-राहुल चौधरी- नसीराबाद विधानसभा सीट से उप-चुनावों में भाजपा के टिकिट के टिकिट के लिए रेस जारी है। सांवरलाल जाट द्वारा अपने बेटे रामस्वरुप के साथ साथ भाई जगदीश का नाम भी आगे बढ़ाये जाने से खुद जाट के परिवार में रस्साकशी शुरु हो गई है।
सूत्रों का कहना है कि सांवर लाल के बेटे रामस्वरुप और उनके समर्थको ने जगदीश लांबा की उम्मीदवारी का विरोध किया है। रामस्वरुप के समर्थकों का मानना है कि सांवरलाल को वही गलती नही करनी चाहिए जो कि बरसों पहले कद्दावर जाट नेता बलदेव राम मिर्धा ने की थी। ऐसे मे परिवार के अंदर चल रही इस गुत्थम-गुत्थी ने सांवरलाल की मुश्किले और बढ़ा दी है।
गौरतलब है कि नसीराबाद में गुर्जर बहुतायत में है और आजादी के समय से ही कांग्रेस के साथ रहे है। वही सांवरलाल ने आजादी के बाद पहली बार नसीराबाद सीट को भाजपा के लिए 2013 में जीता है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यहा यह है कि नसीराबाद सीट से भाजपा के टिकिट पर किसी गुर्जर या अन्य जाट के उतरने से स्वयं सावंरलाल का राजनितिक भविष्य भी दांव पर लग सकता है।
ऐसे में सांवरलाल जाट के पास तिलक सिंह रावत का विकल्प मौजूद है जो कि पूर्व सांसद रासासिंह रावत के पुत्र है। रावत समुदाय नसीराबाद में भाजपा का प्रमुख वोट बैंक है और सांवर लाल द्वारा अगर नाइट-वाचमेन के रुप मे तिलक सिंह पर दांव लगाया जाता है तो वे न केवल नसीराबाद सीट को अपने या अपने बेटे के लिए चार साल तक सुरक्षित रख पायेगे वही जाट-रावत पैक्ट उन्हे अजमेर की राजनिती में अपनी जड़े और गहरी करने का मौका प्रदान करेगा।
ऐसे में सांवरलाल जाट के वरदहस्त से तिलक सिंह रावत, नसीराबाद में भाजपा के टिकिट की रेस में ड़ार्क हॉर्स साबित हो सकते है। खास बात ये कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आर्शीवाद तिलक सिंह रावत को आसानी से मिल सकता है क्योकि संघ के कई विशेष प्रकल्प मसूदा-नसीराबाद क्षेत्र में कार्यरत है जिनमें तिलक सिंह रावत महती भूमिका अदा कर सकते है।
सांवरलाल और रासासिंह में पैक्ट होने की स्थिती में तिलक सिंह रावत के टिकिट की राह आसान हो सकती है क्योकि रासासिंह अभी संगठऩ या सरकार के किसी पद पर नही है, ऐसे में भाजपा की परिजनों को चुनावी रण में नही उतारने की नयी नीति से तिलक सिंह अछूते है। रावत दावेदारी के खिलाफ दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि अजमेर जिले में पहले से दो रावत विधायक है। पर तथ्य ये है कि नये परिसीमन के बाद ब्यावर सीट – राजसमंद संसदीय क्षेत्र का हिस्सा बन चुकी है, ऐसे ब्यावर का अजमेर जिले की राजनिती मे पहली से ही पटाक्षेप हो चुका है। वही भाजपा को रावत समुदाय का सर्मथन ना केवल पुष्कर में हासिल हुआ है जहां से सुरेश सिंह रावत जैसे नौसिखिए भी चुनाव जीत गये वही स्वयं सांवरलाल की 28500 वोटो की लीड़ में रावत वोटो का बड़ा हाथ रहा। दूसरी ओर मसूदा में बरसों बाद भाजपा की जीत में भी रावत वोटो की भूमिका थी। ऐसे में जाट-रावत पैक्ट अजमेर जिले में भाजपा को सचिन पायलेट के दमखम के सामने मजबूती से खड़ा रख सकता है।
नसीराबाद सीट के लिए आखिरी फैसला होने से पहले सांवरलाल को अपने परिवार की अदंरुनी खींचतान और बेटे -भाई में से एक को चुनने की मुश्किलों से दो-चार होना होगा। ऐसे में सांवरलाल का कोई भी फैसला ना केवल नसीराबाद विधानभा का भविष्य तय करेगा वही स्वयं सावंरलाल के परिवार का राजनितिक भविष्य इसी फैसले से तय होगा।
परिवारवाद से उपर उठकर सही राजनितिक फैसला लेने से ना केवल सांवरलाल जाट अपनी जमीन बचाये रखने में कामयाब हो सकते है वही अजमेर जिले के सबसे प्रभावशाली राजनितिज्ञ की भूमिका भी पा सकते है।