धिक्कार है आतंकवादियो के शुभचिन्तको पर

महेश पाराशर
महेश पाराशर
आज मार्च 1993 मुम्बई के सीरियल ब्लास्ट जिसनेे 257 निर्दोष लोगों की जान को लील लिया था और इसे अंजाम देने वाले मास्टरमाइंड याकूब मेमन को फाँसी हुई मगर मौत के जिम्मेदार मेमन को बचाने की अंतिम कोशिश आधी रात तक की गयी । देश का अहित सोचने वालो को रात भर नींद नहीं आई लेकिन बेचारो का आतंक प्रेम हार गया और अंतोतगत्वा न्याय की जीत हुयी धिक्कार है आतंकियों के शुभचिंतको पर । आतंकियों के पैरोकारों को जिनमें देश के चंद धोखेबाज ,वकील ,से लेकर नेता और अभिनेता तक भोंक रहे थे ।
राष्ट्रपति जी फाँसी रोको…
इन सेकुलर गद्दारो के कारण हमारे देश की शर्मनाक स्थिति आज तक नहीं हुई जितनी एक घोषित और सजायाफ्ता अपराधी के लिए इन देश के गद्दारो ने की ,आतंकी के पैरोकारों ने राष्ट्रपति और न्यायपालिका के फैसले को गलत ठहराने और अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाने का कुत्सित और घोर निंदनीय प्रयास किया ।
अगर गौर करे तो इन नामचीन पैरोकारों के विरुद्ध भी किसी न किसी अपराध में प्रकरण दर्ज है एक फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन कर सुनवाई शुरू करवा दे सरकार तो तो ये खुद के लिए रहम की भीख मांगना शुरू कर देंगे ।
अब वक़्त की मांग भी है कि जनता इन गद्दारो को खिलाफ खड़ी हो क्योकिं की इनकी मानवीय संवेदनाये लुप्त हो गयी है जिस देश की जनता ने इन्हें इतना प्यार ,मान ,सम्मान दिया उसी देश के प्रति इनकी वफ़ादारी आतंकियों के प्रति देखकर । दूसरी और मानवाधिकार का राग अलापने वाले कहाँ गये मानवाधिकार संघठन क्यों नहीं उठाई 257 निर्दोष लोगो की हत्या का मामला क्या इनकी नजर मानवाधिकार सिर्फ गुंडों और आतंकवादियो का ही शेष रह गया है आम आदमियों का तो मानवाधिकार है ही नहीं ?
सरबजीत सालो पाकिस्तान की जेल में बंद रहा उसकी बहने दर बदर उसकी रिहाई की गुहार मांगती रही और उसे पाकिस्तान की जेल में ही मार दिया गया तब भी इनकी आवाज नहीं आई ।
घृणा होती है ऐसे लोगो से ऐसे संघठनो से जो सेकड़ो मासूमो , निर्दोषो की हत्या करने वाले आतंकियो के बचाव की गुहार करते है ।
आज की इस आतंकी को सजा से आतंकवाद का बाजार जो बहुत गरम होता जा रहा था ,अब उस पर कुछ विराम जरूर लगेगा ।

महेश पाराशर

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