आरक्षण पर अब हो बहस

ओम माथुर
ओम माथुर
अब वक्त आ गया है जब राजनीतिक स्वार्थों और वोट बैंक की राजनीति को छोड़कर आरक्षण पर देश में खुली बहस होनी चाहिए। अगर गुजरात में पटेल जैसा राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न वर्ग आरक्षण के लिए सड़क पर उतरा है,तो इसका मतलब साफ है कि अब विभिन्न जाति समूहों को ये लगने लगा है कि वे मेहनत और योग्यता से जितना हासिल नहीं कर सकते हैं,उससे ज्यादा आरक्षित वर्ग में आकर प्राप्त कर सकते हैं।
आरक्षण उन जाति-समुदायों के लिए शुरू किया गया था,जो वाकई में समाज में तब पिछड़े और दबे-कुचले थे। लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव और अन्य स्वार्थों के चलते आरक्षण में ऐसी जातियां भी जुड़ गई,जिनका सामाजिक स्तर कभी पिछड़ा नहीं रहा। ऐसी जिन जातियों को आरक्षण का लाभ मिला,उनमें से पनपी कुछ ही जातियां। इनके लोगों ने जीभर के आरक्षण की मलाई खाई। तभी तो एक ही परिवार से कई आईएएस,पुलिस व प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनते गए,तो उनके पुत्र-पुत्रियां शिक्षा और नौकरियों में पनपते गए। ऐसे में आरक्षण का स्वरूप ही बिगड़ गया।
आरक्षण के कारण अब देश में गृहयुद्ध के हालात बनने लगे हैं। कहीं ऐसा न हो कि आने वाले समय में सामान्य व आरक्षित वर्ग में खुले आम वर्ग संघर्ष की स्थिति बन जाए। इससे पहले ही सरकार को सोचना होगा कि आरक्षण का सही हकदार कौन है और किसे ये मिलना चाहिए। केवल भीड़ जुटाने,रेल की पटरियां रोकने और उत्पात मचाना अगर आरक्षण देने का मुख्य आधार बन गया,तो फिर हर जाति-वर्ग इसका ही सहारा लेगा। ओम माथुर 9351415379

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