इन चार कारणों से बुलेट ट्रेन का सपना दिखा कर गलती कर रही है मोदी सरकार

modi_pmदिल्ली-आगरा रूट पर तीन जुलाई को अधिकतम 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सेमी हाई स्पीड ट्रेन चलाई गई। यह परीक्षण सफल रहा!ब्रिटेन और फ्रांस ने जब कॉन्कोर्ड सुपरसोनिक विमान सेवाओं की शुरुआत की थी तो इसकी काफी तारीफ हुई थी। इससे न्यूयॉर्क और लंदन के बीच की आठ घंटे की दूरी महज साढ़े तीन घंटे में सिमट गई थी। लेकिन जल्द ही दोनों देशों को भान हो गया कि कॉन्कोर्ड सेवा एक सफेद हाथी की तरह है। जबर्दस्त घाटे के बाद आखिर इसे 2003 में बंद कर दिया गया। रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने बजट में जब देश में बुलेट ट्रेन चलाने की बातकही तो इस बात पर बहस शुरू हो गई कि क्या वाकई भारत को इस तरह के ट्रेनों की जरूरत है और ऐसा कर कहीं हम ब्रिटेन-फ्रांस की गलती को ही तो नहीं दुहराएंगे?
कई विशषज्ञ जहां इस प्रोजेक्ट की राह में पैसे को सबसे बड़ा रोड़ा मान रहे हैं, वहीं कुछ का मानना है कि भारत में बुलेट ट्रेन चलानाफिलहाल फायदे का सौदा नहीं है।क्या है ऐसा मानने के पीछे वजह, जानते हैं :
पहला :बुलेट ट्रेन के जरिए दो शहरों को जोड़ने वाले प्रोजेक्ट में अगर 60 हजार करोड़ रुपए का खर्चा आता है तो आर्थिक तौर पर इसे सही नहीं कहा जा सकता। इस तरह के प्रोजेक्ट से सालाना कम से कम पांच से छह हजार करोड़ रुपए का मुनाफा होगा, तभी उधार और पूंजी लागत की भरपाई हो सकेगी। गौड़ा ने अपने भाषण में कहा था कि रेलवे 12,617 ट्रेनों के जरिए हर दिन 2.3 करोड़ मुसाफिरों को ढोता है। यानी एक ट्रेन से सफर करने वाले मुसाफिरों की तादाद सालाना दस लाख से भी कम है। ऐसे में, अहम सवाल यह है कि क्या बुलेट ट्रेनों में इतने पैसेंजर सफर करेंगे, जिससे उसका खर्च निकल सके।
अगर यह मान लिया जाए कि बुलेट ट्रेनों में सालाना 10 लाख मुसाफिर सफर करेंगे तो हर साल 6,000 करोड़ रुपए का मुनाफा उगाहने के लिए हर यात्रा का सालाना सर्विसिंग कॉस्ट 60,000 रुपए होना chahiye
दूसरा :बुलेट ट्रेन मुख्यत: वैसे लोगों के लिए होती है, जो पैसे से ज्यादा वक्त को तरजीह देते हैं। इसका सीधा मतलब है कि इस तरह की ट्रेनें अमीर तबके के लिए होती हैं। ऐसे वक्त में जब सरकार टिकट की कीमतें बढ़ाकर गरीब पैसेंजरों को भी राहत देने के मूड में नहीं है, अमीर पैसेंजरों के लिए बुलेट ट्रेन चलाना और सब्सिडी रेट पर टिकट मुहैया कराना कहीं से जायज नहीं होगा।
तीसरा :बुलेट ट्रेनों के लिए बिल्कुल नए इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होगी। नई पटरियां बिछाने के अलावा और भी कई चीजें बदलनी होंगी। इसके लिए काफी भूमि का अधिग्रहण करना होगा। पिछली यूपीए सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए जो कानून बनाया है, उसके हिसाब से देखें तो मुंबई-अहमदाबाद रूट पर इस काम में जो रकम खर्च होगी और जितना वक्त लगेगा, वह बहुत ज्यादा होगा। इसमें पांच साल का वक्त भी लग सकता है। इतने वक्त में प्रोजेक्ट की लागत बढ़ जाएगी। इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि मुंबई-अहमदाबाद रूट पर कई बड़े शहर आते हैं और यहां जमीन की कीमतें काफी ज्यादा होंगी।
चौथा :मुंबई-अहमदाबादके बीच की दूरी 550 किलोमीटर है। 160-200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली हाई स्पीड ट्रेन इस दूरी को तय करने में साढ़े तीन घंटे का वक्त लेगी। अगर इसमें वाई-फाई और अन्य बढ़िया सेवाएं मिलेंगी तो वक्त को अहमियत देने वाले किसी बिजी शख्स के लिए भी यह घाटे का सौदा नहीं होगा। इसलिए सवाल यह है कि कोई शख्स कम किराए वाली हाई स्पीड ट्रेनों को छोड़कर बहुत ज्यादा किराए वाली बुलेट ट्रेनों में सफर क्यों करेगा, वह भी सिर्फ एक या दो घंटे बचाने के लिए?
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
क्रेडिट एजेंसी इंडियन रेटिंग्स के डीके पंतभारत में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के बारे में कहते हैं, “बुलेट ट्रेन के लिए बहुत बड़ी फंडिग की जरूरत होती है। इस सेक्टर में विदेशी निवेश के फैसले का अधिकार कैबिनेट को है और सरकार ने इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन की उधार लेने की क्षमता को काफी कम कर दिया है। ऐसे में, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में फाइनेंसिंग का मामला काफी अहम है।”
भारत में कई तरह की सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनीकेपीएमजी के अरविंद महाजनकहते हैं, “प्रमुख रूट्स पर बुलेट ट्रेन चलाने के लिए सरकार को कई चीजों में बदलाव करना होगा। इसका अर्थव्यवस्था पर काफी असर होगा, क्योंकि वित्तीय जरूरतें काफी होंगी। इसलिए जापान, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों से वित्तीय मदद हासिल करने से पहले सरकार को विस्तृत व्यावहारिक अध्ययन करना चाहिए।
Devkishan Dayma 
Dist. G.S. NSUI JODHPUR RAJ.

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