खोखली नींव पर झूठ की इमारत !

राजेन्द्र हाड़ा
राजेन्द्र हाड़ा
नगर निगम पार्षद का चुनाव लड़ने वाले करीब-करीब सभी प्रत्याशियों हारे हुओं ने भी, जीते हुओं ने भी, राजनीतिक दलों से लड़ने वालों ने और निर्दलीयों ने भी, पिछले दिनों चुनाव लड़ने में हुए खर्च का हिसाब-किताब चुनाव दफतर में पेश किया। इसकी खबर भी बनी। लोगों ने पढ़ी और अखबार मोड़ कर पटक दिया। जैसे कोई गैर मामूली छोटी-मोटी खबर छपी हो। अखबारों ने भी बिना कोई टीका-टिप्पणी किए इस पीआरओ प्रेस नोट को वैसे ही लिया और छाप दिया जैसे बाकी पीआरओ प्रेस नोट्स को अखबार में खाली जगह भरने के काम में लिया जाता है। चुनाव आचार संहिता के मुताबिक पार्षद चुनाव लड़ने वाले का अस्सी हजार से ज्यादा रूपए चुनाव में खर्च नहीं करने थे। इससे ज्यादा खर्च पर चुनाव रद्द हो सकता है। भविष्य में चुनाव लड़ने पर रोक लग सकती है। पार्षद कुर्सी जा सकती है। इसलिए सबने हिसाब दे दिया अस्सी हजार तो छोड़िए चालीस हजार रूपए के भीतर-भीतर। चुनाव आयोग की आचार संहिता के मुताबिक उसके स्थानीय अधिकारी यानि अजमेर के चुनाव अधिकारी को इस खर्च पर पूरी निगाह रखनी थी। चुनाव और उसके प्रत्याशियों की वीडियोग्राफी करवानी। कहीं पर भी यह छाया तक नजर नहीं आई कि चुनाव कार्यालय नामक कोई संवैधानिक संस्था है। धृतराष्ट्र की भूमिका का सच्ची और पक्की तरह पालन अजमेर के अफसरों ने किया। उन्हें भी मालूम था और दिखाई भी दे रहा था कि प्रत्याशियों के खुले आम भंडारे चल रहे हैं जिनमें रोजाना सुबह से लेकर शाम तक चाय-नाश्ता, दोपहर का खाना, दोपहर की चाय, शाम की चाय और रात का खाना साथ में दारू। एक-दो नहीं कम से कम दो ढाई सौ लोग एक पार्षद प्रत्याशी के जीमते थे। उनकी गाडियों में पैट्रोल। रोजाना प्रचार में जाने के लिए जुटाई जाने वाली पचास लेकर दो सौ तक की भीड़ को सौ से लेकर दो सौ रूपए का भुगतान। यह तो भला हो एसपी विकास कुमार का कि उनके खौफ से हरियाणा मार्का तस्करी की दारू की खेप रास्ते में ही जब्त कर ली गई और दारू की सप्लाई भी दबे-छिपे हुई। इसके अलावा कुछ ने अपने मतदाताओं को महंगे गिफट दिए। महिला मतदाताओं को साड़ियां बांटी। मतदाताओं के जाति मंदिरों पर दान दिए। वहां निर्माण कराए। कुछ बस्तियों में टीन शेड तक लगाए। एक प्रत्याशी ने तो सामने वाले प्रत्याशी से ही उसके हारने का सौदा अस्सी लाख रूपए में कर लिया। छूट थी तीन चार पहिया वाहनों की परंतु दर्जन भर से ज्यादा चार पहिया वाहन बैनर पोस्टर लगाए घूम रहे थे। बडे़-बड़े बैनर, कट आउट, फलैक्स, अखबारों में विज्ञापन, खबरें छापने के लिए अखबारों को भेंट पूजा। सब कुछ दस से चालीस हजार के हिसाब किताब में हो गया। नामांकन दाखिले वाले दिन चुनाव अधिकारी के आंगन में ही जिस तरह झंडे, बैनर लहराए जा रहे थे उनका खर्च तक भी चुनाव अधिकारी को पता नहीं होगा। अफसरों की खुद की जिम्मेदारी होती है फिर भी उनका एक रटारटाया मासूम सा जवाब होता है। किसी ने शिकायत ही नहीं की। शिकायत करते तो कार्रवाई जरूर करते। शिकायत करता कौन सभी तो एक थैली के चट्टे-बट्टे थे। राजकीय अफसर के कर्त्तव्य और सर्विस कंडक्ट रूल्स मे बहुत कुछ ऐसा है जो उन्हें स्यो मोटो यानि स्व प्रेरणा से करना होता है। ऐसा किया जाता है किसी को निपटाने या प्रतिशोध के लिए या फिर किसी दबाव में जैसा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के समय में हुआ था। अब कोई करना नहीं चाहता। अभी तो निगम के पांच साल की शुरूआत ही हुई है। लाखों-करोड़ों रूपए खर्च कर बीस-तीस-चालीस हजार का खर्च बता दिया। पार्षद बन गए अब स्मार्ट शहर में खोखली नींव पर झूठ की एक नहीं कई इमारतें खड़ी होंगी। औपचारिकता हो गई पूरी। पार्षदों की तरफ से भी और प्रशासन की ओर से भी। तुलसीदास की रामचरितमानस की चौपाई फिर एक बार सही साबित हो गई समरथ को नहीं दोष गुसाईं।
-राजेन्द्र हाड़ा 09829270160

1 thought on “खोखली नींव पर झूठ की इमारत !”

  1. Shri Rajendra ji hada ji aap bahut lekh likhte hai aur kai lekho mein galat likhte hai aap written papers dikha de ki poora chunav 80000 mein ladna tha aisa kahi nahi likha

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