सिर्फ एक व्यक्ति के बदलने से बदल गई सारी पुलिस प्रणाली। ना तो पुलिस की नफरी बढ़ी, ना संसाधन बढ़े और ना ही बजट बढ़ा, ना ही वर्दी बदली और ना ही थाने बदले गये और ना ही कोई गाड़ी-घोड़े बढ़े, तो ऐसा क्या हुआ कि पुलिस अजमेर शहर और जिले में नजर आने लगी ? बदला तो सिर्फ पुलिस कप्तान और उसकी इच्छाशक्ति। पूर्व में आम आदमी को पुलिस ऐसे दिखती थी जैसे रेगिस्तान में पानी। अब ऐसे दिखने लगी है जैसे उदयपुर में झीलें हों। चेतक जाती है तो सिग्मा दिखती है, सिग्मा जाती है तो थाने की पुलिस नजर आती है जो थानेदार कल तक रे-बैन के चश्मे, लेवीस की जींस, रेमन्डस की टी शर्ट ऐडीडास के जूते पहने परिवारजनों और रिश्तेदारों के साथ महंगे होटलों में खाना खाते, बारों में शराबें पीते, वाटर पार्कों में, पिक्चर हॉलों में और शहर की हर शादी, सगाई-समारोह से लेकर मुण्डन संस्कारों तक में नजर आते थे वो ही आजकल बावर्दी उन्हीं होटलों और समारोह स्थलों के बाहर खड़े गाना गा रहे होते हैं ……….. जाने कहां गये वो दिन ………….
आज अपराधियों में खौफ है आम आदमी में एक उत्साह है, एक उमंग है, एक तरंग है उसे जीवन जीने की जैसे कोई कला ही आ गई हो। उसकी सुनवाई, उसकी दाद-फरियाद होने लगी है। जो पुलिस कल तक बेशर्मी की सारी हदें पार कर चुकी थीं आज वो ही चाक-चौबन्द और बड़ी संवेदनशील बन गई है और ‘‘मेरे योग्य सेवा‘‘ का पुलिस का मोनोग्राम सार्थक नजर आ रहा है कल तक जो अजमेर पुलिस कहती थी कि आये तो क्या लाए हो और जा रहे तो क्या दे जाओगे ? वो सब खत्म हो गया। पुलिस के हर अधिकारी को अब अपनी ड्यूटी करनी पड़ रही है। पहले बड़े अधिकारी ही महीने में करीब 15-16 दिन बाहर रहते थे तो ऐसे में छुटभईयों को कौन टोकता ? उच्च स्तर पर पुलिस में भी ‘5 डेज वीक‘ की परम्परा निर्विवाद रूप से चल रही थी। कुछ चाटूकार और दलाल प्रवृति के पुलिस अधिकारी चाहे उनकी पोस्टिंग कहीं पर भी हो सारा दिन कलेक्ट्री में सिविल ड्रैस में खड़े रहते और तोड़-बट्टे करवाते रहते थे, उच्च अधिकारीयों से अनैतिक व्यापार के व्यापारियों से मिलवाते रहते थे और ट्रांसफर पोस्टिंग के लिये अपने अन्य सहयोगियों को फोन करते रहते कि सब कुछ हमारे ही हाथ में है बता कहां लगना चाहता है ? चाहे रेंज हो या जिला हो थाना स्तर तक की हमारी गारण्टी और वारण्टी के साथ। बस मूल मंत्र यह था कि ‘‘जो बढ़ेगा सो पायेगा‘‘, ‘‘बहती गंगा में लूट सके तो लूट वरना अंतकाल पछतायेगा‘‘ यह गुरूमंत्र के प्रायोजकों का मूलभूत मंत्र एवं सिद्धांत और ध्येय था।
शहर के कुछ जागरूक लोगों ने अजमेर पुलिस के आला अफसरों का शहर में होने वाले अपराधों के संबंध में जैसे शराब की खुली बिक्री, शराब बिकने में समय की पाबन्दी को नहीं मानना, गली-गली जुआ-सट्टा, क्रिकेट का सट्टा और संगठित अपराधों एवं हाईवे पर होने वाले अपराधों के संबंध में बार-बार ध्यान आकर्षित किया परन्तु उनके कान पर जंू तक नहीं रेंगी क्यों कि सबकुछ उनकी सरपरस्ती और रजामन्दी में ही चल रहा था अगर बहुत मजबूरी में कुछ करना भी पड़ा तो पहले ही सब इत्तलाएं करके प्रायोजित कार्यक्रम किये जाते थे। इसलिये जो उनके छाते के नीचे आ जाता था वो कमा खाता था। भगवान का एवं माननीया मुख्यमंत्री जी का लाख-लाख शुक्र एवं धन्यवाद है कि उन्होंने अजमेर में विकास कुमार जैसे ईमानदार, निष्ठावान, जागरूक पुलिस अफसर को लगाया जिसकी कथनी और करनी, नीयत और नीति में कोई भेद नहीं है। उनकी कार्यप्रणाली से अब कई घरों में रोटीयां बनने और मिलने लगी हैं घर के कमाउ पुरूष समय पर घर आ जाते हैं और अपनी कमाई जुए-सट्टे, शराब और र्दुव्यसनों में नहीं उड़ा रहे हैं जिससे घर में खुशहाली आई है, बाल बच्चों को टाईम से रोटीयां मिल रही हैं और उनकी परवरिश हो रही है। क्यों कि सभी प्रकार के अपराधों पर अंकुश लग गया है अजमेर जिला पुलिस के लिये तो ऐसा समय आया है जैसे कि कोई राजस्थान में छप्पनिया अकाल पड़ गया हो। 1956 में जो छप्पनिया अकाल पड़ा था उससे भी भीषण काल अजमेर पुलिस की भ्रष्ट कमाई और भ्रष्टाचार पर आदरणीय विकास कुमार के कार्यकाल में पड़ गया है, मेरी निश्चित मान्यता है कि भ्रष्ट और निकृष्ट पुलिस अधिकारी अजमेर से भागने की जुगाड़ में लगे हुए हैं परन्तु उन्हें कोई आका नहीं मिल रहा है और आचार संहिता और लग गई है। ऐसे में अब कोई चारा नहीं है सिवाय विकास कुमार के साथ दौड़ने के। सही मायनों में तो अब पुलिस का विकास ही विकास कुमार के नेतृत्व में हो रहा है भगवान ऐसे कर्मठ, ईमानदार अधिकारी को दीर्घायु, स्वास्थ्य और गुण्डे-बदमाशों से लड़ने की इच्छाशक्ति, मनोबल व योग्यता एवं आर्शीवाद प्रदान करे।
राजेश टण्डन, एडवोकेट, अजमेर।