सच्चे गुरु का मिलना ही दीक्षा: सुधासागर जी महाराज

आरके कम्यूनिटी सेंटर में प्रवचन, मुनि निष्कंप सागर महाराज की मुनि दीक्षा जयंती मनाई
sudha sagarमदनगंज-किशनगढ़। मुनि सुधासागर महाराज ने आर. के कम्यूनिटी सेंटर में धर्माेपदेश देते हुए कहा कि जीवन के बजाय जन्म के नाश की भावना ही सबसे बड़ी ज्योति है। जन्म नाश की भावना का नाश होने के बाद ही जीवन में सर्वोत्तम आनंद की प्राप्ति होती है।
चातुर्मास प्रवचन के दौरान बुधवार को मुनिश्री ने कहा कि जीवन में गुरु को सान्निध्य मिलना सौभागय की बात है। जीवन में ज्योति या अथाह प्रकाश की प्राप्ति गुरु सान्निध्य से ही संभव है। ऐसे में जीवन में ज्योति को प्राप्त करना ही ध्येय होना चाहिए। सांसारिक मोह-माया से उलझे संसार में जीवन को चलाने के लिए सच्चे गुरु का सान्निध्य जरूरी है। प्रवचन के दौरान मुनि निष्कंप सागर महाराज की मुनि दीक्षा जयंती पर उन्होंने कहा कि सच्चे गुरु का मिलना ही दीक्षा है। गुरु दीक्षा के दौरान प्रकाश की अनूठी अनुभूति होना ही गुरु के आभा दर्शन को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि गुरु व साधु में अंतर होता है। आगे व पीछे दोनों तरफ से प्रकाश बिखरने वाले ही गुरु होते है। उन्होंने मुनि निष्कंप सागर महाराज की 5वीं मुनि दीक्षा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु ने उन्हें दो साल सान्निध्य देने के बाद ही प्रकाश फैलाने की आज्ञा दे दी। यह उनके व्यक्तित्व के योग्यता को दर्शाता है। गुरु हर व्यक्ति को आज्ञा नहीं देता है, जो उस आज्ञा के लिए योग्य होता है उसे ही गुरु आदेश देता है। उन्होंने कुल को प्रकाशवान बनाने के लिए वाहन की हेडलाइट बंद होने पर आगे चल रहे वाहन के पीछे लगाने का उदाहरण देते हुए गुरु से निकलने वाले प्रकाश से व्यक्तित्व निखार करने पर जोर दिया। उन्होंने मां-बाप की आज्ञा की पालना संतान को अवश्य करने को कहा। विचार जब मिलने लग जाए तो आचार महत्व नहीं रखता है। विचारों में मतभेद होने से ही बिगाड़ होता है। उन्होंने कहा कि गंदी बातें जानने की सोच ही वर्तमान में बड़ी चिंता है। कान में कहीं जाने वाली बातों को जानने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति को होती है। उन्होंने दृष्टि सकारात्मक बनाने पर जोर दिया। किसी कार्य में गलती नहीं दिखाई देना बहुत बड़ी साधना है।
मुनि दीक्षा जयंती पर कार्यक्रम
श्री आदिनाथ पंचायत के प्रचार प्रसार मंत्री विकास छाबड़ा ने बताया कि प्रवचन के दौरान मुनि निष्कंप सागर महाराज की 5वीं मुनि दीक्षा जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। आज उनके गृहस्थ परिवार के परिजन भी मौजूद थे। इस मौके पर रंगोली बनाकर सजावट की गई। निष्कंप सागर महाराज ने आचार्य विद्या सागर महाराज व मुनि सुधासागर महाराज का प्रवचन में गुणानुवाद किया। इससे पूर्व प्रात: श्रीजी का अभिषेक एवं शांतिधारा, पूजन, धर्मसभा में चित्र अनावरण, दीप प्रज्जवलन, शास्त्र भेंट, मुनिश्री के पाद प्रक्षालन, सांध्यकालीन आरती तथा वात्सल्य भोज पुण्यार्जक का सौभाग्य बसन्ती देवी, अजयकुमार, नीरजकुमार व धीरज कुमार अजमेरा को मिला। दोपहर में सामयिक, मुनि निष्कंप सागर महाराज द्वारा जिनसहस्त्रनाम स्त्रोत पाठ, मुनि सुधासागर महाराज द्वारा तत्वार्थ श्लोक वार्तिक एवं पद्मनन्दि पंचविशंतिका, मुनि महासागर महाराज द्वारा तत्वार्थ सूत्र तथा सायं जिज्ञासा समाधान के पश्चात क्षुल्लक धैर्य सागर महाराज द्वारा बच्चों की पाठशाला में धार्मिक ज्ञान दिया जा रहा है। आरती के पश्चात क्षुल्लक गंभीर सागर महाराज के प्रवचन हो रहे है।
जीवन परिचय
मुनि निष्कम्प सागर महाराज का जन्म सन 1981 में गुना नगर में हुआ था। बुद्धिमता और कार्यशैली से शीघ्र ही आचार्य भगवन के कृपापात्र बन गए और जैनेश्वरी दिगम्बर दीक्षा धार मुनि निष्कम्प सागर महाराज के नाम से संबोधित किया जाने लगा। तारीख के हिसाब 10 अगस्त और तिथि के हिसाब से आज ही उन्होंने दीक्षा ली। मुनिश्री पहले ऐसे महाराज है जिन्हें आचार्य भगवंत ने बहुत ही कम समय में प्रभावना करने जगत पूज्य के श्री चरणों मे भेज दिया। गुरु आदेश को सर्वोपरि मानते हुए बोझिल मन से उन्होंने विहार कर मुनि पुंगव के चरणों में पहुंचकर उन्हें भी गुरु मान सेवा में जुट गए।

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