एसपी नितिन दीप चाहें तो पलभर में कानून का राज आ सकता है

zzzzzएक था कन्हैया भाटिया। अजमेर का नामचीन गुंडा। आप भी सोच रहे होंगे कि आज महाशिव रात्रि है। भोलेनाथ का नाम लेने की बजाय मैं सुबह सुबह गुंडे का नाम ले रहा हूं। कन्हैया भाटिया का नाम मुझे इसलिए लेना पड़ रहा है क्योंकि अजमेर के पुलिस इतिहास में यह ऐसा नाम है जिसने पुलिस को इस बात का अहसास कराया कि तुम पुलिस हो। तुम्हारा अस्तित्व इसी बात में है कि तुम पुलिस ही बने रहो। पुलिस से इतर कुछ भी बनने की कोशिश करोगे तो खत्म हो जाओगे।अजमेर के पुरानी पीढ़ी के पत्रकार, पुलिस कार्मिक, राजनेता और अन्य प्रमुख लोगों को संभवत: भाटिया की याद हो। भाटिया के बारे में नई पीढ़ी के पत्रकारों, पुलिसकर्मियों, राजनेताओं या आम लोगों को शायद ही पता हो।
यह नब्बे के दशक की बात है। तब क्या क्या हो रहा था इस शहर में पहले मैं उसके बारे में आपको थोड़ा बता दूं।
आप लोगों ने पिछले दिनों नोटबंदी के दौरान बैंकों के बाहर नोट बदलवाने, नए नोट लेने-पुराने जमा कराने वालों की भारी भीड़ देखी होगी। यह नब्बे के दशक में लगने वाली भीड़ के सामने कुछ भी नहीं थी। तीन जगहों पर सुबह से लेकर शाम तक हजारों लोगों की भारी भीड़ जमी रहती थी। ये थीं-
1.जुए-सट्‌टे के अड्‌डों पर, 2.सभी सिनेमा घरों पर, 3. और लॉटरी की दुकानों पर।
जुए सट्‌टे के अड्‌डे स्टेशन रोड पर फल मंडी के अंदर, केसरगंज गोल चक्कर के अंदर और डीएवी स्कूल वाली गली में, डिग्गी चौक, श्री टाॅकीज के बाहर, पीर मिट्ठा गली, डिग्गी बाजार, रेलवे बिसिट, हाथी भाटा, जौंसगंज, अलवरगेट, जादूघर, नगरा, रामगंज। ये तो प्रमुख स्थान थे। छोटी छोटी गलियों में चल रहे अड्‌डे अलग थे। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है देश के सट्‌टा-मटका किंग रतन खत्री नंबर जारी करते थे मुम्बई में, उसका बेसब्री से इंतजार रहता था अजमेर में। सट्‌टा कितनी गहरी जड़ें जमा चुका था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अखबारों में उनके परिणाम, शुभ अंक तक छपते थे। ज्योतिषियों की मदद लेते थे।
2. लॉटरी के टिकट की दुकानों पर भारी भीड़ रहती थी। जीपीओ के सामने लक्ष्मी लॉटरी वाला मुख्य डीलर था। यहां से पैदल निकलना भी मुश्किल था, पूरे दिन जाम लगा रहता था। पृथ्वीराज मार्ग, नया बाजार, कचहरी रोड, न्यू मैजेस्टिक सिनेमा के सामने, डिग्गी बाजार, केसरगंज।…. बाप रे बाप, इतनी दुकानें खुल गईं लोगों का भाग्य बदलने वाली कि उस समय का सबसे बड़ा रोजगार ही यही बन गया था। वीकली लॉटरी, इंस्टेंट लॉटरी। आप यूं समझें-आज जिस प्रकार मोबाइल फोन्स की दुकानें चप्पे चप्पे पर खुली हुई हैं वैसा ही हाल लॉटरी के टिकटों की दुकानों का था।
3. छह सिनेमा घर थे। अजंता, मृदंग, श्री, प्रभात, प्लाजा, न्यू मैजेस्टिक। मनोरंजन का सबसे बड़ा और सस्ता साधन था। नई फिल्म लगते ही उमड़ पड़ती थी भीड़। टिकटों की ब्लैक का एक बड़ा धंधा चलता था। सिनेमाघरों के मालिक, कुछ मैनेजर्स, अन्य स्टाफ तक शामिल थे इसमें।
उपरोक्त तीनों धंधे चलाने के लिए गुंडों की जरूरत पड़ती थी। पहली चीज तो यह कि सट्‌टे का धंधा वही चला सकता था जिसके पास गुंडों की फौज हो। लिहाजा इलाके बंटे होते थे, गुंडों की गैंग हुआ करती थी। गुंडे शराब और जुए के अड्‌डे दोनों चलाते थे। उन दिनों एक और गंदा धंधा चल रहा था..वीडियो पार्लर का। इनमें से कई में तो छोटे छोटे बच्चों को अश्लील फिल्में भी दिखाई जाती थीं। यानि हर ओर गुंडों, मवालियों का राज था। आम आदमी की बोलती बंद थी। सिहरे, सहमे रहते थे दुकानदार, उनसे हफ्ता वसूली भी तो होती थी।

प्रताप सनकत
प्रताप सनकत
अब मैं मूल बात पर आता हूं। वो यह कि यह तमाम धंधे पुलिस संरक्षण में चल रहे थे। कुछ राजनेताओं का उन्हें अभयदान था। हर इलाके से पुलिस को बंधी पहुंचती थी। एक सिंडीकेट बन गया था मवालियों-गुंडों, पुलिस और राजनेताओं का। इसी सिंडीकेट का एक बड़ा नाम था कन्या भाटिया। नथरमल उर्फ नत्थूकाणा गैंग का शार्प शूटर। पुलिस को जब कभी भी इन धंधों मेें अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होती थी तो छापेमारी जैसी कार्रवार्ठ होने लगती थी। ऐसी ही एक बड़ी कार्रवाई के बाद कन्हैया भाटिया अजमेर दक्षिण इलाके के डीएसपी साहिब राम चौधरी के सरकारी निवास स्थान पर जा पहुंचा। वहां उसका चौधरी से विवाद हुआ। भाटिया ने रिवाल्वर निकाली और डिप्टी पर गोली दाग दी। निशाना चूक गया। इस घटना ने पुलिस के पैरों तले जमीन खिसका दी। और फिर पुलिस का वो रूप अचानक सामने आ गया जो उसे आम जनता की सेवा के लिए हमेशा बनाए रखना ही चाहिए। फिर गैंगवार का एक बड़ा सिलसिला आरंभ हुआ। अजमेर में ऑर्गेनाइज क्राइम पर सबसे पहले किसी अफसर ने हमला किया वो साहिब राम चौधरी ही थे।
अब समय बदल गया है। जुए सट्‌टे अभी भी चल रहे हैं लेकिन उसमें मुनाफा कम है इसीलिए बड़े क्रिमिनल्स अब प्राॅपर्टी, विवादित प्राॅपर्टी के बड़े मुनाफे वाले धंधे में जा पहुंचे हैं। विक्रम शर्मा, धर्मेंद्र चौधरी, रामकेश मीणा फिलहाल के चर्चित नाम हैं।
धर्मेंद्र चौधरी पुलिस का जवान था। अजमेर पुलिस लाइन में हथियारों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार हुआ था। तत्कालीन आईपीएस दिनेश शर्मा ने पुलिस लाइन की बैरक में छापा मार कर 18 देशी कट्‌टे बरामद किए थे। यह बेहद चिंताजनक था। बाद में यही धर्मेंद्र चौधरी मिशनरीज की जमीनों के धंधे में ऐसा कूदा कि आखिरकार जान से हाथ धो बैठा। रामकेश मीणा तो करीब एक साल पहले भगवानगंज हरीजन बस्ती में मारा गया होता अगर मौके से भागता नहीं। चौधरी और मीणा तो दो नाम हैं जो सामने हैं। इस गैंगवार की असली जिम्मेदार तो पुलिस ही है। क्रिश्चियनगंज थाना पुलिस का मूल काम दरअसल प्रॉपर्टी का धंधा ही है। खाली प्लाटों पर कब्जा करवाना, मोटी रकम निकलवाना, प्राॅपर्टी खाली करवाना यही धंधा रह गया है। इसीलिए तो इस थाना क्षेत्र में जमीनों संबंधी सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं, बड़े पैमाने पर चोरियां, छीना झपटी होती है। पकड़ा कोई नहीं जाता। एटीएम तक उखाड़ कर ले गए।
एक बड़े उदाहरण के साथ बात समाप्त करता हूं…
चंद्र प्रकाश लखारा उर्फ चांदिया। एक बड़ा गुंडा। एक दुकानदार पर तेजाब फैंका। उसकी आंखें हमेशा के लिए खराब हो गईं। नामचीन गुंडा बना, दो तीन एसपी बदल गए मगर चांदिया पर कोई लगाम नहीं कस सका। उसके हौसले बढ़ गए। उसने धमकी देकर दुकानदारों से लाखों रुपए बटोरने शुरु कर दिए। एक बार पकड़ा गया तो कोतवाली थाना पुलिस को उसने इंट्रोगेशन में बताया कि मैं चाहता हूं कि मेरा नाम लेते ही दुकानदार पैसा दे दे। जो नहीं देगा उसकी गर्दन काटकर नया बाजार की चौपड़ पर फुटबाल खेलूंगा। उसकी यह इच्छा अखबारों में भी छपी। उसके गैंग ने तो उस अदालत को फूंक दिया जिसमें मुकदमा चल रहा था ताकि सब सबूत नष्ट हो जाएं। अरसे बाद एक जांबाज पुलिस अफसर कोतवाली में आया। चांदिया के एक कारोबारी पर फायर करने के आरोप में पकड़ा गया। पुलिस रिमांड पर लेकर जा रही थी तब कोर्ट के बाहर एक पत्रकार, एक प्रैस फोटोग्राफर ने अफसर को रोका। उनको बताया कि चांदिया आज इसलिए चांदिया बन पाया क्योंकि पुलिस अरसे से पुलिस नहीं बन पाई। आम आदमी को तो पुलिस जब चाहे ठोक लेती है, ये माई बाप हैं इसलिए इन्हें कुछ नहीं कहती। इसका असर हुआ। कहते हैं उस दिन पुलिस ने चांदिया को अपना असली रूप दिखाया। सुना है करीब दो घंटे तक चांदिया के गुप्तांगों को पुलिस ने जबर्दस्त करंट दिया। दरअसल चांदिया को इससे पहले पुलिस का असली रूप देखने को ही नहीं मिला था। उस टार्चर के बाद से चांदिया की आपराधिक गतिविधियां ही खत्म हो गईं।
यानि यह तय है कि पुलिस अपना असली रूप गुडों पर आजमाए तो स्थायी शांति कायम रह सकती है। पुलिस अधीक्षक डॉ. नितिन दीप सिंह ब्लग्गन अब डीआईजी के पद पर पदौन्नत हो चुके हैं। सिर्फ और सिर्फ एसपी ही एक मात्र वो अफसर है जो जब चाहे पल भर में शांति स्थापित करा सकता है। अन्यथा यह भी तय है कि हर अपराध के लिए उनकी ही स्वीकृति है। हां, रामकेश हत्याकांड के आरोपियों को पकड़कर पुलिस टीम ने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन एक बड़ा सवाल छोड़ दिया है-किशनगढ़ के एक बड़े प्रॉपर्टी कारोबारी की क्या भूमिका रही इसे साफ करना ही चाहिए।

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