डॉक्टरों का कमजोर विरोध और विधायक गुंजल दंभ

prahlad gunjalसरकारी अस्पताल में भर्ती मरीज के परिजन द्वारा ऊंची आवाज में बोल देने पर हड़ताल पर चले जाने वाले डॉक्टर्स भाजपा विधायक प्रहलाद गुंजल के मामले में खामोश हैं। जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर गुंजल और कोटा के एसीएमएचओ डॉ. आर.एम. यादव की वार्ता सुनी है, वे लोग समझ सकते हैं कि गुंजल ने डॉ. यादव को क्या नहीं कहा। क्या ऐसी भाषा किसी मरीज से डॉक्टर्स सुन सकते हैं। यदि कोई मरीज या उसका परिजन गुंजल वाली भाषा का दस प्रतिशत भी इस्तेमाल कर लेता तो डॉक्टर्स न केवल उस मरीज और परिजनों को गिरफ्तार करवा देते, बल्कि अब तक तो प्रदेशभर में हड़ताल भी हो जाती। भले ही अस्पतालों में भर्ती कितने भी मरीज दम तोड़ दें। लेकिन इस बार कोटा और प्रदेश भर के डॉक्टर्स साधुवाद के पात्र है, जो इतना सुनने के बाद भी खामोश हैं। इसके लिए डॉक्टर्स को बधाई। डॉक्टर्स की खामोशी अपनी जगह है क्योंकि हजारों रुपए की प्रतिदिन की प्रेक्टिस को कोई नहीं बिगाडऩा चाहता। सरकार यदि किसी डॉक्टर्स का तबादला कर दे तो वह निरस्त करवाने के लिए मुंह मांगी कीमत देने को तैयार हो जाएगा। सरकारी बंगले पर ही मरीजों को देख कर एक हजार रुपए तक वसूलने की सुविधा राजनीति के संरक्षण के कारण ही तो मिली है। यदि सत्तारूढ़ पार्टी (भाजपा-कांग्रेस) के किसी नेता, विधायक, सांसद, मंत्री आदि का संरक्षण नहीं हो तो क्या सरकारी बंगले में बैठ कर मोटी फीस वसूली जा सकती है? खैर यह डॉक्टर्स का अपना मामला है कि वे किस मुद्दे पर विरोध करें अथवा नहीं। सवाल तो प्रहलाद गुंजल के दंभ का है। सब जानते हैं कि गुंंजल को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का संरक्षण है। ये वो ही गुंजल हैं जिन्होंने कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला के साथ मिलकर राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन की शुरूआत की थी और बाद में वसुंधरा राजे के इशारे पर ही बैसला से अलग हो गए। कोटा में भाजपा के स्थानीय नेताओं को दर किनार कर गत विधानसभा के चुनावों में टिकिट दिया और आज गुंजल सबसे ताकतवर विधायक है। हाल ही के कोटा नगर निगम के चुनावों में प्रहलाद गुंजल ने भाजपा संगठन को खुली चुनौती दी, लेकिन गुंजल के खिलाफ बोलने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई। डॉ. यादव के साथ बातचीत में गुंजल ने विधायक सांसद मंत्री आदि का तो उल्लेख किया, लेकिन मुख्यमंत्री की ताकत को चुनौती नहीं दी। इससे जाहिर होता है कि गुंजल सिर्फ मुख्यमंत्री को अपना नेता मानते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो गुंजल विधायक मंत्री का हवाला देते समय कह सकते थे कि मुख्यमंत्री के भी भरोसे मत रहना। गुंजल का डॉ. यादव को साफ कहना था कि कोटा में वही होगा जो वे चाहेंगे। घटना के उजागर होने के बाद खेद वाला पत्र भी गुंजल ने मुख्यमंत्री को ही लिखा है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी को तो मुख्यमंत्री के पत्र की प्रति भेजी है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गुंजल को किसका दंभ है। जहां तक गुंजल की लोकप्रियता का सवाल है तो उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने विधानसभा के चुनाव में गहलोत मंत्रिमंडल के सबसे ताकतवर मंत्री शांति धारीवाल को हराया। इसमें कोई दो राय नहीं कि गुंजल को अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों का जबर्दस्त समर्थन है। वे कार्यकर्ता की मदद किसी भी स्तर पर जाकर करते हैं। हो सकता है कि आने वाले दिनों में गुंजल के समर्थक भी मैदान में उतर जाएं। भाजपा के कुछ नेता गुंजल के मामले को राष्ट्रीय नेतृत्व के समय ले जा रहे हैं, ताकि मुख्यमंत्री पर राजनीतिक हमला किया जा सके। देखना है कि गुंजल की गालियों की गूंज कहां तक सुनाई देती है। वैसे 19 दिसम्बर को संसद में तो गूंज हो गई है, तभी संसदीय कार्य मंत्री वैकेंया नायडू ने गुंजल को पार्टी से निलम्बित भी कर दिया। चूंकि गुंजल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख स्वीकार कर लिया है कि उन्होंने डॉ. यादव के साथ अभद्र व्यवहार किया। ऐसी स्थिति में गुंजल अपराधिक मामला तो बनता ही है। अब किसी गवाह अथवा सबूत की भी जरूरत नहीं है।
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