मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का शिविर : अब लकीर पीटने से क्या?

कैसी विडंबना है कि एक ओर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसरसंघ चालक मोहन राव भागवत सहित संघ के अन्य कार्यकर्ता हिंदुत्व की अनूठी परिभाषा पर प्रयोग करते हुए मुसलमानों को भी हिंदू मान रहे हैं, क्योंकि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू ही है, तो दूसरी ओर इसी सिलसिले में हिंदुओं की आस्था के केन्द्र तीर्थराज पुष्कर में आयोजित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के शिविर को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। एक ओर जहां दरगाह कमेटी के सदस्य इलियास कादरी व कुछ अन्य मुस्लिम नेताओं ने शिविर पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से शिविर की गहन जांच की मांग की है, वहीं अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने पलट वार करते हुए शिविर पर अंगुली उठाने को चंद लोगों की बौखलाहट करार दे दिया है।
अव्वल तो पूर्व घोषित शिविर हो जाने के बाद उस पर सवाल उठाना सांप निकल जाने के बाद लकीन पीटने के समान है। अगर परेशानी इस बात पर थी कि दरगाह बम विस्फोट के कथित आरोपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने इसमें कैसे शिरकत की तो यह तो पहले से ही तय था कि वे इस शिविर को संबोधित करेंगे। तब किसी को कुछ नहीं सूझा और अब सवाल ये उठाया जा रहा है कि शिविर की अनुमति ली गई थी या नहीं। यदि ऐसा शिविर आयोजित करना कानूनन गलत था तो उस पर पहले ऐतराज किया जाना चाहिए था। हालांकि जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने यह कह कर कि पल्ला झाड़ लिया कि जांच के बाद ही बता पाऊंगा कि शिविर के लिए अनुमति ली गई या नहीं, मगर प्रो. देवनानी तो यह कह कर विरोधियों का मुंह बंद करने की कोशिश की ही है कि ऐसे शिविर हेतु प्रशासन से किसी प्रकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। शिविर कोई गोपनीय नहीं था, शिविर के संबंध में मीडिया को पूरी जानकारी थी तथा मीडिया ने शिविर में वक्ताओं द्वारा व्यक्त राष्ट्रवादी विचारों को प्रमुखता से छापा भी है।
वक्ताओं द्वारा गैर जिम्मेदाराना बयान एवं सामाजिक व धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले भाषण दिए जाने की बात सिर्फ कादरी ही कह रहे हैं। अखबारों में तो ऐसा कुछ नजर नहीं आया। इस मामले में देवनानी की यह बात सही है कि जब भी हिंदू-मुस्लिम एकता की बात होती है, चंद लोगों के पेट में मरोड़ उठने लगते हैं, जो मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में प्रयोग करते हैं और कट्टरता व धार्मिक उन्माद फैलाकर उनके विकास व उन्नति को अवरुद्ध करते हैं। मजहब के नाम पर आपस में बांटकर राजनीति करने वालों व कुछ स्वार्थी तत्वों को देश में भाईचारा बढ़ाने के लिए किए जा रहे अच्छे काम गले नहीं उतर रहे हैं। कादरी की यह बात जरूर सही है कि शिविर में कुछ अज्ञात मुल्लाओं व कुछ अजनबी मुसलमान चेहरों को एकत्रित किया गया था। इसमें स्थानीय मुसलमानों की मौजूदगी नगण्य ही थी।
रहा सवाल इंद्रेश कुमार का तो देवनानी के इस तर्क में जरूर दम है कि सरकार एवं जांच एजेंसियां उन पर लगाए गए किसी आरोप को सिद्ध नहीं कर पाई है, मगर कादरी की यह बात भी सही कि जांच एजेंसी व अदालत ने उन्हें अभी क्लीन चिट नहीं दी है। मीडिया को भी पता नहीं कि वे पाक साफ हैं, इस कारण जब मीडिया ने इस बारे में स्वयं इंद्रेश कुमार से सवाल किए तो वे बौखला गए और मीडिया से बात करने से ही मना कर दिया। बाद में बमुश्किल राजी हुए।
जहां तक शिविर के मकसद का सवाल है, अपुन को एक तो यही लगा था कि यह मुस्लिमों को संघ से जोडऩे की कवायद है और इसके लिए हिंदुओं के तीर्थस्थल पुष्कर को चुनना सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। दूसरा इसके बहाने शिविर संयोजक सलावत खान पुष्कर में चुनावी जमीन की तलाश कर रहे हैं। षडय़ंत्र जैसा कुछ नहीं। मगर कांग्रेस विचारधारा वाले मुस्लिमों के लिए यह षडय़ंत्र के समान ही है, क्योंकि उनकी झोली में पड़े मुस्लिमों में संघ सेंध मारने की कोशिश कर रहा है।
हां, इस पर जरूर मतभिन्नता हो सकती है कि संघ मुस्लिमों को भी हिंदू बता कर उन्हें मुख्य धारा में लाना चाहता है, इसमें पूरी ईमानदारी है या फिर केवल वोटों की राजनीति। ये सवाल महज इस कारण उठता है कि मुसलमानों को अपना भाई कहने में जुबान को कोई जोर नहीं आता, मगर धरातल का सच ये ही है कि दिल को बड़ी तकलीफ होती है। कम से कम संघनिष्ठ और हिंदूवादियों को। कदाचित हिंदू-मुस्लिम के बीच इस खटास का ही परिणाम है कि पूर्व सर संघ चालक कु सी सुदर्शन और इंद्रेश कुमार के साथ फोटो खिंचवाने पर खादिम सैयद अफशान चिश्ती का विरोध शुरू हो गया है। खादिमों ने अंजुमन मोईनिया फखरिया चिश्तिया खुद्दाम सैयद जादगान को पत्र लिख कर खादिम के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
खैर, अब शिविर के मसले पर जो कुछ भी आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं, वे लकीर पीटने के समान है और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील अजमेर की सेहत के लिए तो अच्छा नहीं है।

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