अधिकारियों को हिटलर वाले अधिकार

अमित टंडन
अमित टंडन
यानी अब सरकार के नए फरमान से अधिकारियों को हिटलरशाही दिखा कर मातहत कर्मचारियों और दूसरी पंक्ति के अधिकारियों का शोषण करने का अधिकार खुले आम मिल गया है। वैसे ही सरकारी विभागों और सरकार समर्थित विभागों (निगम या बोर्ड आदि) में अधिकारी ना केवल जनता को चूस रहे हैं, या कमीशन और रिश्वत के नाम पर ‘ईमानदार समाज-ईमामदार प्रशासन”‘ की अवधारणा को ठेंगा दिखा रहे हैं; बल्कि अपने मातहतों का शारीरिक व दिमागी शोषण कर रहे हैं।
अब केंद्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों पर मंज़ूरी की मुहर के साथ जो प्रावधान पदोन्नति तथा वेतन वृद्धि के लिये रखा है, उससे तो सरकारी महकमे भी “बनिए की दुकान” बन जाएंगे।
नया प्रावधान कहता है कि अब काम के आधार पर पदोन्नति या इन्क्रीमेंट मिलेगा। मगर काम के अच्छे बुरे होने का आकलन अथवा मूल्यांकन करेगा कौन? वो अधिकारी जो हमेशा चापलूसों से घिरे रहते हैं, या वो चापलूस जो
* अधिकारियों के बच्चों को स्कूल छोड़ने लेने जाते हैं
* जो भाभीजी (मैडम) के ड्राईवर बन के शौपिंग करवाते हैं
* साहब के घर का परचून का सामान या सब्जी खरीद के घर पहुंचवाते हैं
या * और भी कुछ करते होंगे, जो मैं यहां इस लेख में भूल रहा हूँ।
बहरहाल, अधिकतर अधिकारी खुशामद पसंद हैं। उन्हें अपने चेंबर में दरबार लगा कर बादशाह सलामत की तरह जी हुज़ूर करने वालों की फ़ौज पसंद है। और ऐसी फ़ौज “हिजड़ों की फ़ौज” होती है, जिन्हें काम आता नहीं, वो काम करना चाहते भी नहीं। मगर उनकी सबसे बड़ी खासियत है “मक्खन बाजी”। अधिकारीयों को चाहिए भी क्या..!! चमचों की फ़ौज, फिर विभाग में काम हो रहा है या नहीं, इससे क्या फर्क पड़ता है। आखिर किसी की CR बिगड़ना और अच्छी दिखाना इन अधिकारीयों के हाथ में ही तो होता है। सरकारें तो वैसे भी आँख पे पट्टी बांधे होती हैं। मंत्री खुद खुशामद पसंद होते हैं, नेता खुद चापलूसों की फ़ौज पसंद करते हैं।
इसका सबसे बढ़िया नमूना देखना हो तो 26 जनवरी और 15 अगस्त पे देखो। हर साल हर विभाग अपने तथाकथित “कर्मठ, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, श्रेष्ठ, यानी सर्व गुण संपन्न” कर्मचारी को सम्मानित करता है। ये सम्मानित होने वाले कर्मचारी क्या सच में इन सब गुणों से पूर्ण होते हैं..?? नहीं..। ये अधिकतर वो चापलूस, चमचे होते हैं या यूनियन के वो नेता होते हैं, जो कार्यस्थल पर अपनी सीट पर टिकने से ज्यादा अधिकारियों के चेंबर में हाथ जोड़े yes sir- yes sir करते पाये जाते हैं, या खबरी लाल बन के अधिकारियों के लिए ख़ुफ़िया तंत्र की तरह काम करते हुए इधर की उधर करते हैं, या किसी दबंग यूनियन नेता अथवा राजनितिक सिफारिश से बिना काम के ही 26 जनवरी या 15 अगस्त पे मुफ़्त का सम्मान पाते हैं।
ना अधिकारियों का ज़मीर जागता है, ना ऐसे नकारे कर्मचारियों की आत्मा इन्हें धिक्कारती है। रीढ़ की हड्डी तो जैसे है ही नहीं।
ऐसे में नये फरमान से ये “अधिकारीयों के मुंह के मीठे व नकारे कर्मचारी” और शेर हो जाएंगे, चमचागिरी और अधिकारी को शीशे में उतारने की होड़ और तेज़ हो जायेगी। पहले तो चापलूसी सिर्फ अपने नकारापन को छुपाने, काम से बचने और इच्छित जगह पर पदस्थापना तक के लिए होती थी। “अब सरकार ने चापलूसी व चाटुकारिता का दायरा बढ़ा दिया है।” अब चमचागिरी और चाटुकारिता पदोन्नति व इंक्रीमेंट के लिए भी करनी पड़ेगी। यानी ज़मीर और ईमान से गिरे कर्मचारियों को औकात से नीचे भी गिरना पड़ेगा..!!
मगर नकारे नपुंसक कर्मचारी, जिनकी नौकरी ही अधिकारीयों की महरबानी पर चल रही है, वो ईमान से, औकात से, ज़मीर से तो क्या पदोन्नति और इन्क्रीमेंट के लिए चरित्र से भी गिर जाएंगे।
“मगर जो सही मायने में कर्मठ, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और सर्वगुण संपन्न कर्मचारी और अधिकारी हैं, उनका क्या..? जो अपना ईमान, धर्म, चाल चलन, चरित्र, ज़मीर, आत्मा बेचने को तैयार नहीं; उन कार्मिकों का क्या..? असल में सरकारी विभागों को अच्छा और स्तर काम करके जो दे रहे हैं, वो तो यही लोग हैं। ये अधिकरियों की ड्योढ़ी नहीं धोकते। ये अपने हुनर, अपने ज्ञान और अपनी शिक्षा के दम पे कुछ करके दिखाना चाहते हैं। यानी इनका ज्ञान, शिक्षा और हुनर सब बेकार..!!
इस हिसाब से अब देश की शिक्षा प्रणाली में भी नए कोर्स जोड़ देने चाहिए।
* चापलूसी में डिप्लोमा
* चाटुकारिता में सर्टिफिकेट कोर्स
* चमचागिरी में मास्टर्स डिग्री
* ज़मीर और आत्मा मार कर नंगे होने में बैचलर्स डिग्री
* और चाल चलन चरित्र गिरा कर काम करने में Phd
ये काम के मूल्यांकन के आधार पे पदोन्नति और इंक्रीमेंट के नियम से अधिकारी अब नादिरशाह होकर कर्मचारियों को हड़कायेंगे। जिनका ध्येय वाक्य “रहिमन सेटिंग राखिये, बिन सेटिंग सब सून” है, उनका तो भला हो जायेगा, बाकी लोगों का शोषण और मरण तो पक्का। सबसे ज्यादा शामत तो चरित्रवान महिला कर्मचारियों की आएगी। आये दिन सुनने में आता है कि फलां विभाग के अधिकारी ने काम के बदले महिला कर्मचारी की अस्मत मांगी, या सीधे शब्दों में कहें तो काम के बदले रिश्वत में शारीरिक सम्बन्ध बनाने का दबाव बनाया। ऐसे कुत्सित मानसिकता के अधिकारियों को तो व्यभिचार का सरकारी लाइन्सेन्स मिल गया इस नये फरमान के रूप में।
अब तक तो बाहर के लोगों के काम करने के लिये रिश्वत में मोटी रकम लेते अधिकारी पकडे जा रहे हैं। फिर खबर आएगी कि अपने मातहत कर्मचारी के इंक्रीमेंट में से कमीशन की राशि लेते फलां विभाग का अधिकारी ACB ने रंगे हाथों पकड़ा। या पदोन्नति के बाद “बढे हुए वेतन” में से हिस्सा खाते ACB ने धरा फलां विभाग का अधिकारी।
ऐसे में फिर वही सवाल उठता है कि ऐसी गंदगी से निजात पाने के लिए क्यों न सरकारी विभागों का निजीकरण हो जाये। निजी कंपनी बन जाने के बाद राजनितिक हस्तक्षेप भी काफी हद तक खत्म होगा, और मुफ्तखोर कर्मचारियों व अधिकारीयों को भी उनकी गहराई का अंदाजा हो जाएगा। सरकार को “काम के मूल्यांकन के आधार पर पदोन्नति व इन्क्रीमेंट” के अपने कमज़ोर फैसले पर फिर विचार करना चाहिए, वरना गर्त में जा रहा सरकारी तंत्र पूर्ण तबाह होने से रोकना मुश्किल होगा। और सामाजिक मूल्यों में जो गिरावट आ रही है, उसके गिरने का ग्राफ और गिरने से भी नहीं रोका जा सकेगा।
— अमित टंडन, अजमेर

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