लो अब नसीराबाद में पत्रकारो को मिली खुलेआम धमकी फिर भी हम चुप

अनिल पाराशर
अनिल पाराशर
लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाले पत्रकारो को खुलेआम धमकी देना आम बात हो गई हे हर कोई पत्रकारो को अपने हाथो की कठपुतली समझने लग गए हे समझे क्यो नही कमजोरी जो हमारी हे आज प्रतिस्पर्धा के चलते हमारे पत्रकार भाई एक दूसरे को निचा दिखाने में लग रखे हे हर कोई एक दूसरे की टांग खिंचाई करने से नही चूक रहे हे हर रोज एक नए पत्रकार का जन्म हो रहा हे ऐसा लगने लग गया हे की पत्रकारिता आज एक फेंशन बन गई हे कुछ लोग पत्रकारिता की आड़ में अपनी दुकाने चला रहे हे अपनी कलम को छोड़कर जी हजुरी और चपलुसि में लग रखे हे जिसके चलते आज हर कोई पत्रकारो को ईर्ष्या की भावना से देखने लग गए हे और आज यह स्थिति हो गई की पत्रकारो को हर कोई अभद्र व्यवहार करने और धमकी देने लग गए हे जिनकी कभी कलम की ताकत से डरने वाले लोगो के खिलाफ हम सभी पत्रकारो को लड़ना पड़ रहा हे ।पत्रकारो को तो धमकी देना लोगो ने आज एक खेल समझ रखा हे समझे क्यो नही क्योंकि आज हमारी कलम में ताकत नही रही आज हम सच्चाई छापने से कतराने लग गए ह जनता की मांगो को हम आमजन तक नही पहुंचा रहे हे पेसो और अपने स्वार्थ के पीछे हमारा स्तर दिन बे दिन गिरता जा रहा हे हमारे संगठन कागजो तक ही सिमित हे वो सिर्फ अपनी रोटिया सेक रहे हे उनको पत्रकारो की समस्याओ से कोई लेना देना नही बस उनका काम नही रुकना चाहिए उनकी तरफ से भाड़ में जाये सभी पत्रकार भाइयो आज वो समय आ गया हे हम सब एक दूसरे की टांग खिंचाई करना बन्द करे सभी संगठित हो किसी के भरोसे नही चले अपनी लड़ाई हमे ही लड़नी पड़ेगी इसलिए सभी एकजुट होकर इनको मुह तोड़ जवाब दो अपनी कलम को इतनी मजबूत बनाओ की हर कोई आप पर अंगुली उठाने से पहले दस बार सोचने पर मजबूर हो जाये।पत्रकारिता को एक व्यवसाय नही बनाकर इसे एक समाज सेवा के रूप में निस्वार्थ भावना से करे ।अगर मेने कुछ गलत लिख दिया या किसी को अगर मेरी बात से ठेस पहुंचे तो माफ़ी चाहता हु।
अनिल पाराशर संपादक बदलता पुष्कर

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