लाचारी और बेबसी प्रकट होने के बाद बनाया मनोज भट्ट को डीजीपी

manoj bhattएक मार्च को राजस्थान के डीजीपी के पद पर मनोज भट्ट की नियुक्ति कर दी गई, लेकिन इससे एक दिन पहले सरकार की लाचारी और बेबसी देखने को मिली। आमतौर पर डीजीपी की नियुक्ति निर्वतमान डीजीपी के विदाई समारोह से पहले ही हो जाती है ताकि पदभार संभालने के साथ-साथ नए का स्वागत और पुराने की विदाई का समारोह हो सके। लेकिन ओमेन्द्र भारद्वाज नए डीजीपी की घोषणा से पहले ही 28 फरवरी को पुलिस मुख्यालय से बाहर आ गए। नए डीजीपी के इंतजार में भारद्वाज ने अपना विदाई समारोह 27 के बजाए 28 फरवरी को किया और फिर 28 फरवरी को भी समारोह का समय दो बार बदला गया। यदि सूर्यास्त का प्रावधान नहीं होता तो भारद्वाज का पुलिस परम्परा के अनुरुप विदाई समारोह ही नहीं हो पाता। ऐसा नहीं कि वसुंधरा राजे प्रदेश में अल्पमत की सरकार चला रही है। 200 विधायकों में से 163 विधायक भाजपा के हैं। इतना मजबूत बहुमत होने के बाद भी यदि डीजीपी जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति का निर्णय समय पर नहीं हो तो इसे सरकार की लाचारी और बेबसी ही कहा जाएगा। इससे इस बात का भी आभास होता है कि 163 विधायक होने के बावजूद भी वसुंधरा राजे अपने स्तर पर निर्णय नहीं ले पा रही हैं। जानकारों की माने तो सीएम राजे पहले ही मनोज भट्ट के नाम की घोषणा करना चाहती थीं,लेकिन गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया आदि अन्य प्रभावशाली नेताओं ने भट्ट के नाम पर एतराज कर दिया। एतराज करने वालों का कहना रहा कि मनोज भट्ट को कांग्रेस का दामाद माना जा रहा है। कांग्रेस के लम्बे समय तक सीएम रहे मोहनलाल सुखाडिय़ा के दामाद मुन्नालाल गोयल के दामाद है मनोज भट्ट। हालाकि मनोज भट्ट ने कटारिया और उन जैसे नेताओं से कई बार कहा कि वे कांग्रेस के दामाद नहीं बल्कि कांग्रेस के शासन में सताए हुए पुलिस अधिकारी हंै। अशोक गहलोत ने अपने कार्यकाल में 7 माह तक मनोज भट्ट को एपीओ रखा। यदि दामाद होता तो कांग्रेस के शासन में बेवजह 7 माह तक एपीओ रहता? सीएम और गृहमंत्री में जो खींचतान चली उसी की वजह से भट्ट के नाम की घोषणा में विलम्ब हुआ। सूत्रों के अनुसार जब मनोज भट्ट के नाम पर पेच फंसता नजर आया तो डीजीपी पद के दूसरे मजबूत दावेदार नवदीप सिंह ने चांस लेना चाहा। पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल और केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली तक से सम्पर्क साधा गया,लेकिन सीएम राजे ने यह कहकर सभी दबावों को हटा दिया कि नवदीप की पत्नी नवजोत कांग्रेस की विधायक रह चुकी हैं। यूं तो जसवंत सम्पतराम भी डीजीपी के दावेदार थे लेकिन मनोज भट्ट के सामने सम्पतराम ने अपनी दावेदारी वापस ले ली। सब जानते है कि जब जयपुर का बहुचर्चित घी कांड हुआ था, तब मनोज भट्ट एसीबी के डीजी थे। यदि मनोज भट्ट की मेहरबानी नहीं होती तो पुलिस के बड़े अधिकारियों पर गाज गिर सकती थी। भट्ट के सामने दावेदारी प्रस्तुत कर कर जसवंत सम्पतराम ने अक्लमंदी का ही कार्य किया। हालाकि अब डीजीपी के पद का पटाक्षेप हो गया है, लेकिन इस बार सीएम राजे की कार्यप्रणाली से प्रतीत हो रहा है कि वे दबाव में काम कर रही है। पिछले एक पखवाड़े में यह दूसरा अवसर है जब सरकार में असमंजस की स्थिति देखने को मिली। दस दिन पहले राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के पद पर सोभाग सिंह चौधरी के नाम पर निर्णय हो गया था,लेकिन राज्यपाल को फाइल भेजने से पहले ही निर्णय को रोक दिया गया। यह मजेदार बात रही कि सरकार के निर्णय के साथ ही चौधरी ने स्वयं को आयोग का अध्यक्ष मानते हुए अखबारों में इंटरव्यू तक दे दिए। आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने से भी सीएम राजे की लाचारी और बेबसी प्रदर्शित हो रही है। आयोग में 7 की बजाए मात्र 3 सदस्य नियुक्त है और यह भी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के उपकृत किए हुए है। डीजीपी के पद से रिटायर हुए भारद्वाज को आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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