बोया पेड़ बबूल का …………..?

sohanpal singh
sohanpal singh
NSG की सदस्यता न मिलने पर विपक्ष की ओर से हो रही आलोचना के परिपेक्ष में भक्तो और भक्तिनो का पारा सातवे आसमान तक पहुँच गया ! एक भक्तिन ने टिप्पणी की , कि कुछ लोग NSG सदस्यता न मिलने का जश्न मना रहे है, और जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे है । ताना दिया है आलोचना करने वालों को ,देश भक्त नहीं हो सकते? आलोचना लोकतंत्र का गहना है ।इसी लिए आलोचना करना मूर्खता की श्रेणी में नहीं आता बल्कि एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है ? लेकिन एक विशिष्ठ मानसिकता को ग्रहण करने वाले उसे आलोचना को स्वीकार नहीं करते ? यह भारत ही नहीं दुनिया भर के अख़बारों में समाचार प्रकाशित हो रहे है कि चाइना ने भारत को धोका दिया है ? वह भी इस लिए की कूटनीति से इतर मोदी जी ने चीनी नेतृत्व से पर्सनल रिलेशन बनाने की भरसक कोशिस की थी चीन ही क्यों पुरे विश्व में ही उन्होंने भारत का डंका मोदी मोदी कह कर बजवा ही दिया था ? हमारी सभी भारत वासियों की उम्मीद केवल इसी कारण बंध गई थी की मोदी जी के प्रयासों से भारत को NSG की सदस्यता मिल जायेगी तो हम अपने परमाणु कार्यक्रम पर और भी आगे बढ़ सकते है ? जबकि कूटनीति के जानकार इस बात को अच्छी तरह जानते थे की चीन इसमें अड़ंगे लगाएगा । उसने ऐसा ही किया इतना ही नहीं अपने साथ अन्य 6 देश और जोड़ लिए । यह भारत की कूटनीति की विफलता है । इस लिए राजनितिक विरोधी इसका मजाक ही उढ़ायेंगे ही उनको कौन रोक सकता है ,क्योंकि उन्होंने अपने विदेश यात्राओं का इतना बढ़ चढ़ कर प्रचार किया था कि बस NSG की सदस्यता उनके अथक प्रयासों से मिलने जा रही है , तो स्वाभाविक ही है कि विफलता मिलने पर आलोचना तो होगी ही ? क्योंकि जब मोदी जी स्वयं एक मुख्य मंत्री थे केंद्र की बहुत सी योजनाओं का विरोध ही नहीं मजाक भी उढ़ाते थे ? तब भी जब अमेरिका से परमाणु समझौता किया था प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने तब पूरी बीजेपी पार्टी ने ही विरोध किया था NSG की सदस्यता भी उसी समझौते को आगे बढ़ाने की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए और मोदी जी की सराहना करनी चाहिए ? लेकिन मोदी जी ने स्वयं राष्ट्रिय हित की कई योजनाओ का मजाक उढ़ा चुके हैं ? उन्होंने तो विदेश में यह तक कह दिया की भारत में पैदा होना शर्म की बात समझा जाता था ? अभी पिछले संसद सत्र में उन्होंने मनरेगा कार्यक्रम का मजाक यह कह कर उढ़ाया था कि मनरेगा कांग्रेस के भ्रष्टाचार का जीता जगता स्मारक है मैं इसको बंद नहीं करूँगा बल्कि इसको चालू रखूँगा , यह कैसा विरोधाभास है अगर कोई भ्रष्टाचार है तो उसकी जांच होनी चाहिए न कि उसको चालू रखा जाय ! मनरेगा एक राष्ट्रहित का कार्यक्रम है वास्तविकता में उसमे अगर कोई भ्रष्टाचार होता है तो उसे दूर करने के प्रयास होना चाहिए ? इस लिए अगर सत्ताच्युत पार्टी के किसी प्रोग्राम की आप बुराई करेंगे तो बदले में अपनी विफलता की आलोचना तो सुननी पड़ेगी ? इसमें राष्ट्र कहीं नहीं डूब रहा है और न ही कोई डाल पर बैठ कर उसी डाल को काट रहा है ? यह केबल मानसिकता का सवाल है कि जनता अपने हीरो (Ideal) की आलोचना सुनना पसंद नहीं करती ? यही भक्तों का दुःख है जो अपने हीरो की आलोचना स्वीकार नहीं करती ?

एस. पी. सिंह, मेरठ ।

error: Content is protected !!