पुष्कर तीर्थ की कोंन सुने फरियाद

IMG-20150902-WA0009तीर्थनगरी पुष्कर की वर्तमान हालत को देखकर लगता हे की यंहा के लोगो की फरियाद सुनने वाला कोई नही हो और हकीकत भी यही हे जब इन लोगो के राज्य के मंत्री के आदेश भी कोई असर नही करते तो जनता किस खेत की मुली हे जो हो रहा हे होने तो लोग मर रहे हे मरने तो अपना क्या हम तो कुम्भकर्ण की नींद में सो रखे हे अगर किसी में हिम्मत हे तो हमे जगा के तो बताओ साथियों रोज हम पुष्कर की दुर्दशा पर वाटसअप पर आये दिन दिन भर चर्चा करके सिर्फ अपना टाइम पास कर लेते हे पर आज तक देखा जाये तो हकीकत में हम लोगो ने पुष्कर की दुर्दशा करके कुम्भकर्ण की नींद में सो रहे प्रशासन और विधायक और सांसद को कभी जगाने का प्रयास नही किया खेर यह पुष्कर का दुर्भाग्य कहा जायेगा की हमारे विधायक और सांसद होने के बाद भी यह नही के बराबर हे इनको तो पुष्कर के विकास से कोई लेना देना नही हे मगर कम से कम हमारे स्थानीय जनप्रतिनिधियो को तो सोचना चाहिए आज पुष्कर में प्रतिदिन हजारो की तादाद में रामदेवरा जातरु आ रहे हे लेकिन पुष्कर की दुर्दशा को देखकर यह क्या सन्देश लेकर जायेंगे हर कोई की आस्था पर आघात लग रहा हे। सड़के पूरी तरह से टूट चुकी हे आये दिन वाहन चालक दुर्घटना के शिकार हो रहे हे घाटी में लाइटे बंद होने से पैदल आ रहे रामदेवरा जातरुओ को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हे बाजारों घाटो में आवारा जानवरों का जबर्दस्त जमावड़ा हो रखा हे ।हम बस सिर्फ एक दुसरे को दोष देने और टांग खिंचाई और वाट्स अप पर चर्चा तक ही सिमित हो रखे हे लेकिन आज तक किसी ने भी पुष्कर की हो रखी दुर्दशा के बारे में नही सोचा जबकि विभिन्न मंदों से करोड़ो रूपये विकास के आ रहे हे पर यह कहा जा रहा हे किसी को कोई पता नही सब अपना काम सिद्ध करने के लिए एक दुसरे की चापलूसी और गुलामी करने में लग रखे ।

अनिल पाराशर
अनिल पाराशर
अगर हम ए डी ए के खिलाफ लिखे तो इनके एजेंट पेरवी करने आ जाते हे हकीकत में देखा जाये तो आज पुष्कर के यह हालत हो गए की किसी के खिलाफ लिखना भी गलत हो गया आज जमाना सत्य का नही जी हजुरी और चापलूसी करने वालो का हो गया हे। बस बोलो कुछ मत बस देखते जाओ क्या हो रहा हे। बस इसी सोच के कारण आज हम दिन बे दिन बिछड़ते जा रहे हे और हमारे पवित्र तीर्थस्थल की दुर्दशा हो रखी हे ।अगर मेने कुछ गलत लिखा हे तो में आप सभी से माफ़ी चाहता हु पर आज की हकीकत यह ही हे। अनिल पाराशर सम्पादक बदलता पुष्कर

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