हड़ताली डाक्टरों के विरुद्ध राजस्थान सरकार को कड़ा रुख ही अपनाना चाहिये

डाक्टरों की सेवा निवृति आयु 65 वर्ष करना न्यायोचित नही

सिद्धार्थ जैन
सिद्धार्थ जैन
राज्य को फिर से रेजिडेंट डाक्टरों की हड़ताल का सामना पड़ रहा हे। भीषण गर्मी के चलते मरीजो की जान पर संकट खड़ा हो गया हे। कहावत हे “करता कोई हे दण्ड और किसी को मिलता हे।” राज्य सरकार ने रेजिडेंट डाक्टरों की उत्तर पुस्तिकाओ को बाहर भेजकर जंचवाने का निर्णय क्या लिया। कि इनको पलीता लग गया। अब इससे क्या फर्क पड़ता हे..! इनको डर किसका हे….? होना तो यह चाहिए था कि रेजिडेंट्स इसका किसी उचित स्तर पर ही विरोध करते। उनका यह स्टेप तो सरासर घातक माना जाना चाहिए। अगर किसी भी रेजिडेंट की यूनिट में इलाज के अभाव में कोई मरीज दम तोड़े। उस चिकित्सक के विरुद्ध “मर्डर” का मुकदमा दर्ज होना चाहिए।

राज्य सरकार बार बार झुक जाती हे। उससे इनके हौसले बुलन्द होते हे। कोई मरीज डाक्टर के साथ बदतमीजी करता हे। हड़ताल का रुख पकड़ लेते हे…! डाक्टर को भगवान मानने वाले मरीज से क्या यह सहज ही अपेक्षा की जा सकती हे भला…? डाक्टर की अति ज्यादती ही यह प्रमुख कारक बनती हे। हाँ…। यह मानने वाली बात हे कि लोकतंत्र के बढ़ते दुरूपयोग के चलते कई दफ़ा डाक्टर्स के साथ ज्यादतियां भी होती हे। तब बात और हे। यो भी अमूमन डाक्टर अप्रोच धारी मरीजो का ध्यान रखते भी हे। ऐसे में उस “फूंक” के चलते आम मरीजो की अनदेखी करने की भूल कर भी हिमाकत नही करनी चाहिए।

लोकतंत्र में राजनेताओं को इसकी भी पूरी निगरानी रखनी चाहिए कि कर्म निष्ठ डाक्टरों को किसी भी प्रताड़ना का सामना नही करना पड़े। डाक्टर्स के “हटाने” “लगाने” के मामलो में भी राजनेताओं की जेब गर्म करने की बाते आम तौर पर सामने आती रहती हे। मै इसे डाक्टरों की कमजोरी ही मानता हू। नही तो… ऐसे भी कई मामले सामने आते रहे हे जब किसी डाक्टर के लिए आम जन समर्थन में खड़ा दिखा। पूर्व में नेत्र रोग विशेषज्ञ(अब से.नि.) डा. अशोक बंसल हो अथवा हाल ही में अमृतकौर चिकि. में कार्यरत नाक कान गला रोग विशेषज्ञ डा. मीणा हो…! समर्थन मे आम लोग खड़े हो गये।

आम तौर पर डाक्टर का वेतन एक लाख रु से भी ज्यादा तक होता हे। … इससे भी ज्यादा वह घर पर कमाता हे। वही विभिन्न जरूरी व गेर-जरूरी जांचो में भारी कमिशन…! दवाईयों में साझेदारी…! और भी कई आकर्षक लाभ…! दूसरी ओर योग्य डाक्टरों को आकर्षक पैकेज पर प्राइवेट अस्पताल अपने यहाँ लेने को आतुर रहते हे। वही दूसरी ओर डिग्री धारक डाक्टरों में भी बेरोजगारी बढ़ती जा रही हे। सरकार को चाहिए कि सेवा निवृति आयु घटाकर पचास वर्ष तक कर दे। जिससे पीछे कतार में लगे युवा डिग्री धारको को मौका मिलता। बेरोजगारी से निजात मिलती। मै भी डाक्टर्स का स्वभाव बहुत ही निकटता से देखता आया हू। यो भी पचपन के बाद इनका अस्पताल में रुझान कम होता जाता हे। कई एक एच्छिक से नि की जुगाड़ में लग जाते हे। फिर सरकार क्यों इनका पैसठ साल तक बोझा ढोने की जुगत में जुट गई हे…..!!!!!

सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राजस्थान)
094139 48333

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