पहले अजमेर को रहने लायक सिटी तो बना दीजिए, स्मार्ट बाद में कर लेना

ओम माथुर
ओम माथुर
अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे शहर को स्मार्ट सिटी बनाने का सपना तो दिखाया जा रहा है,लेकिन रोजमर्रा की मुसीबतों से छुटकारा दिलाने पर किसी का ध्यान नहीं

बहुत शोर मचा है,अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने का। आज से नहीं बीते करीब सवा साल से। कई बैठकें हो गई। इन पर लाखों रूपए स्वाहा हो गए। लेकिन चूंकि अब तक कोई गाइड लाइन ही केंद्र सरकार ने जारी नहीं की है,इसलिए कागजों पर कुछ नहीं है। अब जिला प्रशासन लोगों से स्मार्ट सिटी के लिए सुझाव मांग रहा है। नगर निगम ने तो बेहतरीन सुझावों के लिए इनाम का एलान किया है। लेकिन जिस शहर के लोगों को यहां सालों से रहते हुए अजमेर कभी सिटी तक नहीं,लगा वह स्मार्ट सिटी के लिए भला क्या सुझाव देंगे?
छोटी-छोटी समस्याओं को अपनी किस्मत समझकर उनके साथ जीने वाले शांतिप्रिय शहर के परम संतोषी स्वभाव के लोग सोच रहे हैं कि आखिर स्मार्ट सिटी होता क्या है? इसमें कौनसे सुर्खाब के पर लगे होते हैं? ढ़ाबे में खाना खाने वाले किसी व्यक्ति से फाइव स्टार का मीनू पूछा जाए,ठीक वैसे ही प्रशासन उन लोगों से स्मार्ट सिटी के लिए सुझाव मांग रहा है,जो सालों से ये गुहार लगा रहे हैं कि पहले शहर में मूलभूत सुविधाएं जुटाकर इसे रहने लायक सिटी तो बना दीजिए,स्मार्ट तो बाद में बनता रहेगा।
आम समस्याओं से शहर को मुक्ति दिलाने में नाकाम रहे जनप्रतिनिधि और अफसरशाही इस बंजर,बेजार,थके-मांदे,भगवान भरोसे चल रहे शहर को स्मार्ट सिटी के कैसे बनाएंगे,ये तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन फिलहाल तो पुलिस,प्रशासन,नगर निगम,अजमेर विकास प्राधिकरण जैसी एजेंसियां अगर अजमेर को महज सिटी ही बनाने के लिए कुछ कदम उठा लें,तो शहर का उद्धार जाएगा। कैसी विडम्बना है कि शहर के फुटपाथों से अवैध कब्जे हटते नहीं,लेकिन बातें स्मार्ट सिटी की होती है। स्टेशन से टेम्पो-आॅटो वाले हटाए नहीं जाते,बातें स्मार्ट सिटी की होती है। व्यस्त मार्गों,चौराहों व बाजारों में हर कहीं लगे चाट-पकौड़ी के ठेले हटते नहीं,बातें स्मार्ट सिटी की होती है। दुकानदारों ने दुकानों के बाहर कब्जा कर रास्तों को खत्म कर दिया। उन्हें साफ किया नहीं जाता,लेकिन बातें स्मार्ट सिटी की होती है। जेएलएन अस्पताल की दुर्गति सुधारी नहीं जा रही,लेकिन सोचा स्मार्ट सिटी के बारे में जा रहा है। नगरीय वाहनों ने जहां मर्जी हुई,वाहन रोक सवारियां बैठानी शुरू कर दी,ये संभलते नहीं,बातें स्मार्ट सिटी की होती है। जगह-जगह पाइप लाइन लीक हो रही है और लोगों को घरों में पीने का पानी नसीब नहीं हो रहा। लेकिन बातें स्मार्ट सिटी की हो रही है। बिना किसी योजना के जिस विभाग की मर्जी हुई सड़कें खोदकर पटकी जा रही है,इनकी हाथोंहाथ मरम्मत की बात होती नहीं। लेकिन स्मार्ट सिटी की हो रही है। मौहल्लों और गलियों को तो छोड़िए,बाजारों में गंदगी पसरी पड़ी है,वो हटती नहीं लेकिन बातें स्मार्ट सिटी की हो रही है। नाले-नालियां कचरे से अटे पड़े हैं। लेकिन बातें स्मार्ट सिटी की हो रही है।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी अवैध निर्माण टूटते नहीं,बल्कि आए दिन नए बन रहे हैं। लेकिन बातें स्मार्ट सिटी की हो रही है। सालों से पार्किंग का इंतजाम कर नहीं पा रहे,बातें सिटी की करते हैं। सालों से ट्रांसपोर्ट नगर को शहर से बाहर भेजने में नाकाम रहे हैं और बातें स्मार्ट सिटी की करते हैं। प्राइवेट बसों वालों ने पूरे शहर को पार्किंग बना दिया है,इन बसों को हटाने की हिम्मत नहीं होती,बातें स्मार्ट सिटी की करते हैं। शहर के पर्यटन और पुरातत्व महत्व के स्थानों की हालत खस्ता है,लेकिन स्मार्ट के साथ ही हैरिटेज सिटी की बातें हो रही है। सड़कों पर घूमते आवारा जानवर हटाए नहीं जाते,बातें स्मार्ट सिटी की करते हैं। शहर में सड़ते सार्वजनिक मूत्रालयों की सफाई करा नहीं सकते,फिर भी सपना स्मार्ट सिटी का है। आनासागर झील के संरक्षण-संवर्द्धन की कई योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी झील को गंदे पानी का नाला बनने से नहीं रोका जा रहा और बातें स्मार्ट सिटी की करते हैं। और तो और नियोजित विकास का दावा करने वाला एडीए बिना सुविधाओं के अपनी योजनाओं में लोगों को भूखंड आवंटित कर देता। वहां सुविधाएं जुटाई नहीं जाती,बातें स्मार्ट सिटी की करते हैं। ये रोजाना की वो समस्याएं हैं,जिन्हें दूर किए बिना स्मार्ट सिटी की कल्पना करना ही बेमानी है।
तीन-तीन मंत्रियों सहित सत्तारूढ़ दल के पांच-पांच प्रभावशाली नेता केंद्र और राज्य में सत्ता से जुडेÞ हैं। कड़ी से कड़ी जोड़ने के नारे का लोगों ने सार्थक करते हुए सभी चुने हुए प्रतिनिधि भाजपा के जिताए,लेकिन हुआ क्या? सत्ता शहर को अंगूठा दिखा रही है। नेताओं को चिंता ही नहीं है शहर की,सभी अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। एक-दूसरे को निपटाने की जगह अगर ये सभी एक-दूसरे के साथ हो,तो शहर की शक्लो-सूरत बदल सकती है। इनकी रंजिशों के बीच शहर स्मार्ट सिटी बनेगा कैसे? उधर,अफसरशाही है। उन्होंने जनप्रतिनिधियों के बीच दरार को अपना हथियार बना रखा है। बस बैठक करो और स्मार्ट सिटी के लिए प्रेस नोट जारी कराओ। बन गया कागजों में स्मार्ट सिटी। ऊपर जिन समस्याओं का जिक्र किया गया है,क्या उनमें से एक भी ऐसी है,जिसे तत्काल दूर नहीं किया जा सकता। जरूर किया जा सकता है। लेकिन जरूरत है इच्छाशक्ति की,निष्ठा की,ईमानदारी की,स्वार्थों से परे जाकर सोचने की,जेब की तरफ देखे बिना शहर की ओर देखने की। जनप्रतिनिधि और अफसरशाही मिलकर तय कर लें कि हर हाल में शहर को पहले सिटी बनाना है,फिर स्मार्ट।

क्या ये नहीं हो सकता
-नगर निगम,एडीए व पुलिस का एक दल रोजाना फुटपाथों से अस्थाई अतिक्रमण हटाने क्यों नहीं निकल सकता? ये दल बस शहर में रोज घूमकर बस यही एक काम करें। जहां अतिक्रमी दिखे,सीधे उसका सामान जब्त करो। आखिर कोई आदमी कितने दिन तक अपना सामान इस तरह जब्त कराता रहेगा। कभी तो उसे जगह छोड़नी ही पड़ेगी। ऐसा ही दूसरा दल मुख्य बाजारों व मुख्य मार्गों पर यही व्यवस्था अंजाम दें। लेकिन परेशानी ये है कि इन तीन विभागों के कारिन्दों के दम पर फुटपाथों पर कब्जे होते हैं।
-स्मार्ट सिटी के सुझाव मांगने और उन पर इनाम देने से बेहतर है कि जिला कलक्टर,मेयर,एडीए चेयरमैन,एसपी,आटीओ जैसे लोग एक दिन पूरे शहर के यातायात का निरीक्षण कर लें। और अगले दिन से उसे सुधारने के लिए जुट जाएं। एक बार दोपहर व शाम को आगरा गेट से स्टेशन तक ही हो आएं,पसीने छूट जाएंगे। पता चल जाएगा कि आम आदमी किस नर्क से गुजर कर सड़क पर चलता है।
-जिला कलक्टर की अध्यक्षता में जो समिति बनी है,वह तय कर दें कि हर महीने की बैठक में सड़क खोदू सभी विभाग अगले माह की कार्ययोजना बनाकर देंगे। फिर खुदाई का कार्यक्रम बनाया जाए और एक साथ सभी विभाग अपना काम निपटाएं। जलदाय विभाग उसी समय पाइप लाइनें व विद्युत निगम व बीएसएनएल केबल डाल लें। इसके अलावा जो विभाग कभी सड़क खोदें,उसके लिए जिम्मेदारी अफसर पर सीधी कार्रवाई हो। सड़क खोदू अभियान में उन निजी कम्पनियों से भी उनका प्लान लिया जाए,जो कभी 3जी तो 4जी के नाम पर शहर की सड़कों की ऐसी-तैसी करने में लगी है।
-शहर की सफाई के लिए नगर निगम पुख्ता बंदोबस्त करें और नगर पार्षद कसम लें कि कचरे की कमाई के हाथ नहीं लगाएंगे। हर वार्ड में सफाई पर निगरानी के लिए निगम एक तंत्र विकसित करें,जो रोजाना निरीक्षण कर मेयर को रिपोर्ट करें। पार्षद भी सक्रिय रहकर इस दिशा में काम कर सकते हैं। बशर्ते ईमानदारी न छोड़े। सब जानते ठेके लेने के बाद भी शहर को गंदा व कचरायुक्त छोड़कर कितने लोग लखपति बन चुके हैं।
-शहर में पार्किंग स्थल के लिए कई स्थान चिन्हित किए जा चुके हैं। सालों से बस इन पर चर्चा ही हो रही है। कोई पुख्ता कार्रवाई नहीं। स्मार्ट सिटी के सपने देख रहे नेता व अफसर पहले उन स्थानों पर पार्किंग बनवाने की मशक्कत कर लें,जो पहले ही इसके लिए तय किए जा चुके हैं। ताकि शहर को बेतरतीब खड़े होकर यातायात का सत्यानाश करने वाले वाहनों से छुटकारा मिल सके।
-टेम्पो,सिटी बसें और आॅटोरिक्शा शहर की यातायात बदहाली के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार हैं। कब कहां से चल देंगे,कहां रूक जाएंगे,कहां से मुड़ जाएंगे,कोई नहीं बता सकता। प्रदूषण नियंत्रण कानून को ये जहरीली धुएं में उड़ा रहे हैं। स्टेशन के आसपास तो इनका कब्जा कभी भी देखा जा सकता है। क्यों नहीं यातायात पुलिस का एक दल वहां खड़ा रहकर इन्हें व्यवस्थित करता है और जो नियमों को तोड़ता है,उसका लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन रद्द कराने की आरटीओ से कार्रवाई कराई जाती है। लेकिन इसमें पेंच है कि अधिकांश टेम्पो-विक्रम यातायात पुलिस कर्मियों के हैं या फिर उनकी भागीदारी में चलते हैं। जाहिर है ऐसे में वो इन पर कार्रवाई कैसे करेंगे। क्या ये जानकारी एसपी को नहीं है? अगर नहीं है,तो उनके तेजतर्रार होने का क्या मतलब?
-पूरे शहर को एक साथ स्मार्ट सिटी बनाना क्या मुमकिन होगा शायद नहीं? क्या ये बेहतर नहीं होगा कि प्रशासन पहले किसी नए विकसित हो रहे इलाके को स्मार्ट बनाने की कवायद करें। ताकि उसे भी इसमे आने वाले परेशानियों का पता लग सकें और फिर इसे पूरे शहर में लागू किया जा सकेत। तो,स्मार्ट सिटी के सपने दिखा रही सरकार,नेताओं और अफसरशाही से अनुरोध है कि पहले अजमेर को रहने लायक सिटी बनाने का बीड़ा उठाएं,स्मार्ट बनाने के बारे में बाद में सोचें।
ओम माथुर अजमेर 9351315379

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