तब सामान्य वर्ग के नेता पीछे क्यों हट गए

Nagar Nigam election 2015अजमेर नगर निगम चुनाव में मेयर के सामान्य पद पर ओबीसी के धर्मेन्द्र गहलोत को चुने जाने के बाद एक ओर जहां पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह षेखावत के प्रति हमदर्दी रखते हुए सामान्य वर्ग लामबंद हो रहा है, वहीं भाजपा के अंदरखाने गहलोत को चुने जाने को जायज बताया जा रहा है। कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि आज जो सामान्य वर्ग के हितों पर कुठाराघात का हल्ला मचाया जा रहा है, वह पूरी तरह से नाजायज है। पार्टी ने तो सामान्य वर्ग के नेताओं को ही प्राथमिकता देने के लिए पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष धर्मेष जैन, देहात जिला भाजपा अध्यक्ष व पूर्व षहर जिला भाजपा अध्यक्ष षिवषंकर हेडा जैसे दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने का निर्णय किया था। स्वाभाविक रूप से गहलोत को छोड कर उनमें से ही मेयर बनाया जाता। मगर जहां जैन ने आरंभ में ही मना कर दिया, वहीं हेडा ने आखिरी वक्त में इंकार कर दिया। हेडा को चुनाव लडवाने के लिए तो बाकायदा सीट खाली की गई और नीरज जैन को वार्ड दो में प्रदीप हीरानंदानी का टिकट काट कर लडाने का निर्णय किया गया। जब खुद सामान्य वर्ग के नेता ही चुनाव लडने को तैयार नहीं हुए तो आज किस आधार पर सामान्य वर्ग गुस्सा खा रहा है। उन्हें षिक्षा राज्य मंत्री प्रो वासुदेव देवनानी को दोष देेने की बजाय सामान्य वर्ग के नेताओं को पकडना चाहिए, जो पीछे हट गए। उनके कपडे फाडने चाहिए जो सामान्य वर्ग के होते हुए भी सामान्य वर्ग के हितों की रक्षा नहीं कर पाए। पार्टी ने तो पहले सामान्य को ही मौका दिया था। अगर हेडा चुनाव लडते तो वे और केवल वे ही मेयर पद के दावेदार होते। मगर कदाचित हार के डर से वे पीछे हट गए। ऐसे में पार्टी के पास जो भी सर्वाधिक अनुभवी, योग्य और दमदार नेता था, उसे मेयर बना दिया गया। ऐसा तो हो नहीं सकता था कि सामान्य के नाम पर किसी भी सामान्य को मेयर बना दिया जाता। जाहिर तौर पर मेयर पद संभाल सकने वाले को ही मेयर बनाना था और उसके लिए गहलोत ही सर्वाधिक उपयुक्त थे। पार्टी के पार्षदों का बहुमत भी उनके साथ ही था।
कुछ का कहना है कि आज जो सुरेन्द्र सिंह पार्टी से बगावत कर कांग्रेस के सहयोग से मेयर बनना चाहते थे, उनका हक ही नहीं बनता था। वे और उनकी आका महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल तो अपने दक्षिण इलाके में पार्टी को जितवा ही नहीं पाए। ऐसे में उनका दावा तो वैसे ही कमजोर था। जाहिर तौर पर जब देवनानी अपने इलाके में ज्यादा सीटें लाए और पार्टी की साख बचाई, तो उनका ही हक बनता था कि मेयर के लिए व्यक्ति तय करें। उन्हें जो सर्वाधिक उपयुक्त लगा, उसे बनवा दिया।
डिप्टी मेयर पद पर भी ओबीसी के संपत सांखला को बनाए जाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है। उनका कहना है कि डिप्टी मेयर पद के लिए कोई लॉटरी थोडे ही निकाली गई थी, जो सामान्य वर्ग इतना उबल रहा है। उन्हें तो अजमेर की दोनों सीटों में संतुलन बनाने के लिए बनाया गया, ताकि पार्टी एकजुट रहे। ऐसा राजनीति में किया ही जाता है। संभव है ऐसे ही संतुलन की खातिर सामान्य वर्ग के किसी नेता को एडीए का चेयरमेन बनाने पर विचार किया जाए। यदि ऐसा हुआ तो सामान्य वर्ग की मुहिम का क्या होगा।
बहरहाल, सामान्य वर्ग इस वक्त बेहद आहत है। सुरेन्द्र सिंह की अगुवाई में वह लामबंद भी हो रहा है। पुष्कर से तो बाकायदा संघर्ष का आगाज कर दिया गया है। अब देखना ये है कि सामान्य वर्ग कितने समय तक अपनी आग को बचाए रख पाता है। कहीं वह सामान्य वर्ग के किसी नेता को एडीए का चेयरमेन बनाए जाने पर बिखर तो नहीं जाएगा। विचारणीय यह भी है कि सुरेन्द्र सिंह क्या तीन साल तक आग को बचाए रखने में कामयाब होंगे, ताकि अजमेर उत्तर की सीट पर दोनों दलों की ओर से सिंधी को ही टिकट दिए जाने पर सामान्य वर्ग के दम पर चुनाव जीत सकें।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

2 thoughts on “तब सामान्य वर्ग के नेता पीछे क्यों हट गए”

  1. तेजवानी साहेब ना तो सामान्य वर्ग पीछे हटा था ना हटेगा और हा ये जो आपने लिखा है उसमें से त्रुटी हटाईये साहेब यहाँ योग्य और अनुभवी की बात है तो वो सुरेन्द्र सिंह शेखावत ही है| और हा अगर ये उतर दक्षिण की बात है तो फिर ज्ञान जी सारस्वत थे उनको अनुभव भी है और उनका चरित्र भी है 5बार -पार्षद रह चुके है और जीत का रिकॉर्ड कायम किया है अनुभव से आपका मतलब क्या है खुद खाना और दूसरो को भी खिलाना या अपके समभंद अच्छे है गहलोत जी से aap अपना काम निकलवा सकते है तो बोल रहे है और हा ये देश के टुकड़े हुए वो अभी तक दर्द दे रहे है फिर जाति के फिर धर्म के अब इस शहर के टुकड़े तो मत करो और हा हम कोई देवनानी या भदेल की बापोती नही है | ना ही उनके जरखरीद गुलाम है हम अजमेर वासी है और वही रहेंगे हमको मत बाटो हा और ये वोट हमने bjp को दिया है और देवनानी या भदेल को नही bjp का कोई भी चेहरा होता या होगा तो हम उसको जीत देंगे पर इस प्रकरण के बात चाहे सुरेन्द्र सिंह जी निर्दल्य भी खड़े हुए तो उनकी जीत पक्की है जो हुआ या किया गया उससे इतना फर्क नही पड़ता लोगो की भीड़ ने बता दिया बीजेपी-देवनानी-भदेल-धर्मेन्द्र गहलोत वे बड़े बड़े नेताओ का जनाधार जीत वो है जब लोग खुद आपके लिए धुप में खड़े रहे और नारे लगाये जीत वो है जब लोग खुद आपका स्वागत करे चाहे वो पुष्कर हो या अजमेर फेसबुक हो या whatsapp सभी जगह लोग साथ हो यही जीत है की सुरेन्द्र सिंह की महफ़िलो में लोगो का हुजूम होता है रेल्ली में इतनी भीड़ होती है उगते सूरज को सबकी सलामी होती है पर यहाँ लोगो ने अपना सूरज खुद चुना है ये जीत नही तो कुछ भी जीत नही |

  2. Tejwani ji aapke hisab se bjp ke samanya varg ke parsad-Neeraj Jain,gyan saraswat,j.k.sharma,Joshi vagera koi kabil yogyata nahi rakhata mayer ya dy mayer ke liye,agar Inme se koi eak ka name aage aata aur uske bad agar shekawat dava karta to vo galat karta

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