स्कुलो में बच्चो का जीवन खतरे में, वहा नही है फर्स्ट एड की सुविधा ?

हेमेन्द्र सोनी
हेमेन्द्र सोनी
माता पिता अपने जिगर के टुकड़े ओर अपने नोनिहालो को अपनी सामर्थ्य से भी ऊँची सरकारी और प्राइवेट की ऊँची स्कूल में शिक्षा दिलाना चाहते है और उसके लिए कोई सरकारी और कोई प्राइवेट स्कूलों की तरफ रुख करते है । ताकि उनके बच्चे अच्छी शिक्षा हासिल कर सके ।
सरकारी स्कूलों के फिस की तो लिमिट है , लेकिन क्या आपको पता है प्राइवेट स्कुल वाले भारी भरकम फीस लेने के बाद भी इन स्कुलो में आपको बच्चो को कितनी सुरक्षा उपलब्ध करा पा रही है यह स्कूले ।
आप अपने लाडले जिगर के टुकड़ो को आप जिन स्कुलो के भरोसे छोड़ते है क्या आपने कभी उनकी सुरक्षा के बारे में स्कूल प्रबंधको से चर्चा की है । क्या अपने कभी सोचा है कि यदि स्कूल में रहने के दौरान आपके बच्चे के साथ कुछ दुर्घटना हो जाती है , या खेलते कूदते चोट लग जाती है , या सीढिया उतरते चढ़ते समय पैर स्लिप हो जाता है और वो चोटिल हो जाता है या उनके हल्की फुल्की या कोई गंभीर चोट हाथ पांव या कही लग जाती है, हो सकता है कभी खून भी निकल सकता है या कुछ और घटना घट सकती है, स्कुलो में बच्चो को गेम्स भी ख़िलाये जाते है ओर खेल के दौरान दुर्घटना घट सकती है, तो उस आपात स्थिति में उन स्कुलो के पास क्या क्या सुविधा है जिससे आपके बच्चो को तुरंत फर्स्ट एड मिल सके और बच्चो को तुरंत राहत मिल सके ।
शहर की अधिकांश स्कुलो में नही है फर्स्ट एड की सुविधा ।
क्या स्कूल के पास कोई कम्पाउंडर की पोस्ट भी होती है या नही, क्या स्कुलो के पास फर्स्ट एड बॉक्स की व्यवस्था है या नही, क्या स्कूल के स्टाफ के पास उस आपात स्थिति से निपटने के लिए कोई अनुभव है या नही उन्हें कोई ट्रेनिंग दी जाती है या नही ।
यह समस्या किसी एक स्कुल या एक शहर या एक गाव की नहीं हे यह हालात अधिकाँश स्थानों पर मिल जायेंगे |
जिस प्रकार आज तंग गलियों में और छोटी जगह में कुकुर मुत्तो की तरह स्कुले खुल गई हे और आज कल मल्टी स्टोरी बहु मंजिले स्कुलो का निर्माण भी हो रहा हे, तो यदि उस स्कुल में किसी कारण वश आग लग जाती हे तो क्या उस स्कुल में आग लगने पर उससे निपटने के इंतजाम हे या नहीं ? क्या उस स्कुल ने अग्नि शमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पात्र प्राप्त किया हे या नहीं ? लेकिन अधिकांश अभिभावक कभी भी इन चीजों की तरफ ध्यान नही देते है । मोटी फिसे वसूलने के उपरांत भी बहुत ही कम स्कुलो में इस ओर ध्यान दिया जाता है ।
एसा लगता हे की बड़ी स्कुलो का मुख्य कार्य पढ़ाना ओर पैसा वसूलना बाकी सब भगवान भरोसे ।
अभी 2 दिन पूर्व की ही बात है ब्यावर शहर की जानी मानी प्राइवेट स्कूल जिनमे 1000 से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते है और उस स्कूल में एडमिशन के लिए अभिभावक सब कुछ करने को तैयार रहते है , की किसी भी प्रकार से उस प्रतिष्टित स्कूल में एडमिशन मिल जाये । लेकिन उस स्कूल में शाम के समय खेल के दौरान एक विद्यार्थी को चोट लग गई तो पूरा स्टाफ मुंह देखने लगा कि अब क्या करे क्योकि वह पर फर्स्ट एड बॉक्स की ओर आपात काल से निपटने की कोई व्यवस्था ही नही थी, आनन फानन में अभिभावक को फोन कर बुलाया गया तब उसे अस्पताल ले कर गए तब कही उस बच्चे को प्राथमिक उपचार मिल सका ।
इसी संदर्भ में एक ओर उदाहरण की 20 अप्रेल 2017 यानी कि आज के ब्यावर भाष्कर के पेज 3 पर एक खबर छपी की सरकारी स्कूल में किशनपुरा देवगढ़ निवासी छात्रा पुष्पा पुत्री पूनम सिंह प्राथमिक विद्यालय पटेलों की बावड़ी में खेलते समय चोट लग गई जिसे परिजनों ने अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन उसकी तबियत ज्यादा खराब होने पर ब्यावर रेफर किया गया और ब्यावर लाने के दौरान बीच राह में ही उसने दम तोड़ दिया ।
कितनी दर्दनाक स्थिति हो गई उस परिवार के साथ, उसने ऐसा कभी नही सोचा होगा कि स्कूल में खेल खेल में इतना गम्भीर हादसा हो सकता है ।
यह है इन स्कुलो की हकीकत ।
बच्चो की सुरक्षा के लिए प्रत्येक स्कूल में स्कूल के अंदर नोटिस बोर्ड के पास यह अनिवार्य रूप से लिखवाना चाहिए कि फर्स्ट एड बॉक्स रूम नंबर —– में उपलब्ध है ताकि सभी बच्चो सहित पूरे स्टाफ को यह जानकारी हो ताकि बच्चो के साथ यदि कोई दुर्घटना होती है तो आपात स्थिति में निपटने के लिए इधर उधर भटक कर समय खराब करने के बजाय सीधे उस रूम से फर्स्ट एड बॉक्स ला कर बच्चो को राहत पहुचाई जा सकती है । सभी स्कुलो में स्कुल द्वारा बच्चो की सुविधा के लिए और सुरक्षा के लिए क्या क्या सुविधा उपलब्ध कराई जा रही हे उसकी सूचना का बोर्ड लगा होना चाहिए |
जिन स्कुलो में 100 से ज्यादा बच्चे पढ़ते है वहा पर इस तरह की व्यवस्था अनिवार्य रूप से होनी चाहिए ओर जहां 500 से ऊपर बच्चे पढ़ते है वहा एक एम्बुलेंस भी होनी चाहिए ।
यदि अभिभावक जागरूक नही हुए तो यह स्कूले आप से फिसे लेने के बावजूद भी आपके बच्चो को सुरक्षा नही देंगे ।
हम यह जानते है की हमारे लिए हमारे बच्चे का जीवन पहले हे और शिक्षा उसके बाद है ।
बच्चे का जीवन दाव पर लगा कर शिक्षा शायद किसी भी अभिभावक को मंजूर नही होगी ।
*जागो ग्राहक जागो*
हेमेन्द्र सोनी @ BDN जिला ब्यावर

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