इस जज्बे को सलाम

a1a2a3पुष्कर :- मौत के बाद प्राणी के मोक्ष के लिये सभी उसे लकड़ी देकर उसकी आत्मा शान्ति की प्रार्थना करते है लेकिन यदि इस पूण्य के काम से पहले यदि और कोई पुनीत काम करने का मौका मिल जाये तो इसे किस्मत की मेहरबानी ही कहा जा सकता है । पुष्कर के मुक्तिधाम में अखिल भारतीय विधार्थी परिषद् के मार्गदर्शक नेहरू पंडित की दादी की अंतिम यात्रा में भाग लेने के लिए सैकड़ो पुष्करवासी पहुँचे । आम तौर पर मुखाग्नि के बाद लोग या तो आराम करते है या फिर इधर – उधर की चर्चाये करते है । इन सबसे हटकर आज पुष्कर के मुक्तिधाम में गये लोगो ने पुष्कर सरोवर के लिये श्रमदान का जज्बा दिखाकर लोगो के सामने एक मिशाल कायम की । लोगो ने तपती धुप में फीडर की सफाई कर धर्म लाभ प्राप्त किया । आम तौर पर श्रमदान जैसे कार्यक्रम फ़ोटो खिंचवाने और दिखावे के साथ समाप्त हो जाते है लेकिन रविवार से रेस्क्यू कमेटी सहित पुष्कर के सामाजिक और धार्मिक संगठनो ने जो पहल की है वह अब एक मिशन का रूप लेती जा रही है । आज की इस अनूठी पहल ने अब साबित कर दिया है की पुष्कर सरोवर के लिये लोगो की जागरूकता केवल दिखावटी नहीं है । लोगो ने अब पुष्कर सरोवर के लिये कुछ कर गुजरने की ठान ली है । जिस तरह श्रमदान के प्रति लोगो का उत्साह देखने को मिल रहा है उससे ऐसा लग रहा है की मानो यह कभी ना समाप्त होने वाली मुहीम शरू हो चुकी है । ऐसे में सवाल कई उठते है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है की आखिर जब पुष्कर फीडरों के लिये सरकार ने करोडो रुपये पानी की जैसे बहाये तो आखिरकार इनके रखरखाव की व्यवस्था क्यों नहीं की । समय सिमा समाप्त होने के बावजूद अभी भी फीडर कार्य अधूरा पड़ा है जो कार्य पूरा हुआ है उसकी भी एक -एक करके लापरवाही की परते उखड़ने लगी है । ठेकेदार को फीडरों के दोनों तरफ की मिट्टी साफ़ करनी थी लेकिन वह मिट्टी फीडरों पर ग्रहण बनी हुई है ।  निजी स्वार्थो के चलते फीडरों में गन्दा पानी छोड़ा जा रहा है । हालात इस कदर बिगड़ गये है की लोगो ने फीडरों को अपनी अय्यासी का अड्डा बना लिया है । हालांकि लोगो की जागरूकता की भनक लगते ही एडीए ने अपना दामन साफ़ करने की भर्शक कोशिश की लेकिन शायद देर हो चुकी थी । हर बार मानसून के समय फीडरों की सफाई के लिये बजट आवंटित होता है यदि यही कार्य जनवरी में ही शुरू हो जाते तो लोगो को सरकार और प्रशासन पर उंगली उठाने का मौका नहीं मिलता । अब देखना होगा की क्या एडीए में कुछ शर्म बाकी है या फिर केवल लोगो के दवाब के कारन ही बैकफूट पर आकर जन आंदोलन को दबाने की साजिश रची गई है ।
अनिल पाराशर, पत्रकार

error: Content is protected !!