्री, राजस्थान) होगें व उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता माननीय श्री कैलाश जी सोडानी, कुलपति म.द.स.वि.वि., अजमेर करेगें।
द्वितीय सत्र 11ः45 बजे से 01ः15 तक रहेगा। जिसमें विचार गोष्ठी का आयोजन किया जायेगा। संस्कृत शिक्षा, संस्कृत सर्वेषाम् व आधुनिक भाषा संस्कृत भाषा विषयों पर विद्वानों द्वारा विचार व्यक्त किये जायेगें। इसकी अध्यक्षता डॉ. बद्री प्रसाद पंचोली, शिक्षाविद, अजमेर व महन्त श्री श्यामसुन्दरशरण देवाचार्य जी महाराजनृसिंह मंदिर होलीदड़ा, अजमेर का आर्शीवाद रहेगा।
तृतीय सत्र 2ः15 से 3ः15 तक रहेगा जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजन किया जायेगा। इसमें शिक्षाप्रद नाटक, संस्कृत गीत व सांस्कृतिक नृत्यों के साथ संस्कृतमय प्रस्तुतियों का विहंगम दृश्य रहेगा। इस सत्र की अध्यक्षता श्री डॉ. बृजेश माथुर (से.नि. अधीक्षक ज.ला.ने.चि.कि., अजमेर) करेगें। संत श्री पाठक जी महाराज, चित्रकूट धाम पुष्कर आर्शीवचन हेतु उपस्थित रहेंगे।
चतुर्थ सत्र 3ः30 से 5 बजे तक समारोप समारोह का आयोजन किया जायेगा। जिसमें अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरू निम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर श्री श्रीजी महाराज, श्री दिव्य मोरारी बापू, दिव्य मोरारी बापू धाम गनाहेड़ा पुष्कर का आर्शीवाद प्राप्त होगा। मुख्य अतिथि माननीया श्रीमती अनिता भदेल (महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री राजस्थान) व अध्यक्षता माननीय श्री पुरूषोत्तम परांजपे (क्षैत्रीय संघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) करेगें।
सम्मेलन में मंचीय कार्यक्रमों के अतिरिक्त प्रांगण में विभिन्न प्रकार की संस्कृत प्रदर्शिनियाँ व साहित्य, पत्रिका आदि की स्टॉल लगाई जायेगी। प्रांगण में एक विशाल संस्कृत वस्तु-प्रदर्शिनी लगाई जायेगी, जहाँ पाँच सौ से अधिक नित्योपयोगी वस्तुओं का उनके संस्कृत-नाम सहित प्रदर्शन किया जाएगा। वहीं पर एक विज्ञान प्रदर्शिनी का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें विभिन्न तथ्यों और चित्रों के माध्यम से संस्कृत-शास्त्रोंमें निहित वैज्ञानिक-तत्वों का परिचय करवाया जाएगा। प्रांगण में ही राजस्थान-गौरव-प्रदर्शिनी भी लगाई जाएगी, जिसमें राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का प्रदर्शन किया जाएगा। विभिन्न संस्कृत क्रीडाओं,़ संस्कृत संवादशाला, संस्कृत चलचित्रों का प्रदर्शन भी प्रांगण में किया जाएगा। इस प्रकार जनपद सम्मेलन के माध्यम से जनसाधारण द्वारा संस्कृत भाषा के भव्य स्वरुप का दर्शन किया जा सकेगा। आज इस प्रेस वार्ता में अध्यक्ष संस्कृत भारती चित्तौड़ प्रांत कृष्ण कुमार गौड़, प्रांत पत्राचार प्रमुख विष्णु शरण शर्मा, प्रांत कार्यगण सदस्य मधुसुदन शर्मा, प्रचार प्रमुख कंवल प्रकाश किशनानी उपस्थित थे।

संस्कृत-भारती का परिचय
संस्कृत ही व्यक्ति एवं राष्ट्र के चहुमुँखी विकास की आधारशिला हैं। अतः संस्कृत के पुनरूज्जीवन से ही भारत राष्ट्र का पुनरूत्थान संभव है। इस विचार को अपना ध्येय वाक्य बनाकर समाज में कार्यरत संस्कृत भारती का उदय लगभग 34 वर्ष पूर्व जून 1981 में दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य की राजधानी बेंगलूरू में संस्कृत सम्भाषण आंदोलन के रूप में हुआ। संस्कृत शास्त्र भाषा के साथ साथ जनजन की व्यवहार भाषा बनें यही इसका प्रमुख लक्ष्य हैं। अतः संस्कृत का गुणगान करने की अपेक्षा संस्कृत द्वारा ही कार्य करते हुये जनसाधारण में संस्कृत सम्भाषण की योग्यता का विकास करना ही इसका आधारभूत कार्य रहा हैं। इसके लिये स्थान स्थान पर दस दिवसीय निःशुल्क संस्कृत सम्भाषण शिविरों का आयोजना करना ही विगत 34 वर्षों से संस्कृत भारती का प्रमुख कार्यक्रम रहा हैं।
सम्भाषण शिविरों के आयोजना के अलावा संस्कृत भारती के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं –
1. पत्राचार के माध्यम से लोगों को घर बैठे संस्कृत के पठन पाठन की व्यवस्था करना।
2. समाज में संस्कृत का प्रचार प्रसार करने के लिये कार्यकर्ताओं को प्रश्क्षिित करना।
3. संस्कृत-शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
4. संस्कृत के पठन-पाठन के लिए स्वाध्याय सामाग्री जैसे अभ्यास पुस्तके, सी.डी., डी.वी.डी, ऑडियों कैसेट्स आदि का प्रकाशन व विनूतन संस्कृत पुस्तकों का प्रकाशन।
5. प्राचीन शास्त्र परम्परा एवं शास्त्रों की रक्षा।
6. शिक्षा नीति में संस्कृत के स्थान रक्षण एवं संवर्धन के उपायों पर चिंतन एवं तदुनुगुण कार्य-योजना।
7. संस्कृत-साहित्य में निहित वैज्ञानिक तत्वों का अनुसंधान करके उनका प्रकाशन व संस्कृत विज्ञान प्रदर्शिनियों का आयोजन।
8. सम्भाषण संदेश नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन।
9. धर्म संस्कृति के विषय में जागरण एवं समाज में संस्कृत के माध्यम से समरसता लाने का प्रयास करना।
10. संस्कृत का गृह भाषा के रूप में विकास करते हुऐ संस्कृत मातृभाषी परम्परा का पुनरूज्जीवन।
इत्यादि सब कार्यो व योजनाओं को मूर्तरूप प्रदान करते हुए संस्कृत भारती अपने विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से विगत 34 वर्षो से समाज में कार्यरत हैं। संस्कृत भारती के सैकडों कार्यकर्ता निःस्वार्थ भावना से इस राष्ट्र निर्माण पुण्य कार्यो में लगे हुए हैं। संगठन विस्तार के लिये 270 पूर्णकालिक कार्यकर्ता अपना पूर्ण समय संस्कृत माता की सेवा में लगा रहें हैं। कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम के परिणाम स्वरूप संस्कृत भारती का कार्य भारत संहित विश्व के 38 देशों में फेल चुका हैं। भारत के सभी राज्यों में संस्कृत भारती का कार्य अनवरत रूप से जारी हैं। अमेरिका, कनाड़ा, ब्रिटेन, जापान, गल्फ देशों में व अन्य राष्ट्रों में संस्कृत भारती का नियत कार्य चल रहा हैं। सम्भाषण शिविरों के माध्यम से अब तक 1 करोड़ 10 लाख से अधिक लोग संस्कृत सम्भाषण सीख चुके हैं व 10 हजार से अधिक संस्कृत गृहम् (ऐसे घर जिनकी बोल चाल की भाषा संस्कृत) का निर्माण हो चुका हैं, भारत में चार गांवों को संस्कृत गांव बनाया जा चुका हैं। जहां पर सभी ग्राम वासी संस्कृत में ही बात चीत करते हैं। वे इस प्रकार हैं:-
मुत्तुरू-कर्नाटक, झिरी-मध्यप्रदेश, मोहद-मध्यप्रदेश, भंतोला-उत्तराखण्ड। संस्कृत भारती के प्रयासों के परिणाम स्वरूप संस्कृत भाषा को उत्तराखण्ड द्वितीय राज्य भाषा घोषित किया जा चुका हैं।

इस प्रकार संस्कृत भारतीय का संस्कृत भाषा के पुनरूत्थान का कार्य एक बहुत बडे आंदोलन का रूप ले चुका हैं। संस्कृत को पुनः गौरवपूर्ण स्थान दिलवाने व भारत का सर्वांगीण विकास करने का लक्ष्य लेकर कार्य करते हुए संस्कृत भारती अपने ध्येय पथ पर निरन्तर अग्रसर हैं।
देवेन्द्र पण्डया
प्रांत संगठन मंत्री
संस्कृत भारती, चित्तौड़ प्रांत 8764314350

1 thought on “संस्कृत-जनपद-सम्मेलनों का आयोजन करने का निर्णय”

Comments are closed.

error: Content is protected !!