नई दिल्ली। कर्ज की दरों में कमी होने की उम्मीद लगाये आम आदमी, कारोबारी जगत और सरकार की उम्मीदों को फिर झटका लगा है। रिजर्व बैंक ने एक बार ब्याज दरों में कटौती करने से मना कर दिया है। सोमवार को मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा करते हुए रिजर्व बैंक ने रेपो रेट, बैंक रेट या नकद आरक्षित अनुपात को मौजूदा स्तर पर ही रखा है।
आरबीआइ ने इसकी वजह वजह रुपये की कीमत में लगातार अस्थिरता को बताया है। आरबीआइ गर्वनर डी सुब्बाराव ने आशंका जताई है कि रुपये की कीमत में यूं ही ह्रंास होता रहा तो महंगाई को थामने की रणनीति पर पानी फिर सकता है।
देश की आर्थिक विकास दर के पांच फीसद से नीचे पहुंच जाने और हाल के महीनों में महगाई दर के लगातार पांच फीसद से नीचे बने रहने से यह उम्मीद जताई गई थी कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में कटौती करेगा। उद्योग जगत ने रेपो दर में 0.50 फीसद की कटौती की उम्मीद जताई थी। केंद्र सरकार की तरफ से खुल कर यह कहा गया था कि विकास दर में सुस्ती को देखते हुए रिजर्व बैंक आवश्यक कदम उठाएगा। लेकिन शुरुआत से ही महंगाई को लेकर काफी कड़ा रवैया अपनाने वाले गर्वनर सुब्बाराव ने एक बार फिर महंगाई थामने को ही अपनी प्राथमिकता बताई है। उनका मानना है कि अभी ब्याज दरों में नरमी करने से आने वाले दिनों में महंगाई की दर फिर बढ़ सकती है।
रिजंर्व बैंक ने चालू खाते में घाटे की स्थिति को लेकर भी चिंता जताई है। हालांकि सरकार की तरफ से इस पर काबू पाने के लिए हाल के दिनों में काफी कोशिशें हुई हैं लेकिन केंद्रीय बैंक इससे पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है। खास तौर पर जिस तरह से रुपये की कीमत में गिरावट हो रही है उससे आने वाले दिनों में चालू खाते में घाटे (विदेशी मुद्रा के आने व देश से बाहर जाने का अंतर) की स्थिति के फिर से बिगड़ जाने के आसार है। यही वजह है कि केंद्रीय बैक ने नकद आरक्षित अनुपात को 4 फीसद, रेपो रेट को 7.25 फीसद और बैक दर को 8.25 फीसद पर ही बरकरार रखा है। इनमें कटौती होने से पर ही बैकों की तरफ से कर्ज की दरों में कटौती की सूरत बनती।