भ्रष्टाचार के कनेक्शन

अमित टंडन
अमित टंडन
बिजली विभाग का ठेकेदार सरकारी माल काबाड़ में बेच कर लाखों की रकम बना गया। रिश्वत और कमीशन का इतना गन्दा खेल है कि निजीकरण से ये ऊपरी कमाइयां बंद होने का खतरा पैदा हो गया है। जो ठेकेदार प्रदीप जैन पुलिस को डेढ़ दो लाख रुपये सिर्फ मामला रफा दफ़ा करने के लिए देने को तैयार था, तो सोचो विभाग में ऊपर से नीचे तक कितने बांटता होगा। ना तार लगे ना ट्रांसफारमर, भुगतान कागजी कामों पे उठा लिया। यूनियन के नेता दिखावा और ढोंग करने में लगे हैं, निजीकरण का विरोध, my foot,, सिर्फ कुछ् गिने चुने ईमानदार और सीधे सच्चे कर्मचारियों व् अधिकारियों की आँख में धुल झोंक रहे हैं। नेता भी “खाऊ जमात” का हिस्सा हैं ।
सारे कुँए में भांग है। करोड़ों के घाटे में है डिस्कोम। पिछले पांच सालों में विभिन्न पदों पर भर्ती हुए लड़के लड़कियां तो आते ही खाना सीख गए। वो तो बहती गंगा में ऐसे हाथ धो रहे हैं, जैसे इसी कुम्भ में डूब कर वैतरणी पार करने का मंसूबा है। तमीज़ और संस्कार तो दूर की बात, अचार व्यवहार के संस्कार तक ताक पर रख के काम कर रहे हैं। भ्रष्ट अधिकारियों के मुंह लगे ये दोयम दर्जे के कर्मचारी किसी ईमानदार अधिकारी को तो कुछ समझते ही नहीं, क्योंकि ईमानदार अधिकारी इनकी ऊपरी कमाई में बाधक है। इन पर आकाओं का हाथ है। LDC, कनिष्ठ लेखाकार, data entry operator तय करते हैं कि कौन सा काम किस कर्मचारी को बांटा जाए। HOD तो कठपुतली है इनकी। वो चाहे AO हो या Sr. AO.. उसका हिस्सा इन्ही छुट भइयों के माध्यम से पहुँचता है। इनकी नब्ज़ अपने मातहतों के हाथ में दबी है। वही करता है जो मातहत दबाव बना के करवाते हैं।
ऐसे में मरता कौन है…. ईमानदार अधिकारी व् कर्मचारी।
निज़ाम तो गांधारी बना बैठा है, उसे भी तो हस्तिनापुर का राज़ चाहिए न।
बात करते हैं कि निजीकरण नहीं होने देंगे। सरकार को पता है कि केवट ही नाव डुबो रहे हैं, निजी हाथों में सौंपना मजबूरी है।
किस मुंह से ये निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। यूनियन नेता काम नहीं करते। बेजा दबाव बना कर ईमानदर अधिकारियों से गलत काम करवाना चाहते हैं। प्रेस से सांठ गाँठ कर अपने मन माफिक ख़बरें छपवाते हैं। असली स्टिंग हो तो ये नेता कई घपलों में फंसें।
अधिकतर कार्मिक हरामखोरी कर रहे हैं। बिजली विभाग की कई शाखाएं तो पिकनिक स्पॉट बन गयी हैं। कुछ जगह तो सिर्फ युवा नवनियुक्त लड़कियों का जमावड़ा है। दिन भर गप्प, नए फैशन के कपड़ों पे चर्चा, इसकी बर्थडे और उसकी शादी की सालगिरह की पार्टी। बाकी समय ऑफिस टाइम में मार्केटिंग या होटल रेस्टोरेंट। और कुछ नहीं तो टांग खिंचाई या गॉसिप। काम तो दस प्रतिशत नहीं होता।
सकरार 80 प्रतिशत कार्मिकों को हराम की तनख्वाह दे रही है, निजीकरण ना करे तो क्या करे।
बल्कि निजीकरण होना चाहिए। कम से कम नौकरी जाने के डर से लोग ईमानदारी और लगन से काम तो करेंगे। हरामखोरी और मुफ़्त की रोटियां तोड़ने की परम्परा को ख़त्म करने का कारगर तरीका है निजीकरण। दोष हमेशा सरकारों को देना ठीक नहीं। अधिकारी और कर्मचारी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से काम करते तो ना डिस्कोम नुक्सान में जाता, ना निजीकरण का मुद्दा उठता। सारी मुसीबत की जड़ भ्रष्टाचार यानी रिश्वत और कमीशन का लालच है।
अमित टंडन, अजमेर

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