ब्यावर नगर परिषद की दोगली नीति इन दिनों आम लोगो में जबरदस्त जगहंसाई का कारण बनी हुई है। जमीन के एक ही मामले में नगर परिषद के दो मुंही निर्णय से परिषद प्रशासन सन्देहों के घेरों में खड़ा नजर आ रहा है। नगर परिषद में कब कौन क्या निर्णय ले ले…! *इस बाबत नगर परिषद की कोई सीनियर “दायी” भी पूर्वानुमान नही लगा सकती है।* आम जनता में से चुने हुए जनप्रतिनिधियो से आशा की जाती है कि वे निष्पक्ष भाव से ब्यावर के हितों की रक्षा के लिए पूर्णतः समर्पित रहते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे। लेकिन साधारणतया ऐसा होता हुआ दिखाई नही दे रहा है। मैं अपने ब्लॉग्स में नगर परिषद को अमूमन *”प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी”* के रूप में परिभाषित करता रहा हू। कई मामलो में मेरा लिखा यह सच भी होता दिखता रहा है।
नगर परिषद की जबरदस्त किरकिरी का ताजा प्रकरण हाल ही उजागर हुआ है। यह मामला ब्यावर में मुख्य मार्ग पर स्थित सनातन धर्म राजकीय महाविद्यालय और एक आवासीय सांखला कॉलोनी सहित अन्य कॉलोनी के बीच खाली पड़ी जमीन का हे। मुख्य मार्ग से पीछे तक इस जमीन पर लोगो के विभिन्न भूखण्ड हे। जिन पर विवाद के चलते कोई निर्माण कार्य नही हो सके हे। *सरकारी कालेज के प्रतिनिधि इसे अपनी मलकियत मानते है… जबकि निजी भू-खण्डधारी अपनी…! पिछले नगर परिषद बोर्ड (कांग्रेस) ने इसे सार्वजनिक भूमि करार देते हुए इसमें आम रास्ता निकाल दिया।* तब नगर परिषद की ओर से स्पष्टीकरण आया कि यह सरकारी जमीन हे। लोकहित में कॉलेज रोड़ को सेंदड़ा रोड़ से सीधे मिला दिया गया। उससे मुख्य मार्गो पर यातायात भार में काफी कमी आएगी। पिछले कुछ वर्षों से ये आम मार्ग के रूप में काम आने लग गया।
हाल ही यह विवाद फिर से तब ताजा हो उठा जब किसी नगर परिषद ठेकेदार ने इस मार्ग के कुछ हिस्से पर अवैध रूप से डामर सड़क का निर्माण करा दिया। बताया जाता है कि यह हिस्सा किसी ट्रस्ट की मलकियत वाला प्लॉट था। *उक्त प्लॉट के ट्रस्ट में सत्ता पक्ष के कुछ लोगो के ट्रस्टी होने से मामला तूल पकड़ गया। इसके चलते आयुक्त के आदेशों से नगर परिषद ने इस डामर सड़क को हाथोहाथ ही उखेड़ डाला।* भविष्य में और किसी अनहोनी की आशंका में ट्रस्टियो ने इस भू-खण्ड पर चार-दिवारी कर कब्जा कर लिया।
यहाँ प्रश्न किसी की मलकियत को लेकर नही है। उसके लिए तो कानून बने हे। जो कि समय आने पर न्याय करेगा। *लेकिन सवाल यह है कि अगर वास्तव में यहाँ लोगो के निजी भू-खण्ड हे तो नगर परिषद ने तब सड़क निकालने की “राठौड़ी” कैसे कर ली…?”* सवाल यह भी खड़ा होता है कि लगभग तीन-चार वर्षों से यह आम रास्ते के रूप में ही प्रयुक्त किया जाता रहा है तो किसी प्लॉट मालिक ने इसे रोकने के लिए क्या कोई कानूनी कार्यवाही के जतन किए…? फिर भी सारे दोष का ठीकरा तो नगर परिषद के ही माथे फूटता हे। उसी की नीयत पर संदेह के बादल गहराते हे। *एक ही सरकारी संस्थान एक ही मामले में अलग अलग दो तरह की कार्यवाही भला कैसे कर सकता है…?* और फिर अब नगर परिषद प्रशासन ने इस कथित आम मार्ग पर स्थित भूखण्ड पर चार दिवारी करने की स्वीकृति दे दी…! उससे यह मान लिया जाना चाहिए कि पूर्व में यहाँ निकाला गया आम रास्ता पूर्णतया अवैध था…? ऐसी दशा में तत्कालीन न प प्रशासन के विरुद्ध कार्यवाही क्यों नही की जानी चाहिए…?? अच्छा तो यह होता कि इतनी लम्बी अवधि में नगर परिषद किसी उचित समाधान पर पहुंच जाती। इससे इस किरकिरी से बचा जा सकता।
*सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राजस्थान)*
*094139 48333*