हम भी काले तुम भी काले ! नश्ल भेद कहाँ ?

_20160603_095638श्री विवेक काटजू विदेश सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी रहे है , अभी हाल में घटित एक घटना के परिपेक्ष में जिसमे दिल्ली में एक अफ़्रीकी छात्र की पीट पीट कर हत्या कर दी थी , काटजू जी एक राजनयिक होने के नाते विदेश राज्य मंत्री श्री वि के सिंह, की भूमिका को अवांछनीय मानते है , जब वी के सिंह , अपने काम को सही ढंग से न करके मीडिया को दोषी ठहराते है !? वी के सिंह जी को यह अच्छी तरह से समझना चाहिए की वह फौजी जनरल कभी थे वर्तमान में वह एक जिम्मेदार पद पर मंत्री है ? अपनी मीडिया से जगजाहिर दुश्मनी को वह डिप्लोमेटिक राजनीती में क्यों घुसेड़ते है इसकी कोई जरुरत नहीं होनी चाहिए ? साथ ही यह भी दुर्भाग्य पूर्ण घटना है जिसमे कालों में भी काले , अलग हो , कभी अंग्रेज भारतियों और अफ़्रीकी देशो को एक हो श्रेणी में रखते थे , तभी अंग्रेजो के क्लबो होटलों में किसी इंडियन के प्रवेश की अनुमति नहीं थी । लेकिन हम जो अंग्रेजो और यूरोपियन देशो की नजरों में काले थे आज भी यूरोपियन देशो में नश्ल भेद का शिकार बनते है । ऐसे में एक छोटी सी घटना के कारण कई अफ़्रीकी देश मिल कर हमारे ऊपर नस्ल भेदी होने का आरोप अगर लगाएं तो यह कही न कहीं विदेशी मामलों के जिम्मेदार लोगो की अकर्मण्यता की ओर इंगित तो करता ही है ?

sohanpal singh
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इसलिए मोदी सरकार को चाहिए की , विदेशी छात्र खासकर जो लोग अफ़्रीकी देशो से कल्चरल और शिक्षा के आदान प्रदान कार्यक्रम के अंतर्गत या व्यक्तिगत हैसियत से भारत में शिक्षा ग्रहण करने आते है उनके सुरक्षा और समन्वय के लिए, कीसी वरिष्ठ विदेश सेवा के कार्यरत या सेवानिवृत अधकारी को पदस्थापित करना चाहिए और आदरणीय वी के सिंह को उनके पेशे के अनुसार रक्षा मंत्री का पदभार सौंपना चाहिए ? क्योंकि वह विदेश निति संबंधी जटिलता को समझ पाने में सक्षम नहीं है जब तब प्रेस और मीडिया से भिड़ते रहते है ? जब हम भी काले और तुम भी काले तो नश्ल भेद कहाँ ?????

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