अब मान रहे हैं कि सरिता गैना गलत कैंडिडेट थीं

sarita gainaनसीराबाद विधानसभा उप चुनाव में मतदान के दिन तक श्रीमती सरिता गैना की हजारों वोटों से जीत के दावे करने वाले भाजपाई ही अब हार के बाद दबे सुर में कहने लगे हैं कि वे गलत कैंडिडेट थीं। अगर इसी जगह जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के बेटे को टिकट दिया जाता तो वे किसी भी सूरत में जीत कर आते।
असल में नसीराबाद के ग्रामीण इलाकों में चुनाव प्रचार करने गए शहरी नेताओं को तभी पता लग गया कि कि सरिता गैना की छवि उतनी ठीक नहीं है, जितनी नजर आ रही है। उनके प्रति जिला प्रमुख के कार्यकाल के दौरान की कुछ नाराजगियां लोगों में है। मगर अब क्या हो सकता था। उन्हें तो प्रचार करना था, तो करते रहे। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे हालांकि भरपूर ताकत लगा रखी थी, इस कारण उन्हें उम्मीद थी कि सरिता जीत जाएंगी, मगर मन ही मन धुकधुकी थी। अब जब कि वे हार गई हैं तो हर कोई एक दूसरे के कान में फुसफुसा रहा है कि वे गलत कैंडिडेट थीं। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के परिवारवाद को बढ़ावा न देने की नीति नहीं होती व प्रो. जाट के बेटे को टिकट दे दिया जाता तो वे येन-केन-प्रकारेण उसे जितवा कर ही आते। सरिता के लिए उन्होंने भले ही मेहनत की हो, मगर खुद का बेटा होता तो जाहिर तौर पर एडी चोटी का जोर लगा देते। हालांकि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि जाट ने मेहनत नहीं की, मगर परिणाम यही बता रहे हैं कि जरूर कहीं न कहीं लापरवाही या अनदेखी हुई है। हार के लिए जाट को जिम्मेदार मानने वाले तर्क देते हैं कि वे काहे को सरिता के लिए जी जान लगाते। यदि सरिता जीत जातीं तो यह सीट उनके बेटे के लिए भविष्य में खाली नहीं रहती। वैसे भी उनके साथ जितनी बड़ी चोट हुई है, वो तो उनका मन ही जानता होगा। वसुंधरा की जिद के कारण सांसद का चुनाव लड़ा, मगर केन्द्र में मंत्री नहीं बन पाए। चाहते थे कि कम से कम अपने बेटे को राजनीति में स्थापित कर दें, मगर वह भी नहीं हो पाया।
जहां तक खुद सरिता का सवाल है, हालांकि उन्होंने खुद कैंडिडेट होने के नाते पूरे दौरे किए, मगर उन्हें ज्यादा भरोसा इस बात का था कि चूंकि सरकार की पूरी ताकत लगी हुई है, इस कारण आसानी से जीत जाएंगी। बाकी उनके चेहरे से कहीं से नहीं लग रहा था कि वे एक योद्धा की तरह से मैदान में हैं।

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