संतों को निशाना बनाना ठीक नहीं

154973946-अवधेश कुमार- संत रामपाल की गिरफ्तारी हुई तो मामला वहीं तक सीमित होना चाहिए। आश्रम में कुछ भक्तों के हिंसक प्रतिरोध के तरीकों से सहमत होना मुश्किल है तो पुलिस का रवैया भी क्षोभजनक था और सरकार का भी। लेकिन जिस तरह इसके बाद सम्पूर्ण संत समाज को निशाना बनाया जा रहा है वह आपत्तिजनक है। इस समय पुलिस अपनी विफलता को छिपाने के लिए बहुत सारी कहानियां बना सकती है और बनायेगी। हरियाणा भाजपा सरकार को भी अपने पुलिस को सचेत करना चाहिए कि वह सीमाओं में रहे और मामला जितना है उतना ही बताये। इसे अनावश्यक तौर पर बढ़ा चढ़ाकर पेश न करे।

रामपाल के मामले में न्यायालय का यह आदेश भी चिंताजनक है कि अन्य आश्रमों और डेरों की भी छानबीन की जाए। सरकार को इसके खिलाफ अपील करनी चाहिए। यह तो कोई बात नहीं हुई कि एक आश्रम के प्रमुख ने यदि कोई गलत किया तो आप सबको संदेह के दायरे में ले आयें। इससे लोगों के अंदर खीझ पैदा हो रही है और यह आवाज उठ रहा है कि केवल हिन्दू साधु संतों को ही निशाने पर लेने की कोशिश की जा रही है। इस प्रकार की भावना न पैदा हो यह पुलिस, न्यायालय दोनों का दायित्व है। आखिर यह प्रश्न तो उठेगा ही कि केवल डेरे और आश्रम ही क्यों? दूसरे संप्रदाय और मजहबों के बारे में भी ऐसा ही निर्देश क्यों नहीं?

मीडिया का रवैया भी दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस ढंग से कुछ मामलों को सनसनीखेज बनाकर यह छवि दी जा रही है कि ज्यादातर साधु संत अपराध, यौन दुष्कृत्य …..में संलिप्त हैं वह भयावह और खतरनाक है। एक पत्रकार के रुप में हमारी भूमिका जितना तथ्य है उतना दिखाना, छापना और उतने के आधार पर ही अपना विचार भी देना है। इस समय मीडिया की भूमिका इससे परे जा रही है। वह फैसला दे रही है। यह न देश हित में है, न धर्म हित में न समाज हित में।

मजे की बात देखिए कि इन दिनों चैनलों पर आने वाले कुछ स्वयंभू बाबा, जिनमें से ज्यादातर की अपनी जीवनी ही संदिग्ध है, जिनको स्वयं धर्म, आश्रम, संत परंपरा की जानकारी नहीं, वे हां में हां मिला रहे हैं। लाल पीले, सफेद वसन और गले में रुद्राक्ष सहित कई प्रकार की माला लटकाकर बाबा बने ये लोग जो बोलते हैं उसमंे धर्मभाषा, संयम भाषा, संतुलन भाव का ही अभाव है। कई बार ये चैनलों पर आते रहें इस उद्देश्य से ऐसी भाषा बोलते हैं। ये हैं कौन? इनको हमारे धर्म के बारे में बोलने का अधिकार किस प्रमाण पत्र के तहत मिला है यह हमारी पत्रकार बिरादरी जांचने की कोशिश नहीं करती। ये ही इस समय हमारी मीडिया के लिए धर्म के, संतई के, आश्रमों के , पूजा पद्धत्ति के प्रवक्ता बने हुए हैं।

यह हम सबका दायित्व है कि हम अपने तईं ऐसी आवाज उठायें ताकि संत रामपाल प्रकरण हमारी संत परंपरा, आश्रम परंपरा मे खिलाफ न जाये। पुलिसिया साम्राज्य का शिकार ईमानदारी और नैतिकता से काम कर रहे छोटे-छोटे आश्रम इनका शिकार न हो। अगर पुलिस को एक बार छूट मिल गई तो फिर इनके कहर से बचना किसी के लिए मुश्किल होगा।
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