भंवरसिंह पलाड़ा की ताकत को कम आंक रही है वसुंधरा राजे

भंवर सिंह पलाडा
भंवर सिंह पलाडा
रजनीश रोहिल्ला। अजमेर
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे युवा नेता भंवरसिंह पलाड़ा की ताकत को कम करके आंक रही है। विपरीत परिस्थितियों में मसूदा की सीट को करिश्माई तरीके से जीतकर सरकार की झोली में डालने वाले पलाड़ा को अभी तक सरकार में वो स्थान नहीं मिला है। जिसके वो हकदार हैं।
कारण कुछ भी रहे हो लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि सांवरलाल जाट के बाद जिले में भाजपा के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसके पास धनबल और कार्यकर्ताओंं की फौज हो। पलाड़ा ने राजनैतिक क्षेत्र में ईमानदारी से काम करके दिखाया है। पांच साल जिला परिषद और अब मसूदा विधायक के पीछे का ईमानदार दिमाग और काम करने की भावना ने पलाड़ा को नई पहचान दी है।

कभी मोटर साइकिल पर घूमते थे पलाड़ा
आज के पलाड़ा साहब और 25 साल पहले के भंवरसिंह के जीवन में रात दिन का अंतर है। काम की तलाश में पलाड़ा गांव से अजमेर आकर अपने बिजनेस कैरियर की शुरूआत करने वाले भंवरसिंह ने अपने जीवन के शुरूआती दौर में कठिन परिश्रम किया है। उस समय पलाड़ा के पास एक मोटर साइकिल हुआ करती थी। बीच सफर में कभी गड़बड़ हो जाती थी तो पलाड़ा उसे ठीक करके फिर से चला देते थे। आज पलाड़ा की जिदंगी की चकाचौध को देखकर कोई नहीं कह सकता है कि उन्होंने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए कभी दिन-रात भूख प्यास को तिलांजली भी दी है।

जो सोचा वो करके दिखाया
उनके जीवन से जुड़े घटनाक्रमों पर नजर डालें तो एक बात साफ है कि वो जो सोचते हैं, उसे करके ही मानते हैं। उनका यही गुण उन्हें बड़े फायदे तो कभी बड़े नुकसान देता है। असल में दुनिया में जो भी लोग शिखर पर पहुंचे हैं, उनमें इस तरह का गुण देखने को मिलता है। वो रिस्क लेने में हिचकते नहीं है। पलाड़ा के जीवन में रिस्क लेने की अदभुत क्षमता के चार उदाहरण देखने को मिलते है।

पहला – टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनाव लड़ा
पलाड़ा ने पुष्कर विधानसभा सीट से पहला चुनाव लडऩे का निर्णय किया। उन्होंने भाजपा से टिकट मांगा लेकिन नहीं मिला। पलाड़ा ने कोई चिंता नहीं की और चुनाव मैदान में निर्दलीय उतर गए। खुद नहीं जीते, इन चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।

दूसरा – भाजपा से बागी के चुनाव लडऩे की जानकारी होने के बाद भी चुनाव लड़ा
इसके बाद हुए बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने एक बार फिर चुनाव लडऩे का निर्णय किया। इस बार भाजपा से टिकट लाने में कामयाब रहे। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि किसी भी राजनैतिक दल ने ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया जो पिछले चुनाव में उस पार्टी की हार का बड़ा कारण रहा हो। लेकिन पलाड़ा ताल ठोकर टिकट ले आए। इस चुनाव में भाजपा के बागी बनकर श्रवणसिंह रावत ने चुनाव लड़ा और पलाड़ा को हार का सामना करना पड़ा।

तीसरा – जिला प्रमुख का सपना देखा
दो चुनाव हारने के बाद भी हिम्मत वो की वो। इस बार जिला परिषद के चुनाव होने थे। जिला प्रमुख का पद सामान्य महिला के लिए आरक्षित था। इस चुनाव में उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सुशील कंवर पलाड़ा को जिला प्रमुख बनाने की ठान ली। यह चुनाव भी उनके लिए आसान नहीं था। जिले के भाजपा नेताओं के अपने-अपने समीकरण थे। लेकिन सभी भाजपा नेताओं को साथ लेते हुए पलाड़ा आखिरकार अपने मकसद में कामयाब रहे।

चौथा – विपरीत परिस्थतियों में भी मसूदा चुनाव जीता
अब आया विधानसभा का चुनाव। इस बार उन्होंने सुशील कंवर पलाड़ा को बीजेपी से विधायक का चुनाव लड़ाने का मना बना लिया। पुष्कर और अजमेर उत्तर से टिकट की दावेदारी की। नहीं मिल सका। कोई चिंता नहीं की। पार्टी ने मसूदा से लडऩे का ऑफर दिया। पलाड़ा ने दिलेरी दिखाते हुए उसे स्वीकार कर लिया। जिले की सभी आठों विधानसभा सीटों में से मसूदा ही एक सीट ऐसी थी जहां दिलचस्प मुकाबला हुआ। पलाड़ा के सामने कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे वाजिद चीता के साथ अल्पसंखक समाज साथ खड़ा हो गया। वहीं भाजपा से पूर्व विधायक रहे नवीन महाजन ने भी निर्दलीय के रूप पलाड़ा को चुनौती दे दी। पलाड़ा की करिश्माई रणनीति ने उन्हें जीत दिला दी। इस जीत के साथ ही पलाड़ा ने राजनैतिक क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल कर लिया।

रजनीश रोहिल्ला
रजनीश रोहिल्ला
अब संसद की राह पर पलाड़ा
भाजपा से जुड़े राजनैतिक सूत्रों की माने तो पलाड़ा अब संसद की राह के लिए मन बना रहे हैं। अजमेर भाजपा के कद्दावर नेता सांवरलाल जाट अस्वस्थ होने के बाद भंवरसिंह पलाड़ा ही ऐसा नाम है जिसके पास वो सबकुछ हो जो सांसद चुनाव के लिए बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। उनके पास हर क्षेत्र में खुद का निजी नेटवर्क है। उनकी छवि भी अपने लोगों के लिए आधी रात को काम आने वाली बनी है। यदि कांग्रेस से एक बार फिर सचिन पायलट चुनाव लड़ते हैं तो भंवरसिंह पलाड़ा निर्विवाद रूप से कांग्रेस को कड़ी चुनौती देने वाला नाम होगा।
(खुदी को कर बुलंद इतना, कि हर तकदीर से पहले , ख्ुादा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है । भंवरसिंह पलाड़ा के जीवन में यह शेर चरितार्थ होता नजर आता है )

उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

3 thoughts on “भंवरसिंह पलाड़ा की ताकत को कम आंक रही है वसुंधरा राजे”

  1. राजनीति की परिभाषा आज व्यावसायिक हो गई है |फलतः आज भारत कई बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है |

  2. राजनीति में यदि पूरी तरह से ईमानदारी अपनाली जाए तो देश की सभी बड़ी से बड़ी समस्याऐं एक एक कर स्वतः ही समाप्त होती चली जाएगी |

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