3 मई टीपू सुलतान और मो.आज़म खान की शख्सियत के ख़ास तज़किरे का दिन रहा – सलीम

चौधरी मुनव्वर सलीम
चौधरी मुनव्वर सलीम

इसीलिए मैं कहता हूँ कि मो.आज़म खान साहब हिन्दोस्तान के करोड़ों इन्साफ पसंद और कमज़ोर हिन्दू मुसलमानों की ज़िंदगी हैं ,बयान देने वालों की तरह तनहा शख्स नहीं हैं ! इसीलिए हिन्दू महासभा के पदाधिकारी का यह गैरजिम्मेदाराना बयान मुल्क को कमज़ोर करने वाला और मुल्क में नफरत की आँधियाँ चलाने की कोशिश है ! हुकूमत-ए-हिन्द को वक़्त रहते इन बयान बाज़ों पर कार्यवाही करना चाहिए यह बात बार-बार मैं संसद से सड़क तक मुसलसल कहता चला आ रहा हूँ !

            3 मई का दिन अखबारात में 1799 के सियासी हीरो और ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ मज़बूत, बेबाक, जंग-ओ-जिहाद करने वाले मिल्ली और मुल्की नायक टीपू सुल्तान की शहादत से मंसूब है!

अहद और अज़म के साथ उसूलों की पुरखार राहों पर चलते हुए जब भी कोई क़ुर्बान हुआ है तब दुनिया ने ऐसी शख्सियत को याद भी रखा है और अपना आयडियल भी बनाया है 1799 में 3 मई को सिर्फ एक इंसान नहीं शहीद किया गया था बल्कि ऐसे मज़बूत उसूल की शहादत हुयी थी ! जिस शख्स ने अपनी बहदुरी अपनी बाउसूल ज़िंदगी और अपने जंग-ओ-जिहाद से फिरंगी को बेबस कर दिया था ! इसीलिए बापू ने अपने अखबार यंग इंडिया में 23 जनवरी 1930 को यह लिखा है कि टीपू आज़ादी की राह का एक अज़ीम शहीद है ! सुलतान टीपू ने क़ौमी यकजहती की पुण्या पंडित के रूप में वोह नायाब मिसाल पेश की थी जिसे टीपू सुलतान की वोह अंगूठी जिस पर श्री राम लिखा हुआ था और शहादत के बाद फिरंगियों की नापाक उँगलियों ने उसे नौचकर उतार लिया था और पिछले साल मई माह में लन्दन के क्रिस्टी नीलाम घर में करोड़ो रुपयो में नीलाम कर दी गयी लेकिन तंग दिल और तंगनज़र लोगों ने टीपू सुलतान के क़ौमी उसूल को,क़ौमी यकजहती के नज़रियात को हिन्दुस्तान पर मर मिटने के अहद को अपने फ़िरक़ापरस्त आईने में देख कर और तारिख के सुनहरी वर्क़ों को अपने बूटों से रौंदते हुए हिन्दू विरोधी होने का ऐलान कर डाला था !

आज जब हिन्दुस्तान में सदभावी उसूल सिसक रहे हैं तब 3 मई के अखबारात में नए हिन्दोस्तान के टीपू सुलतान यानी आज़म खान जिन्होंने इमरजेंसी के दौरान अपनी विचारधारा के मुखालिफ़ एक शख्स पर अलीगढ जेल में होने वाले ज़ुल्म के ख़िलाफ़ इस इंतहा तक आवाज़ बुलंद करी कि मो.आज़म खान साहब से अलीगढ जेल में मिलने वाली राजनैतिक सहूलतें छीनकर रातों रात उन्हें बनारस जेल भेज दिया गया ! फिर बनारस में तकलीफ़ों से लबरेज़ काल कोठरी के जैली सफर की शुरुवात हुयी जिससे एमरजैंसी के ख़ात्मे के साथ ही निजात मिल सकी !

ऐसे मो.आज़म खान साहब जिन्होंने महाराज कृष्ण के वंशज माननीय मुलायम सिंह यादव जी को अपने अहसास,अपने अंदाज़ और अपनी ज़िंदगी में उसूल के तौर पर इस हद तक शामिल किया है कि मो.आज़म खान साहब खुद यह कहते हैं कि अगर कोई शख्स पिस्तौल में एक गोली डालकर यह पूंछे कि यह गोली किसी एक पर चलायी जा सकती है तब मैं यह कहूँगा कि नेता जी की ज़िंदगी मुल्क के लिए बहुत ज़रूरी है और यह गोली मुझ पर चला दी जाये ! अहद की यह पाबंदी यह बताती है कि मो.आज़म खान साहब की सियासी तहरीक का मतलब और मक़सद सिर्फ माननीय मुलायम सिंह जी के उसूलों को मुल्क में बखेरना है !

3 मई के अखबारात में एक गुमनाम,बेअसर सियासी और समाजी हलकों में कभी कोई हैसियत नहीं रखने वाला गुमनाम संगठन अगर यह ऐलान करे कि मो.आज़म खान साहब को हिन्दोस्तान से निकाल देना चाहिए तब मुझे यह कहने पर मजबूर होना पड़ेगा कि कहने वाले व्यक्ति का मुल्क की तामीर और तरक़्क़ी में क्या योगदान है यह तो मैं नहीं जानता लेकिन यह ज़रूर जानता हूँ कि मो.आज़म खान साहब की सियासी समाजी और तालीमी तहरीक ने मुल्क के स्वाभिमान को अमरीका के बोस्टन एयरपोर्ट पर भी क़ायम रखा है और मो.अली जौहर यूनिवर्सिटी के रूप में मुल्क को मोहब्बत का ऐसा नायाब तालीमी इदारा दिया है ! जो क़यामत तक यह ऐलान करता रहेगा कि मो.आज़म खान साहब के रूप में सरज़मीन-ए-हिन्दोस्तान के दुर्भाग्यपूर्ण बंटवारे के बाद भी एक ऐसा मुस्लिम लीडर भी पैदा हुआ है जिसने अपने नैतिक मूल्यों की दम पर मुलायम सिंह यादव जी और अखिलेश यादव जी के सहयोग से हिन्दू धर्म के मानने वाले अक्सरीयती उप्र एसेम्बली और विधान परिषद से मो.अली जौहर यूनिवर्सिटी के रूप में एक ऐसे तालीमी इदारे की बुनियाद रखी जो तारिख साज़ एज्यूकेशनल इदारे के तौर पर मुंसिफ मौअर्रिख और दर्शनशास्त्रियों को यह सोचने पर मजबूर करती रहेगी कि हिन्दोस्तान में मुलायम सिंह यादव साहब और अखिलेश यादव साहब सहित समाजवादी पार्टी के ऐसे रफ़ीक़-उल-ज़हन हिन्दू साहिबान भी हुए हैं जिन्होंने कमज़ोर मुसलमानों की तालीमी तरक़्क़ी के लिए तन-मन और धन से मो.आज़म खान साहब की वह तालीमी तहरीक जिसका सफर बक़ौल-ए-हमशीरा आज़म खान साहब के कि 1973 -1974 से सरज़मीन-ए-अलीगढ से शुरू किया था !

इसीलिए मैंने अपने आर्टिकल को माज़ी के टीपू सुलतान से जोड़कर शुरू किया था चूँकि जिस तरह सुलतान टीपू की शहादत अँग्रेज़ की साज़िश और कुछ हिन्दोस्तानियों की बेवफाई का ऐलान करती है इसी तरह की शख्सियत आज मो.आज़म खान साहब की है सियासत में आज़म खान साहब की मौजूदगी कभी अर्ध कुंभ के रूप में,कभी महा कुंभ के रूप में ,कभी गोवर्धन परिक्रमा की गौ शाला के रूप में और कभी बाबरी मस्जिद तहरीक के रूप में मुल्क की सियासत को गर्माती रही है !

3 मई के अखबारात में जब यह बचकाना बयान पढ़ने में आया कि मो.आज़म खान साहब को हिन्दोस्तान से निकाल देना चाहिए तब बयान देने वाले को एक लाइन का यह जवाब देना मैं अपनी ज़िम्मेदारी समझता हूँ कि मो.आज़म खान साहब सिर्फ एक व्यक्ति नहीं है बल्कि एक व्यक्तित्व है और व्यक्तित्व अपने आचरण और विचार से वजूद में आता है !

इसीलिए मैं कहता हूँ कि मो.आज़म खान साहब हिन्दोस्तान के करोड़ों इन्साफ पसंद और कमज़ोर हिन्दू मुसलमानों की ज़िंदगी हैं ,बयान देने वालों की तरह तनहा शख्स नहीं हैं ! इसीलिए हिन्दू महासभा के पदाधिकारी का यह गैरजिम्मेदाराना बयान मुल्क को कमज़ोर करने वाला और मुल्क में नफरत की आँधियाँ चलाने की कोशिश है ! हुकूमत-ए-हिन्द को वक़्त रहते इन बयान बाज़ों पर कार्यवाही करना चाहिए यह बात बार-बार मैं संसद से सड़क तक मुसलसल कहता चला आ रहा हूँ !

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