….ये कैसा है, मंजर, अपने हो रहे बेगाने अपनों के लिए

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
संत अगस्ताईन ने कहा था, – ” आदतों को यदि रोका न जाएतो वे शीघ्र ही लत बन जाती हैं।”
आज एक खबर पढी, जन समस्या के निवारण हेतु एक समिती ने जिला कलक्टर से मांग कीहै, कि, कचहरी रोड का यातायात कम हो, ये लोग अतिक्रमण से भी निजात पाना चाहते हैं। सभी कुछ वाजिब सा लगा, सही है।
लेकिन तभी खयाल आया कि, यह सब गड़बड़ी और ब्लण्डर कर कौन रहा है! अपने ही लोग तो हैं, जो अनियमितता अपनाते हैं। गौरतलब है, अभी इसी शहर में राज्यस्तरीय स्वतंत्रता दिवस बड़ी धूमधाम सै मनाया गया। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे के आगमन से पहले शहर कोकई दिन मेहनत करके उन एरिया को चमकाया गया जहाँ जहाँ से मुख्यमंत्री को आना जाना था। जिला कलक्टर गौरव गोयलने नगर निगम के मेयरश्री गहलोत व एडीए अध्यक्ष शिवशंकर हेडा को साथ लेकर बिना राजनैतिक हस्तक्षेप के सबकुछ चमाचम कराया , ढेर सारा पैसा भी खर्च हुआ। इन्हें मुख्यमंत्री की सराहना भी मिली।
लेकिन इस समारोह के दो दिन बाद ही
जे एल एन अस्पताल के सामने मैडिकल स्टोर वालोंने
वापस अपने काऊन्टर बाहर निकाल लिये। प्रसिद्ध स्मारको के आस पास फिर से ठेले और केबिन अतिक्रमण कर बैठे। साफसुथरी स़ड़कों पर खासकर स्टैशन रोड पर, पशु दिखे तो टैम्पो, सिटी बसों और आटो सहित अन्य वाहनों से ट्रेफिक जाम फिर लगने लगा है। ताज्जुब यह भी कि, लाखों रूपये बरबाद करने और सख्ती के बावजूद हालात “जस के तस।” यानी वही “ढाक के तीन पात।”वाली कहावत चरितार्थ हो रहीहै। इतना ही नहीं। शहर में अवैध ईमारतें बनने लगीहै। पाबन्दी के कागज, कूड़े के हवाले हुए।
यहाँ सवाल उठता है कि, सरकार इतना सबकुछ करती है, लेकिन वो टिकाऊ क्यों नहीं होता ।
जबाव यह कि, अपने ही लोग तो हैं जो, अपनी दूकान या प्रतिष्ठान के बाहर अतिक्रमण को अंजाम देते हैं। वे
अपने ही लोग हैं जो, सड़कों पर हर दिन बेतरतीब वाहन दौड़ाते और मन माफिक पार्क करते कतई – थकते नहीं हैं। पुलिस प्रशासन कब तक चालान बनाए और रोके। कई बार समझाईश के बावजूद लोगों को
बिना हैलमेट चालान कराना मंजूर है, किन्तु अपनी , आदतों में बदलाव पसन्द ही नहीं आता ।
कहीं देखलें, हमारे अपने चाहे किसी धर्म के अनुयायी हो मंदिरों में पूजापाठ हो, राहचलते जातरु हो या कोईऔर धार्मिक आयोजन, बड़े जोर शोर से ‘डीजे साऊण्ड’ के जरिये भगवान को इतने शोर के साथ पुकारते हैं, लगता यह भी, जैसे भगवान कम सुनने लगे हो। ये हो हल्ला का ध्वनी प्रदूषण से आप हम सभी परेशान होने लगते हैं।संगीत या भजन तो ऐसा हो जो ‘कर्णप्रिय’ हो,मन को आनन्दित करे। लेकिन कोई समझना नहीं चाहता? ये भी अपने ही लोग तो हैं। एक और बानगी देखिये, चाय की प्लास्टिक वाली प्यालियाँ , पौलीथीन की थैलिया, केला खाकर फैंके गये छिलके सभी कुछ सड़क की शान में चार चाँद लगात मिलते हैं। सड़कों पर दो दो बार साफ सफाई के बावजूद यह सब इधर से उधर उड़ते दिखते है। यही सब अब कोई नई बात, नहीं लगती।
लगता यही है, जैसे हर दिन यह सब
करना अपना अधिकार मान बैठी है हमारी जनता। ताज्जुब अब और इस लिये भी नहीं होता कि, जब अपढ़ ग्रामीणों के अलावा पढेलिखे फैशनेबल लोग यह करते हैं। लोग इतने खुदगर्ज हो जाएंगे, की अपने ही पालतू जानवरो का दूध निकालकर उन्हे कूड़ा खाने के लिये सड़कों पर छोड़ देंगे, कभीसोचा नहीं गया था।
नगर निगम ने सफाई का ठेका क्या दिया बस, जान सांसत में आगई हो जैसे। ठेकेदार की फर्जी हाजरियाँ, एन्ट्रियाँ, तो इधर रोज लानत मलानत करते लोग कहाँ थकते हैं। बावजूद सबपर मीडिया भारी।
यह सही है कि, दुनिया में सबसे बड़े लोकतन्त्र की दुहाई देते अपने ही लोग खुद अपने अधिकारों की दुहाई तो हर रोज देते हैं लेकिन अपने कर्तव्यो के प्रति जरा भी जागरूक नही रहते। तो क्या अब पालना कराने को, इसके लिये भी, जिला कलक्टर पुलिस अफसर, निगम महापौर, एडीए अध्यक्ष लठ्ठ लेकर पीछे दौड़ते रहें ? क्या स्वयं नागरिकों का फर्ज नहीं बनता कि, वे खुद जैसी व्यवस्था चाहते है, जरिये जागरूक जन प्रशासन का सहयोग लें। क्या हर बार सख्ती से ही सुधरना चाहते हैं लोग ?
समाचारों में अफसरों की खिंचाई, लापरवाही और भ्रष्टाचार की खबरें आती है । रोज पकड़े भी जा रहे हैं पर…..! राजनेता अपने वोटर मानकर ऐसे गलत लोगों की सिफारिश करते हैं, जो
सड़कों पर कब्जा जमाने अतिक्रमण करने और अपने आप को गरीब मेहनतकश बताकर हावी होते रहे हैं। ज्यादा सख्ती करें तो, अफसरों को अपने तबादले का अंदेशा खाये जाता है, तो किसी पचड़े में न पड़ना ही
राहत की सांस दिलाता है। क्या कीजे व्यवस्था भी पूरी दोषी है !
अब आप ही बतलाईये, आपका अपना शहर, किसलिये हो गया है इतना बेगाना। बेतरतीब,
और बेमुरौव्वत, जरा अपना गिरेबाँ भी टटोलिये शायद कोई और हल निकल आए।
किसी ने ठीक ही कहा है, आती नहीं शर्म हर दिन फजीहत कराते हुए, ये कैसा है मंजर अपने हो रहे बेगाने, अपनों के लिये।

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