किन्नरों पर सुप्रीम कोर्ट ने की बडी मेहरबानी

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हमारे देश में किन्नरों को किन-किन नामों से नहीं पुकारा जाता? हिजड़ा, जोगप्पा, कोठी, अरावनी, शिवशक्ति, तिरु नंगई, बृहन्नला, शिखंडी, नपुंसक आदि नाम देकर हम अपने ही भाई-बहनों और अपने ही नागरिकोें को इंसान मानने से मना करते हैं। हम उनका अपमान करते हैं, उनकी हंसी उड़ाते हैं और हम उन्हें अस्पृश्यों से भी अधिक अस्पृश्य मानते हैं। उन्हें नागरिक अधिकारों से वंचित कर देते हैं। वे कोई काम-धंधा नहीं कर सकते। वे जानवरों की तरह झुंड बनाकर रहते हैं। अपना पेट पालने के लिए वे सस्ते नाच-गानों का सहारा लेते हैं। वे फूहड़ हरकतें करने के लिए जाने जाते हैं। कुछ मांगलिक अवसरों पर उनकी उपस्थिति शुभ मानी जाती है। वैसे उन्हें देखते ही लोग अपने घर के दरवाजे बंद कर लेते हैं। उनकी जिंदगी भिखारियों से भी ज्यादा दर्दनाक है।
अब हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने किन्नर नामक इस समुदाय पर बड़ी कृपा की है। उसने समस्त सरकारों को निर्देश दिया है कि उन्हें नागरिक की मान्यता दी जाए। उन्हें मताधिकार दिया जाए। उनके लिए नौकरियों तथा अन्य सरकारी सुविधाओं में आवश्यक आरक्षण दिया जाए। जन-गणना में उन्हें शामिल किया जाए। पूरे भारत में उनकी संख्या 50-60 लाख मानी जाती है। इस बार 22000 किन्नरों को मताधिकार मिला है। कुछ शहरों में किन्नरों ने चुनाव भी लड़े हैं। एक किन्नर को महापौर बनने का भी मौका मिला है। अब न्यायालय के इस फैसले के बाद केंद्र और राज्यों की सरकारों से यह आशा की जाती है कि वे किन्नरों की सहायता, रोजगार और विकास के लिए विशेष संगठन खड़े करेंगे और उन्हें सभ्य नागरिकों की तरह जीने का मौका देंगे।
राज्य तो ये सब काम करेगा ही, लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी है-समाज का नज़रिया बदलना! समाज को पता होना चाहिए कि जिन स्त्री और पुरुषों को हम ‘हिंजड़ा’ कहकर उनकी मज़ाक उड़ाते हैं, उनमें और हम में सिर्फ एक ही फर्क है। वे संतानोत्पत्ति नहीं कर सकते क्योंकि या तो उनकी जननेंद्रिय नहीं होती या उसे भंग कर दिया जाता है या वे असमर्थ होते हैं। शेषी सभी प्रवृत्तियां, इच्छाएं, कामनाएं, शक्तियां, दुर्बलताएं उनमें वैसी ही होती हैं, जैसी कि सामान्य मनुष्यों में होती हैं। बल्कि उस एक अक्षमता के कारण कभी-कभी उनमें अनेक असाधारण क्षमताओं के दर्शन होते हैं। भारत, यूनान, यूरोप, ईरान और चीन के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि नपुंसक होने के बावजूद कई लोग महाराजा, सेनापति, महामात्य, महापंडित, महाबली, राजदूत, महान कलाकार और संत बने। उनका आचरण अनुकरणीय रहा। ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्तियों का उल्लेख महाभारत, बाइबिल, कुरान और यूनानी कथाओं में भी मिलता है। ऐसे लाखों लोगों को हम पशुतुल्य जीवन जीने के लिए मजबूर क्यों करें? हमारी सामान्यता, सच्ची सामान्यता तभी कहलाएगी जब हम इन असामान्य लोगों के साथ अपने-जैसा व्यवहार करें।
डा.वेदप्रताप वैदिक

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