एक ओर सरकार की ताकत तो दूसरी ओर पायलट की प्रतिष्ठा

sachin 47-450नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में एक ओर सत्तारूढ़ भाजपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है तो दूसरी ओर अपने संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीट होने के कारण नसीराबाद के उपचुनाव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। चूंकि टक्कर बराबरी की है और मामूली चूक भी पराजय का कारण बन सकती है, इस कारण दोनों दल कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहते। भाजपा ने अपने तीन मंत्री व बीस विधायक चप्पे-चप्पे पर बिखेर दिए हैं तो पायलट ने खुद विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित कर रखा है।
हालांकि नामांकन वापस लेने की तिथि से पहले तक ऐसा लग रहा था कि दोनों दलों के प्रत्याशियों को निर्दलीय कुछ नुकसान पहुंचा सकते हैं, मगर अब तस्वीर साफ है और मुकाबला आमने-सामने का है। असल में जैसे ही निर्दलीय प्रत्याशी कालूराम चौधरी के नाम वापस लिया, भाजपा प्रत्याशी सरिता गैना ने राहत की सांस ली। हालांकि भारतीय आम जन पार्टी के विजय सिंह रावत अभी मैदान में हैं, जो कुछ नुकसान पहुंचा सकते हैं, मगर भाजपा पूरी तरह से तैयार है। जानकारी के अनुसार चौधरी जल संसाधन मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के करीबी माने जाते हैं, इस कारण बाद में कहीं हार का ठीकरा उन पर न फूटे, उन्होंने हरसंभव कोशिश कर चौधरी को बैठा दिया। उधर जागो पार्टी के प्रत्याशी इदरीस के दुर्घटना में निधन होने के बाद कांग्रेस ने राहत महसूस की है। जाहिर तौर पर वे मुस्लिम वोट बैंक में सेंध मार सकते थे। कुल मिला कर मुकाबला अब सीधे तौर पर गुर्जर और जाट के बीच है। कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण गुर्जर को अपनी जाति के अतिरिक्त मुस्लिम व अनूसूचित जाति का भरोसा है तो भाजपा प्रत्याशी सरिता गेना को जाटों के अतिरिक्त परंपरागत रूप से भाजपा के साथ रहे रावतों पर आसरा है।
नसीराबाद विधानसभा सीट का उपचुनाव इस कारण भी दिलचस्प है क्योंकि लंबे अरसे बाद यहां पहली बार यहां दो नए प्रत्याशी आमने-सामने हैं। हालांकि उन्हें फ्रेश तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर प्रधान हैं तो भाजपा की सरिता गेना पूर्व जिला प्रमुख रह चुकी हैं, मगर दोनों पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।

इस सीट का मिजाज:-
अजमेर जिले की नसीराबाद विधानसभा सीट पर पूर्व में गुर्जर व रावतों का वर्चस्व रहा है। स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर 1980 से 2003 तक लगातार छह बार जीते। बाबा के सामने लगातार तीन बार रावत समाज के मदन सिंह रावत खड़े किए गए, मगर जीत उनकी किस्मत में थी ही नहीं, हालांकि मुकाबला हर बार कड़ा ही होता था। परिसीमन के तहत पुष्कर व भिनाय विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने के कारण यहां का जातीय समीकरण बदल गया। तकरीबन 25 हजार जाट मतदाताओं के मद्देनजर 2008 में पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतारा गया, मगर वे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के राजनीतिक उत्तराधिकारी श्रीनगर पंचायत समिति के पूर्व प्रधान महेन्द्र सिंह गुर्जर से महज 71 वोटों से हार गए। इसके बाद दिसम्बर 13 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रो. जाट पर फिर दाव खेला, जो कि कामयाब हो गया। उन्होंने पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर को 28 हजार 900 मतों से पराजित किया। सांवर लाल को 84 हजार 953 मत मिले, जबकि महेन्द्र सिंह गुर्जर को 56 हजार 53 मत। हालांकि उसमें कांग्रेस विरोधी लहर की ही अहम भूमिका थी।
वस्तुत: नसीराबाद यों तो एससी बहुल इलाका है, लेकिन किसी एक जाति की बात करें तो गुर्जर सबसे ज्यादा हैं। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक नसीराबाद में एससी के करीब 45 हजार, गुर्जर करीब 30 हजार, जाट करीब 25 हजार, मुसलमान करीब 15 हजार, वैश्य करीब 15 हजार, रावत करीब 17 हजार हैं। इनके अलावा ब्राह्मण, यादव मतदाता भी हैं। परंपरागत मतों के हिसाब से जोड़ कर देखें तो गुर्जर, एससी, मुसलमान कांग्रेस का वोट बैंक 90 हजार से अधिक हो जाता है। क्षेत्र में प्रत्याशी के जातिगत मतों और परंपरागत मतों को जोड़कर देखें तो भाजपा का वोट बैंक भी करीब 90 हजार के लगभग हो जाता है। शेष मतों को लेकर दोनों दलों में कांटे का मुकाबला होता है।

भाजपा उत्साहित, मगर कांग्रेस भी हतोत्साहित नहीं
आसन्न उपचुनाव की बात करें तो भले ही केन्द्र व राज्य में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के कारण भाजपा उत्साहित है, मगर मुकाबला कांटे का ही रहने की संभावना है, क्योंकि कांग्रेसी भी हतोत्साहित नहीं हैं। इसकी कुछ वजुआत हैं। हाल ही हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस का मतांतर आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया। हालांकि पूरे संसदीय क्षेत्र में जाट को 1 लाख 71 हजार 983 की लीड मिली, लेकिन नसीराबाद में लीड घट कर 10 हजार 999 मतों पर सिमट गई। प्रचंड मोदी लहर के बाद भी लीड कम होना रेखांकित करने लायक तथ्य है। यानि कि उपचुनाव में लहर की तीव्रता बरकरार न रही तो कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला संभव है। कांग्रेसी इस कारण भी कुछ उत्साहित हैं केन्द्र व राज्य की भाजपा सरकार का चंद माह का परफोरमेंस कुछ खास नहीं रहा, विशेष रूप से महंगाई पर काबू न कर पाने की वजह से आम आदमी की अच्छे दिन आने की उम्मीद पर पानी फिरा है। इसके अतिरिक्त गुर्जरों में बाबा की इस सीट फिर हथियाने का जोश नजर आ रहा है। यह सीट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के लिए प्रतिष्ठा की मानी जाती है, क्योंकि ये उनके संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है और गुर्जर बहुल है। जहां तक प्रत्याशियों के स्वयं के परफोरमेंस का सवाल है, दोनों की ही छवि साफ-सुथरी है। दोनों पर कोई भी बड़ा राजनीतिक आरोप नहीं है, जिसका चुनाव पर असर पड़ता हो।
गुर्जर की बात करें तो उन्हें स्वाभाविक रूप से बाबा के उत्तराधिकार के साथ सहज-सरल स्वभाव का लाभ मिलेगा। उन्हें बाबा के साथ लंबे समय तक राजनीतिक यात्रा करने का अनुभव है, साथ ही कांग्रेस संगठन के अतिरिक्त श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान के रूप में काम करने का भी अनुभव है। श्रीनगर प्रधान के चुनाव में भाजपा के सदस्य अधिक होने के बावजूद वे प्रधान बनने में कामयाब रहे। वैश्य समाज में उनकी पैठ है, ऐसे में वैश्य समाज को वे साथ ले सकते हैं। नसीराबाद के निवासी होने के कारण मतदाताओं को सहज उपलब्धता भी उनके पक्ष में है।
नसीराबाद इलाके में बाऊजी के नाम से सुपरिचित रामनारायण गुर्जर का जन्म 15 अगस्त 1946 को नसीराबाद के सुत्तरखाना मोहल्ले में श्री गोगराज गुर्जर के आंगन में हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा अर्जित करने के बाद वे ट्रांसपोर्ट कंपनी में मैनेजर रहे। वे 1988 में नसीराबाद नगर कांग्रेस अध्यक्ष बने और 1992 तथा 2000 में जिला देहात कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे। वे 1995 तथा 2005 में जिला परिषद सदस्य रहे। इसके 2010 में श्रीनगर पंचायत समिति सदस्य बने और 10 फरवरी 2010 को कांग्रेस के 8 और भाजपा के 11 सदस्य होने के बावजूद श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान बन कर अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया।
बात भाजपा की सरिता गेना की करें तो उन्हें जाट मतों की लामबंदी के साथ स्वच्छ छवि की महिला होने का लाभ मिल सकता है। केन्द्र व राज्य में भाजपा के सत्ता में होने का स्वाभाविक लाभ भी उन्हें मिलेगा। एकाएक कोई भीतरघात नहीं कर सकता। जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल है, इस कारण उन पर पूरा दबाव रहेगा कि वे ही मोर्चा संभालें, मगर सीट छोड़ कर लोकसभा चुनाव लडऩे, केन्द्र में मंत्री न बन पाने की आशंका और बेटे को टिकट नहीं दिए जाने से जरा भी बेरुखी रही तो सरिता के लिए मुश्किल हो सकती है। एक ओर जहां जिला प्रमुख रह चुकने के कारण नसीराबाद में भी संपर्क का वे लाभ लेंगी, वहीं गुर्जर की तुलना में स्थानीय संपर्कों का अभाव कुछ दिक्कत पेश आ सकती है। वैसे एक बात है, वे हैं लक्की। आपको याद होगा कि वे जिला प्रमुख सौभाग्य से ही बनी थीं। उन्हें जिला परिषद का टिकट भाग्य से ही मिला। टिकट पहले किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी की पुत्री सरिता को मिलना था, लेकिन खुद विधायक ने रुचि नहीं ली, इस कारण ऐन वक्त पर उनकी ही जेठानी सरिता गैना का भाग्य जाग गया। वे चुनाव जीत कर जिला प्रमुख भी बनी। विधानसभा चुनाव के टिकट के लिए उन्होंने कोई खास मेहनत नहीं की, मगर समीकरण ऐसे बने कि उनकी चेत गई। किस्मत का वास्तविक चेतना उनके जीतने के बाद ही तय होगा। उनका व्यक्ति परिचय इस एक पंक्ति से जुड़ा है:- राजनीति में कदम रखते ही सफलता का शिखर छूने वालों में श्रीमती सरिता गेना नाम शुमार है। वे सन् 2005 में भारतीय जनता पार्टी से जुड़ीं और जिला प्रमुख पद का चुनाव जीता। श्री जी. एल. परोदा के घर 26 फरवरी 1977 को जन्मी श्रीमती गेना ने एम.ए. तक शिक्षा अर्जित की है।
-तेजवानी गिरधर

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