आज़म खान के जुमलों के इर्द-गिर्द घूमती भारतीय राजनीती

azam khan-मो.आमिर अंसारी- मो.आज़म खान भारतीय राजनीत का एक ऐसा नाम जिसके एक-एक शब्द पर हिन्दुस्तानी सियासत में भूचाल आ जाता है! अगर आज़म खान कोई साधारण बात भी कहते हैं तो तमाम मीडिया चैनल इसे भारतीय राजनेताओं के सामने एक बहस के रूप में पेश कर देते हैं ! हाल के दिनों में मो.आज़म खान के मुख से कुछ ऐसे जुमले निकले जिन्होंने लोकतंत्र के सबसे बड़े महाकुंभ में सुनामी का काम किया है मसलन जब आज़म खान ने अमित शाह को गुंडा कहा तो भाजपा नेताओं का तिलमिलाना स्वभाविक था लेकिन मीडिया ने भी इस जुमले पर दिन भर चर्चा-परिचर्चा करते हुए मामले को गर्म रखा अभी यह मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि आज़म खान का अमित शाह पर दूसरा वार इस जुमले के साथ होता है कि वह(अमित शाह ) कोई मामूली गुंडा नहीं है बल्कि वह तो अंतर्राज्यीय गुंडा है ! इस जुमले ने तो मीडिया की मनो बल्ले-बल्ले ही कर दी , फिर पूरे दिन मो.आज़म खान का चेहरा समस्त चैनलों पर दिखाई देता रहा ! विवाद बढ़ता देख मो.आज़म खान ने अपने कथन की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायलय के उस आदेश को दुनिया के सामने पेश कर दिया जिसमे कहा गया था कि जब तक यह केस सर्वोच्च न्यालय में विचाराधीन है तब तक अमित शाह गुजरात की सरहदों में प्रवेश नहीं कर सकते !
अब मीडिया को तलाश थी आज़म खान के नए ऐसे जुमले की जो मीडिया की टी.आर.पी. भी बढ़ाये और भारतीय राजनीत में नयी हलचल भी पैदा कर दे, तो मीडिया की इस तमन्ना को आज़म खान ने यह कहते हुए पूरा कर दिया कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी हम मुसलामानों को पिल्लै (कुत्ते के बच्चे) की संज्ञा से संबोधित करते हैं अगर हम पिल्लै है तो हमारे बड़े भाई नरेंद्र मोदी है और पिल्लै का बड़ा भाई तो कुत्ता ही हुआ !
आज़म खान के इस ब्यान ने राजनैतिक गलियारों में एक नयी बहस को जन्म दे दिया इसी बहस के बीच कई महीनों से कैमरों की चमक से दूरी बनाये हुए नरेंद्र मोदी रजत शर्मा के कार्यक्रम “आप की अदालत” हाज़िर हुए यह अलग बात है कि इस कार्यक्रम की निष्पक्षता पर तमाम मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा प्रश्न वाचक चिन्ह लगाते हुए कहा जा रहा है कि मोदी द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम रजत शर्मा ने “आपकी अदालत” में पैश किया है !
बारहाल मैंने यहां रजत शर्मा के साक्षात्कार पर नहीं बल्कि आज़म वाणी के बाणों पर चर्चा करने के लिए यह आर्टिकल लिखना शुरू किया है ! और रजत शर्मा द्वारा लिए गए नरेंद्र मोदी के साक्षात्कार का ज़िक्र यहां इसलिए लाना ज़रूरी था क्यूंकी जिस प्रकार आज़म खान ने अप्रत्यक्ष रूप से मोदी को कुत्ते की संज्ञा दी थी उन्ही जुमलों को सवाल की शक्ल में रजत शर्मा ने मोदी के सामने यह कहते हुए रखा कि मो.आज़म खान ने कहा है कि यदि हम पिल्लै हैं तो हमारा बड़ा भाई तो कुत्ता ही होगा और मोदी हमारे बड़े भाई हैं !इस सवाल के जवाब में नरेंद्र मोदी ने आज़म खान का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि ” थैंक यू ! कुत्ता एक वफादार जानवर होता है ”
जब मसालेदार ख़बरों की तलाश में घुमते मीडिया ने मोदी के जवाब के बाद फिर मो.आज़म खान की ओर अपना रुख किया और सवाल करते हुए मीडिया कर्मियों ने मो.आज़म खान से पूंछा कि आपने मोदी को अप्रत्यक्ष रूप से कुत्ता कहा था लेकिन उन्होंने तो आपके इस जुमले को सुनने के बाद आपको थैंक यू कहते हुए कुत्ते को एक वफादार जानवर बताया है ! इस पर भी आज़म खान का दो शब्दों का ऐसा जवाब था जिसने राजनैतिक समीक्षकों के ज़हन में कई सवालों को कौंधने के लिए एक साथ छोड़ दिया क्यूंकी आज़म खान ने मोदी के जवाब को लाजवाब करते हुए कहा कि मोदी इतने बड़े पद के उम्मीदवार है हम चाहते हैं कि वह हैवान (जानवर) नहीं बल्कि इंसान बने अल्लाह ने उन्हें अशरफुल मख्लूक़ बना कर पैदा किया है और सनातन धर्म के अनुसार भी उन्होंने सर्वश्रेष्ठ योनी में जन्म लिया है कुत्ता कितना भी वफादार क्यों नहीं हो जाये लेकिन वह रहता तो जानवर ही है ना, इसलिए मोदी इंसान बनने की कोशिश करें यह उनके लिए भी बहतर होगा और मुल्क के लिए भी !
मो.आज़म खान की वाणी पर अभी मुल्क में चर्चा सरगर्म थी तभी लोकतंत्र के इस महापर्व की चुनावी गर्मी को ओर गर्म करने के लिए आज़म खान का एक ऐसा ब्यान मंज़र-ए-आम पर आ गया जिसने पूरे मुल्क में एक बवंडर खड़ा कर दिया और वह ब्यान था मुल्क की उस आबादी के राष्ट्र प्रेम के योगदान का जिसको आज़ादी के लगभग ७ दशक गुज़र जाने के बाद भी यह नारे फिरकापरस्त ताकतों द्वारा सुनने पड़ते हो कि इनका मुकाम कब्रस्तान या पाकिस्तान !
आज जब हम मुल्क की तरक़्क़ी की बड़ी-बड़ी बातें करते हों और मुल्क की एक चौथाई आबादी को देश का दुश्मन और देश का गद्दार मानते हों तब हम मुल्क की तरक्की का ख्वाब कैसे देख सकते हैं ! आज़म खान ने इसी समाज की पीड़ा को ब्यान करते हुए कहा कि कारगिल विजय में मुस्लिम समाज की अहम भूमिका थी अगर हमें प्यार करोगे और हमें सेना में हिस्सेदारी दोगे तो हम सरहदों की हिफाज़त के लिए अपनी जान हँसते-हँसते न्योछावर कर देंगे ! बस आज़म खान के यही देशभक्ती की भावना से लबरेज़ जुमले मुल्क के फिरकापरस्तों और टी.आर.पी. के भूखों को इतने कष्ट दायक लगे कि उन्होंने इस मामले में चुनाव आयोग से शिकायत कर दी और वह चुनाव आयोग जिसका कार्य निष्पक्ष चुनाव कराना है !
उसी चुनाव आयोग ने राष्ट्र निर्माण और सरहदों की हिफाज़त में दिए गए मुसलामानों के योगदान के तज़्कीरे को धार्मिक भावनाएं भड़काने की संज्ञा दे दी तथा कमज़ोरों की मज़बूत आवाज़ आज़म की वाणी पर बैन लगा दिया और ज़ुल्म यह कि जो नोटिस चुनाव आयोग ने आज़म खान को भेजा था उसका जवाब पढ़े बिना ही चुनाव आयोग ने अपनी कार्यवाही कर दी , तब राजनैतिक और बौद्धिक समाज में यह चर्चा शुरू हो गयी कि कल जब देश की सर्वोच्च न्यायलय ने सी.बी.आई. को केंद्र सरकार के पिंजरे में कैद तोते की संज्ञा दी थी तो क्या अब एक ओर प्रशासनिक संस्था इस पिंजरे में एक मैना के रूप में क़ैद हो गयी है तथा तोता-मैना की इस जोड़ी का इस्तेमाल सत्ताधारी दल अपने विरोधियों की आवाज़ बंद करने के लिए करने लगा है !
देश के राजनैतिक, प्रबुद्ध, शिक्षित तथा धर्मनिरपेक्ष समाज में यह चर्चा इसलिए भी गूँज रही थी चूंकि हाल के चार राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के दौरान राहुल गांधी के इंदौर में दिए गए उस ब्यान पर भी चुनाव आयोग ने नोटिस जारी किया था जिसमे उन्होंने मुज़फ्फरनगर के दंगा पीड़ितों को आई.एस.आई का एजेंट होने की बात कही थी लेकिन इसे विडंबना नहीं तो क्या कहे कि धार्मिक भावनाएं भड़काने के इस आरोपी की ज़बान पर आज तक चुनाव आयोग द्वारा ताले नहीं डाले गए ! एक तरफ तो उसी समाज द्वारा कारगिल की जीत में अहम योगदान का ज़िक्र करने वाले आज़म खान की वाणी पर प्रतिबंध और उसी समाज को पाकिस्तानी एजेंट कहने वाले युवराज पर कोई प्रतिबंध नहीं इसे हम पक्षपात पूर्ण कार्यवाही नहीं तो क्या कहें ? केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह भड़काऊ भाषण दे तो वाणी पर रोक नहीं, केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा भड़काऊ भाषण दे तो भी भाषण पर बैन नहीं ,केंद्रीय मंत्री शरद पवार यदि यह कहे कि एक व्यक्ति को दो जगह जा कर स्याही पोंछ कर मतदान करना चाहिए तो यह भी चुनाव आयोग की निगह में कोई असंवैधानिक कृत्य नहीं है ? इमरान मसूद भड़काऊ भाषण दे तो भी इमरान मसूद की वाणी पर रोक नहीं, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया खुले आम एक समाज विशेष के चुनाव के बाद टुकड़े-टुकड़े करने का भाषण दे तो भी चुनाव आयोग की नज़र में यह दहशत और भावनाओं को भड़काने वाले जुमले नहीं ? कर्नाटक के मुख्यमंत्री असंसदीय भाषा का इस्तेमाल सरे आम करे तो भी इनकी भाषा पर प्रतिबंध नहीं ? भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी एक समाज विशेष को पिल्लै की संज्ञा दे ,गुलाबी क्रांति की बात कर समाज विशेष और देश में धार्मिक भावनाए भड़काने का कार्य करें तब भी चुनाव आयोग की तरफ से इस प्रकार की भड़काऊ भाषा पर रोक नहीं ? अगर अमित शाह पश्चिम उत्तरप्रदेश में खुले आम बदला लेने की भावना को भड़काएं तो कार्यवाही के साथ-साथ माफी तथा आज़म खान भारतीय सरहदों की हिफाज़त में मुसलमान सैनिकों का योगदान बताएं तो वाणी पर प्रतिबंध और सेना की कुर्बानियों को नज़र अंदाज़ करते हुए मोदी यदि उद्योग जगत के लोगों को संबोधित करते हुए यह कहे कि व्यापारी सरहद पर खड़े सैनिकों से ज़्यादा साहसी है तब भी चुनाव आयोग की निगाह में मोदी के यह जुमले आपत्तिजनक नहीं ? आखिर क्यों ????
इन तमाम घटनाक्रमों के पश्चात सिर्फ और सिर्फ मो.आज़म खान की वाणी पर रोक चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर ही एक सवालिया निशान लगा देती है ! यदि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर ही राजनीतिक तथा शिक्षित समाज में चर्चाएं होना शुरू हो गयी तो फिर हम यह उम्मीद कैसे कर सकते है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में जो चुनाव निष्पक्ष होना चाहिए थे यदि वह इसी तरह के पक्षपात पूर्ण रवैये के साथ संपन्न हो गए तो क्या देश में लोकतंत्र पर ही एक बड़ा ख़तरा तो नहीं मंडराने लगेगा?

4 thoughts on “आज़म खान के जुमलों के इर्द-गिर्द घूमती भारतीय राजनीती”

  1. आजमखान जैसे लोग मीडिया की ही उपज है जिसने अपने लिए टी आर पी का एक माध्यम बना लिया है. रही सही कसार कुछ तथाकथित पत्रकार व लेखक लेख लिख पूरी कर देते हैं.भारतीय राजनीती को कबाड़ बनाने का काम इस चुनाव में जैसा इन लोगों ने किया है इस हेतु इन सब को दोषी ठहराया जाना जरुरी है.लेखक महोदय की आजम खान के साथ सहानुभूति भरा यह लेख भी इसी क्रम की एक कड़ी प्रतीत होता है जो पत्रकारिता के लिए चिंतनीय है.कहीं यह भी पेड न्यूज़ की मिसाल न बन जाये.

  2. मोदी भी तो मीडिया की ही उपज हैं, यही मीडिया जब मोदी की लहर पैदा कर रहा है तो आपको बहुत अच्छा लगता है

  3. Yaha bhi?????? Hahahaha……Mahendra Gupta ji aap modi ke अंध भक्त ghoshit kar diye jaoge……rahul ke supporter bhakt…..baki party ke supporter andhbhakt…….lage raho guru……jai ho……16 may aane wali hai…..

  4. वे तो स्वीकार कर ही रहे हैं कि उन्हें तो अधिकार है

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