ये रहे भारत के वित्तमंत्री, जिन्होंने बदला जमाना

fincement ministersदेश की आजादी के बाद से हर साल बजट पेश किया जाता है। जिसमें पूरे देश के जमा-खर्च का हिसाब होता है। बजट बताता है कि आने वाले समय में देश की वास्तविक स्थिति क्या होगी। बजट के समय में ही आर्थिक सुझावों पर गौर किया जाता है, मौद्रिक नियम लागू होते हैं, जो भविष्य के आइनें की तरह होते हैं। अपनी इस कड़ी में हम बता रहे हैं देश के उन शीर्ष 10 वित्तमंत्रियों के बारे में, जिन्होंने न सिर्फ बेहतर बजट बनाएं, बल्कि देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर किया। जानिए देश के शीर्ष 10 वित्तमंत्रियों और उनके ख़ास बजट वर्ष के बारे में। जिन्होंमे वाकई क्रान्ति ला दी।
आर के षणमुखम चेट्टी, वर्ष: 1947
अच्छे वित्त मंत्रियों की सूची में तमाम नाम हैं, लेकिन वरिष्ठता क्रम में देखें तो सबसे पहला नाम आता है डेढ़ के पहले पूर्ण वित्त मंत्री आर के षणमुखम चेट्टी का। चेट्टी ने देश का पहला बजट पेश किया। जो पूरी तरह से कृषि पर केंद्रित रहा। उस समय देश की 70 फीसदी अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी।
सीडी देशमुख, वर्ष:1950
सी डी देशमुख सही मायने में देश के निर्माता साबित हुए। 1950 से 1955 तक वित्तमंत्री रहे देशमुख ने कृषि पर तो जोर दिया ही, साथ ही ढांचागत सुविधाओं पर भी खासा जोर दिया। देशमुख की कोशिश थी कि देश का किसान मानसून की कृपा पर निर्भर न रहे। सन् 1950 के बजट में देशमुख ने ‘अधिक खाद्यान्न उत्पादन’ पर जोर दिया। ताकि देश खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बन सके।
मोरारजी देसाई, सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ष:1969
मोरारजी देसाई ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। देसाई ने वर्ष 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। देसाई ने ही बैंकों को सुदूर क्षेत्रों में शाखाएं खोलने के लिए विवश किया, ताकि आम लोग बैंकों से जुड़ सकें। मोरारजी देसाई की कोशिशों का नतीजा था कि भारत देश की सकल बचत 1960 के दशक में जो सिर्फ 13% थी, वो 1970 के दशक में 23% तक पहुंच गई।
इंदिरा गांधी, सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ष: 1971
इंडिया गांधी ने न सिर्फ प्रधानमंत्री के रूप में देश की अगुवाई की, बल्कि वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सम्भालते हुए उन्होंने 1971 में गरीबी हटाओ का नारा दिया और जनता को अपने पक्ष में कर लिया। उन्होंने वित्त मंत्रालय को संभालते हुए 1971 के बजट भाषण में कहा कि हमारी कमजोर समझी जानी वाली बातें ही असल में हमारी ताकत हैं। उन्होंने गरीबी हटाओ कार्यक्रम के तहत गरीबों को सीधी मदद पहुंचाने के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई। ये इंदिरा गांधी का कमाल था कि देश में पहला बजट ऐसा पेश हुआ, जिसमें आय से अधिक व्यय दिखाया गया। इसकी वजह सरकार का भारी भरकम बजट रहा।
वी पी सिंह, ऐतिहासिक वर्ष: 1986
वीपी सिंह ने ही सही मायनों में उदारीकरण की शुरुआत की थी। हालांकि उन्होंने खुलकर देश को उदारीकरण की ओर नही मोड़ा, बल्कि दिशा भर दी। वीपी सिंह ने ही कंपनियों के लिए डी-लाइसेंसिंग प्रथा की शुरुआत की। वीपी सिंह में कर सम्बंधित सुझावों को प्रस्तुत किया और तमाम करों को मिलाकर पहली बार एकीकृत कर प्रणाली ‘मॉडिफाइड वैल्यू एडेड(MODVAT) को लागू किया। जिसके मॉडल पर अन्य केंद्रीकृत करों की व्यवस्थाएं हुई हैं।
डॉ मनमोहन सिंह, सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ष:1991
वित्तमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह का हमेशा सराहा जाएगा। मनमोहन सिंह ने 1991 से आर्थिक सुधारों की नई बहस छेड़ दी। सबसे महत्वपूर्ण पल 24 जुलाई 1991 में उस समय आया, जब मनमोहन सिंह ने आम बजट प्रस्तुत किया। जिसने भारत का इतिहास बदलकर रख दिया। हम खुली अर्थव्यस्था में जीने के सपने देखने लगे। मनमोहन सिंह ने सबसे बड़ा काम लाइसेंस राज व्यवस्था को हटाकर किया। कैम्बिज विश्व विद्यालय में पढ़े मीठी बोली के मालिक मनमोहन सिंह 1991-96 तक वित्तमंत्री रहते हुए नवउदारवाद को भारत के नजरिये से नया स्वरूप् दिया। मनमोहन सिंह द्वारा सन् 1991 में प्रस्तुत बजट पहली बार मध्यम वर्ग के लोगों की चर्चा की गई। जिसने व्यापारिक कार्यकलापों द्वारा लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित किया। अपने बजट भाषण में मनमोहन सिंह ने भारत के उज्ज्वल भविष्य की झलक दिखाई। उन्होंमे विक्टर ह्युगो की लाइन को बजट में शामिल करते हुए कहा कि ये देश की नई शुरुआत है। इसका बेहतर नतीजा आज हम देख रहे हैं।
पी चिदंबरम, महत्वपूर्ण वर्ष: 1997, 2005 और 2008
पी चिदंबरम ने 1997 में देश का ड्रीम बजट प्रस्तुत किया। जिसमें माध्यम आर्थिक जरूरतों की पूर्ति के लिए पॉलिसी बनाई गई। चिदम्बरम ने टैक्स की दरों को 30% फीसदी तक ले गये। जो उस समय लगभग असम्भव माना जाता था। चिदम्बरम की बनाई इस पॉलिसी के माध्यम से देश को अपार फायदा हुआ। उन्होंने कम आय वालों के लिए टैक्स की कम दरें और ज्यादा आय वालों के लिए ज्यादा टैक्स की बात की। ये बातें आज भी महत्वपूर्ण हैं। लोगों की आय के हिसाब से कर लिया जाने लगा। काले धन को ध्यान में रखते हुए चिदंबरम ने ही सबसे पहले 1997 में खुद से अपनी सम्पति की घोषणा(वालान्टियरी डिस्क्लोज ऑफ़ इनकम स्कीम-वीडीआईएस) की पहल की। सन्2005 में चिदंबरम ने ही ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना की शुरुआत की। जो ऐतिहासिक रही। इसी सान चिदंबरम ने ‘भारत निर्माण’ कार्यक्रम की घोषणा की, जो पूरी तरह ग्रामीण विकास पर केंद्रित रही। सन्2005 में ही चिदंबरम ने वैल्यू ऐडेड टेक(वैट) की शुरुआत की। जो अब तक का सबसे बेहतर कर सुधार व्यवस्था साबित हुई। कर चिदंबरम ने 2008 में वित्त मंत्री रहते हुए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने पहली बार टैक्स छूट की सीमा को 40,000 से बढ़ाते हुए 1 लाख 50 हजार कर दी। इसी साल उन्होंने ऋण चुकाने के लिए 60,000 करोड़ की व्यवस्था की बात अपने बजट भाषण में कही।
प्रणब मुखर्जी, सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ष: 2012
मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 7 बार बतौर वित्त मंत्री बजट पेश करने का सौभाज्ञ प्राप्त कर चुके हैं। मुखर्जी इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व में1982 में वित्त मंत्री रहे थे। तब मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक के गवर्नर थे, बाद में मनमोहन सिंह के पीएम रहते हुए प्रणब मुखर्जी उनकी मंत्रि परिषद् में वित्तमंत्री बनें। हालांकि फिर मनमोहन सिंह के ऊपर पहुँचते हुए प्रणब मुखर्जी देश के राष्ट्रपति बनें। इस बीच उन्होंने सन् 2012 में विदेशी कम्पनियों से सम्बंधित नए कानून लागू किए। जिसकी वजह से वोडाफोन के साथ 11,200 करोड़ का टैक्स विवाद हुआ। दरअसल प्रणब मुखर्जी ने ‘रेस्ट्रोस्पेक्टिव टैक्स’ नाम से नए कानून को थोपते हुए विदेशी कंपनियों की भारत में इंट्री को थोडा कठिन बना दिया। जिसके तहत विदेशी कम्पनी को भारतीय कम्पनी का शेयर हस्तांतरण करते समय टैक्स चुकाना पड़ता। वोडाफोन इसी टैक्स की मार के नीचे दबा
वोडाफोन में तर्क दिया कि हरिसन(हच) कम्पनी के शेयर के लिए वो विदेश में पैसा चुका चुकी है, लेकिन उससे इसी कानून के तहत 11,200 करोड़ के टैक्स की मांग की गई। ये मामला काफी विवादित रहा। प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा कि उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को उस समय भी कमजोर नहीं पड़ने दिया, जब दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लगातार गिर रही थी। उन्होंने किसी भी कंपनी को दिवालिया घोषित नहीं होने दिया।
यशवंत सिन्हा, सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ष: 2001
यशवंत सिन्हा ने वित्त मंत्री रहते हुए 7 बार बजट पेश किया। उन्होंने भी आर्थिक सुधारों को बढ़ावा दिया। सबसे महत्वपूर्ण काम उन्होंने बजट को प्रतीतात्मक औपनिवेशिक शासन की याद दिलाने वाली बजट दिवस में सुधार का किया। अबतक बजट शाम के समय प्रस्तुत होता था, जब इंग्लैंड में दिन हो। लेकिन यशवंत सिन्हा ने भारत देश की संप्रभुता की याद दिलाते हुए सुबह बजट प्रस्तुत किया। जिसके बाद से बजट सुबह 10-11 बजे के बीच प्रस्तुत किया जाने लगा।
वाईबी चव्हाण
वाई बी चव्हाण ने वित्त मंत्री रहते हुए 1971 से 1975 तक इंदिरा गांधी के विजन को संभाला। उन्ही के समय में भारत-पाक युद्ध हुआ। इतने गंभीर समय में भी चव्हाण ने इंदिरा के साथ मिलकर देश की विकास दर को तेज रखा। अपनी कार्यकुशलता के दम पर उन्होंने कम विदेशी सहयोग के बावजूद अर्थव्यवस्था को संभाले रखा।

error: Content is protected !!