मोदीजी ने मोहन भागवत को इस्तीफ़ा दे देने की धमकी दी है। उन्होंने स्वयंसेवक जैसे गुर्गे पर लगाम लगाने कि अपील की अन्यथा प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देने की बात कही। यह असाधारण घटना नहीं है। इसे सहजता से नहीं लेना चाहिए। क्या भारत का लोकतंत्र अब संघतंत्र से चलेगा ? क्या केवल भागवत के वोट से मोदी पीएम बने है ? आखिर भागवत को इस्तीफ़ा देने का क्या मतलब ? और भागवत इस्तीफ़ा लेने वाले भी कौन होते हैं। यह देश के साथ गहरा धोखा है । क्या यह देश संघशाही से चलेगा या लोकशाही से ? मोदी इस्तीफा के बहाने संघ को या तो सर्वशक्तिमान सिद्ध कर रहे हैं या फिर मोदी विपक्ष की मृत्यु की घोषणा कर रहे हैं। सरकार भी अपनी और विपक्ष भी अपना। असली विपक्ष को जन्म ही न होने दिया जाय। तोगड़िया, योगीनाथ, सिंघल और सुषमा ये सब मोदी के होममेड विपक्ष हैं और यही लोग प्रतिपक्ष की भूमिका में होंगें ? अपने ही विपक्ष को नोटिस में लेना और उसे गंभीरता देना एक सनातन सियासी खेल है।
इस्तीफ़ा की भभकी या धमकी मोदी की दूरगामी राजनीति का एक हिस्सा है। अगर यह सच ( अब मोदी की भी नजर में ) है कि संघ परिवार देश में अराजकता पैदा कर रहा है तो मोदी को संघ पर अंकुश लगाना चाहिए। आखिर मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं केवल किसी भागवत के नहीं। अगर मोदी ऐसा नहीं करते हैं तो राजधर्म का फिर उल्लंघन होगा और गोधरा और गुजरात को नया विस्तार ही मिलेगा। दूसरा खेल यह भी हो सकता है कि देश को भ्रमित करने के लिए संघ अपने ऊपर उचित कारवाई के लिए मोदी को प्रेरित भी कर सकता है। इस साजिश से विरोधियों की जुबाँ कुछ देर के लिए बंद होगी और मोदी को कार्पोरेट इंडिया निर्माण में सहूलियत मिल जायेगी ? कुछ भी सम्भव है। घटनाओं को भावुकता से ना देखें। आँख खुली रखें !
बाबा विजयेंद्र
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