SUC मसले पर ट्राई का यू-टर्न

अपने ही स्पेक्ट्रम मूल्यांकन फार्मूले को किया खारिज

आखिरकार ‘स्पेक्ट्रम यूसेज चार्जेस’ यानि SUC पर ट्राई ने अपनी सिफारिशें दे ही दी। पर अगर आप स्पष्ट, सरल और सर्वमान्य फार्मूले की उम्मीद कर रहे थे तो आपको जरूर निराशा होगी। कानून तर्कसंगत अटार्नी जनरल के फार्मूले को दरकिनार कर ट्राई ने स्पेक्ट्रम मूल्यांकन के लिए एक बहुत ही अजीबोगरीब फार्मूला पेश किया है। जिसका आधार है विभिन्न बैंडस् में स्पेक्ट्रम की ‘राजस्व क्षमता’ यानि कौन सा स्पेक्ट्रम बैंड कितनी कमाई करने की ताकत रखता है।
देश में जबसे स्पेक्ट्रम नीलामी शुरू हुई है। तभी से ट्राई विभिन्न स्पेक्ट्रमस् के मूल्यांकन के लिए कई तरह की कोशिशें करता रहा हैं। कभी आर्थिक सिद्धांतों पर आधारित मॉडलों के द्वारा, तो कभी विशेषज्ञों की महारत का इस्तेमाल कर ट्राई स्पेक्ट्रम मूल्यांकन का महत्व रेखांकित करता रहा है। पर आज ट्राई ने स्पेक्ट्रम मूल्यांकन के अपने सभी मॉडलों को एक ही झटके में खारिज कर दिया।
ट्राई लगातार यह कहती रही है कि विभिन्न बैंडस् में स्पेक्ट्रम का सापेक्ष मूल्यांकन पूंजीगत खर्च और परिचालन व्यय (कैपेक्स + ओपेक्स) में बचत के आधार पर तय किया जा सकता है। ट्राई की धारणा रही है कि राजस्व क्षमता बराबर होने के बावजूद कुछ स्पेक्ट्रम बैंड्स की नीलामी में आपरेटर उंची कीमते लगाते हैं। क्योंकि उन खास बैंडस् में कैपेक्स और ओपेक्स की बचत अधिक होती है।
इस प्रकार विभिन्न बैंडस् में बुनियादी मूल्यांकन के सिद्धांत का पालन किया जा रहा है। यानि कैपेक्स + ओपेक्स + स्पेक्ट्रम का मूल्य। लोअर फ्रीक्वेंसी बैंड में पूंजीगत खर्च और परिचालन व्यय अपेक्षाकृत कम होता है। इसलिए लोअर फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम का मूल्य अधिक होगा। जबकि हायर स्पेक्ट्रम बैंड में पूंजीगत खर्च और परिचालन व्य्य अधिक होने की वजह से स्पेक्ट्रम का मूल्य कम होगा। 2010, 2012, 2013, 2014 और 2016 की अपनी सिफारिशों में ट्राई ने इसे कई बार दोहराया। 2012 में एक कदम आगे बढ़ते हुए ट्राई ने नीलामी के बाद विभिन्न स्पेक्ट्रम बैंडस् में किए जाने वाले निवेशों की तुलना तक की। जबकि संभावित ‘राजस्व क्षमता’ का कहीं जिक्र तक नही था।

राजस्व पैदा करने की क्षमता अगर अधिक है तो लोअर स्पेक्ट्रम बैंड में भी स्पेक्ट्रम का मूल्य अधिक हो सकता है। वास्तव में ट्राई ने ‘राजस्व क्षमता’ पर कभी विचार ही नही किया। और अचानक ही ‘राजस्व क्षमता’ ट्राई के लिए अति महत्वपूर्ण हो उठी है। और इसे हथियार बना वह DoT और अटार्नी जनरल के SUC फार्मूले को खारिज कर रही है।
ट्राई ने स्पेक्ट्रम मूल्यांकन पर जो ‘यू-टर्न’ लिया है उसके गंभीर नतीजे होंगे। यह ट्राई के स्पेक्ट्रम मूल्यांकन के पुराने सभी फैसलों पर तलवार लटका देगा। इसका यह मतलब भी होगा कि स्पेक्ट्रम मूल्यांकन पर ट्राई की सभी सिफारिशें बेकार साबित हो जाएंगी और कोई भी कभी भी उसे कोर्ट में घसीट सकता है। लगातार बदलते नजरीये से ट्राई की साख को गहरा धक्का लगा है।
ट्राई के अजीबोगरीब फैसलों ने स्टेकहोल्डरस् को गफलत की हालात में ला छोड़ा है। उन्हें समझ ही नही आ रहा कि ट्राई के पिछले फैसले सही थे या नए। यहां यह महत्वपूर्ण है कि ट्राई के पिछले फैसलों के आधार पर ही स्पेकट्रम नीलमी होती रही है। और अगर फिर भी एक बार यह मान ले कि ट्राई का नया फैसला सही है। तो इसका एक ही मतलब है कि पिछले 6 सालों में जितनी भी स्पेक्ट्रम नीलामी हुई उन सभी में भारी गल्तियां हुई हैं। सरकार को रिजर्व मूल्य से ज्यादा मिल सकता था। और इसके लिए दोषी भी ट्राई ही है। गलतबयानियों के चलते ट्राई की पहले ही काफी फजीहत हो चुकी है। उम्मीद है कि ट्राई अब एक सोचा समझा फैसला लेगी और टेलीकॉम सेक्टर जल्द ही अनिश्चितता के दौर से बाहर निकल सकेगा।

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