मोदी की मुख़ालिफत में क्यों लिखता हूँ

modiमोदी पर मेरे निरंतर लेखन से मोदी भक्त कष्ट में हैं। कुछ गैर मित्र भी परेशान हैं कि मैं मोदी पर इतना क्यों लिख रहा हूँ। लोकतंत्र का तकाज़ा है कि नेताओं का और खासकर नीति निर्माता नेताओं की गतिविधियों और बयानों का रीयल टाइम में मूल्याँकन किया जाय। मीडिया पर मोदी के अनुकूल वातावरण बनाए रखने का अमीरों का भयानक दबाव है। इस दबाव का प्रत्युत्तर एक नागरिक के नाते ठोस राजनीतिक आलोचना-प्रत्यालोचना के जरिए ही दिया जा सकता है, इससे लोकतंत्र मजबूत होगा।
लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है कि संघ-भाजपा के नीतिगत प्रयासों को सीधे आलोचना के केन्द्र में लाएं। फेसबुक सशक्त माध्यम है और इस पर चलने वाली बहसों की नीति निर्माता अवहेलना नीं कर सकते। फेसबुक में चलने वाली बहसें अनेक मसलों पर समाचार टीवी और अन्य माध्यमों को भी प्रभावित करती हैं। फेसबुक लेखन भड़ुआ लेखन न बने, फेसबुक मीडिया भड़ुआ मीडिया न बने इसके लिए जरूरी है कि इस पर जमकर देश-विदेश की राजनीति और संस्कृति पर बातें हों|
फेसबुक पर एकवर्ग ऐसे लोगों का है जिनके पास भड़ुआ मनोदशा है। वे इस माध्यम को भड़ुआ मीजिसम बनाने में लगे हैं। कुछ के लिए मात्र फोटो स्टूडियो है तो कुछ के लिए भाषा के अश्लील और अशालीन प्रयोगों का मीडियम है। इसी तरह कुछ मात्र पाठक के नाते आते हैं। फेसबुक पर युवाओं का बहुत बड़ा हिस्सा भी है जिनके पास लोकतांत्रिक संघर्षों का कोई अनुभव नहीं है। ये युवा संघर्ष की भाषा में देश को नहीं देखते, इनके लिए देश का कैरियर और मीठे सपनों के अलावा कोई महत्व नहीं है। स्त्रियों बहुत कम अंश है जो फेसबुक पर लिखता है। कायदे से औरतों की सक्रियता बढनी चाहिए। औरतें जितनी सक्रिय होंगी फेसबुक लेखन उतना ही वैविध्यपूर्ण बनेगा। फेसबुक पर लोकतांत्रिक कम्युनिकेशन की औरतें धुरी बन सकती हैं। उनके सक्रिय होने से इस मीडियम पर चल रही लफंगई कम होगी। औरतें जहां नहीं बोलतीं वहां लफंगे गुलगपाड़ा ज्यादा मचाते हैं।
जगदीश्वर चतुर्वेदी
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