तो फिर भला राजस्थान से इनके सहयोगी राकेश पारीख कैसे बच सकते है?

सुशील पाल
सुशील पाल

पिछले दो सप्ताह से मचे हंगामे के बीच अजमेर से राष्ट्रीय परिषद की सदस्या कीर्ति पाठक ने भी सोशल मीडिया पर वॉर का आगाज कर दिया है। पाठक ने अपने ब्लॉग पर डॉ राकेश पारीख पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि “मैंने एक ब्लॉग पढ़ा -अरविन्द आप को क्या हो गया है ?”

मैं लेखक की इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ कि वे एसी और गाड़ियों के आराम को छोड़ कर आंदोलनकारी कार्यकर्ताओं के साथ कभी भी सड़कों पर नहीं उतरे। वे दिल्ली चुनावों में कभी भी सड़कों की ख़ाक छानते मतदाताओं से व्यवस्था परिवर्तन और स्वराज की स्थापना हेतु मतदान की अपील करते नहीं घूमें। वे कभी भी आम कार्यकर्ता बनने के इच्छुक नहीं थे। बस कौशाम्बी में उपस्थिति दर्शा कर अपने नंबर बढ़वाने में व्यस्त रहे, उन्हें लगा कि बाकी राजनैतिक पार्टियों के समान यहाँ भी चापलूसी और चमचागिरी से काम चल पायेगा। लेकिन कौशाम्बी कार्यालय को वे बहुत समय तक दिग्भ्रमित नहीं कर पाये।

कीर्ति पाठक ने डॉ राकेश पारीख के पिछले ब्लॉग पर हमला कर जवाब दिया कि ये महानुभाव दिग्भ्रमित करते जब आँख के तारे थे तो स्वराज मात्र नारा था। आज अपने कुकृत्यों के चलते आँख की किरकिरी हैं तो स्वराज की स्थापना का बिगुल बजा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। सर्वप्रथम सब साथी आंदोलनकारियों से करबद्ध क्षमाप्रार्थी हूँ कि हम सब नवराजनीतिज्ञ गाय की खाल ओढ़े भेड़ियों को नहीं पहचान पाये और उन को पार्टी के राज्यों में कार्यभार सौंप कर उन से व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में सार्थकता की उम्मीद पाल बैठे।

आज जब उन के असत्यता भरे, स्वयं को परोसने वाले ब्लॉग्स पढ़ती हूँ तो स्वयं पर क्षोभ होता है।अतिमहत्वाकांक्षी ये अवसरवादी आम आदमी पार्टी के भोले-भाले देशभक्तों को अपने स्वार्थ के चलते कैसे दिग्भ्रमित कर रहे हैं। पारीख अपनी लकीर को बढ़ा पाने की काबिलियत ना होने के चलते ये दूसरों की लकीर मिटा कर छोटी करने का असंभव कुकृत्य में फंस कर रह गए हैं। पारीख के एक एक स्वार्थ को अब कार्यकर्ताओं के सामने लाना ज़रूरी हो गया है।

पाठक ने अजमेर के मुद्दे को उठाया, पारीख पर हुई प्रश्नो की बौछार, पूछा कहाँ था तब स्वराज?
पाठक ने ब्लॉग में लिखा कि पारीख आज पूछ रहे है कि क्या प्रश्न करना गुनाह है ? अजमेर की तत्कालीन जिला संयोजक जब अपने खिलाफ लगे आरोपों को बार बार पूछ रही थी, तो आप का उत्तर था कि ये आरोप आप पर लगे हैं।  और यह संगीन हैं।  इस लिए आप को आरोप बताये नहीं जा सकते। लेकिन तब कार्यकारिणी निलंबन में आरोप संगीन तो दिखे ही नहीं थे। जब अजमेर में निलंबित कार्यकारिणी सदस्य प्रश्न कर रहे थे और आप अपनी उपस्थिति का आभास भी होने से बच रहे थे और सर झुका कर बैठे थे और उत्तर देने आगे नहीं आये ,क्या तब प्रश्न पूछना गलत था ?

पाठक ने पारीख पर आरोप लगा पूछा कि जब पारीख गुटबाज़ी को बढ़ावा देने की मंशा से कार्यकारिणी से प्रथक किये गए कार्यकर्ताओं को सन्देश भेजते थे और कार्यकारिणी को नजरअंदाज करते थे तब आप स्वराज का निर्वहन कर रहे होते थे क्या? तब आपका स्वराज कहाँ चला गया था ?”

जब आप ने बिना show cause notice के, media में, अजमेर की कार्यकारिणी भंग करने का आदेश एक रात को रिलीज़ किया, जोकि निवर्तमान जिला संयोजक को दूसरे दिन दिन में 2 बजे प्राप्त हुआ , तब आप आम आदमी पार्टी में स्वराज की परिकल्पना को साकार कर रहे थे क्या?

जब आप राज्य कारिकारिणी की बैठक की सूचना अजमेर की जिला संयोजक को नहीं देते थे तब आप स्वराज का झंडा बुलंद करते थे क्या ? पाठक ने आरोपों के बाद लिखा है कि  आफिस में बैठकर कार्यकर्ताओं को धमकाने वाली चौकड़ी का आज स्वराज स्वराज रटना इस शब्द की मर्यादा को तार तार कर रहा है।

पाठक ने ब्लॉग में ने डॉ राकेश पारीख के झूठों की समीक्षा भी की है।
पारीख स्वयं जयपुर की कार्यकारिणी से बाहर नहीं रहे, अपितु आप का नाम किसी ने प्रोपोज़ ही नहीं किया। जयपुर से स्वयं के टिकट के लिए आप ने लॉबिंग की। शुरू से पदलोलुप और चुनाव में टिकट पाने की इच्छा लिए आप अपने ब्लॉग में झूठ लिख कर जो निःस्वार्थता का चोला ओढ़ने की कोशिश कर रहे हैं उस की सत्यता हर वो कार्यकर्ता जानता है जिस के समक्ष इन्होंने पब्लिक्ली इसे स्वीकार किया था।

पाठक ने अपने ब्लॉग में अपील भी की है। उन्होंने लिखा है कि मेरी अपने साथी आंदोलनकारियों और कार्यकर्ता बंधुओं से अपील है कि क्षुद्र सोच लिए इन संकीर्ण मानसिकता वाले स्वार्थियों ने स्वराज का झंडा सिर्फ अपने को पार्टी में स्थापित करने को उठाया है। इन के जाल में ना फंसिए …लक्ष्य पर आँख रख हे अर्जुन और अपनी राह की बाधाओं को रौंदते हुए मंज़िल की ओर बढे चलो।
सुशील पाल

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