ऐसी काली कमाई किस काम की

ओम माथुर
ओम माथुर
कॉर्पोरेट मंत्रालय के पूर्व डीजी बीके बंसल और उनके परिवार की आत्महत्या उन लोगों के लिए सबक हो सकती जो काली कमाई और रिश्वतख़ोरी से पैसा कमाने को जीवन का लक्ष्य बना लेते हैं। आखिर इंसान कमाता किसके लिए। अपने परिवार के लिए। और अगर वो पैसा ही परिवार की जान ले ले,तो ऐसा पैसा किस काम का? समाज मे तेजी से गिरते सामाजिक व नैतिक मूल्यों के कारण आज पैसा लोगो के लिये माई बाप बन गया है। लोग हर हाल मे पैसा कमाना चाहते है और इसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते है। सरकार और प्रशासन मे भी काम कराने के लिया पैसा देने और लेने के चलन ने रिश्वतख़ोरी को खूब बढ़या है। हमारा समाज भी इसके लिए दोषी है। आज समाज मे उन लोगो को ही इज्जत और सम्मान मिलता है, जिसके पास पैसा है। लोग ये नही देखते की पैसा कमाया किस तरह से गया है। काली कमाई से दान पुण्य करने वाले जब धर्मात्मा बन जायेंगे,रिश्वत लेकर समाजसेवा मे पैसे खर्च करने वाले जब भामाशाह कहलाएंगे, गलत धंधो से दौलत कमाने वाले जब राजनीति, समाज,संगठनों मे ऊंचे ओहदो से नवाजे जाएंगे,तो जाहिर है की बाकी लोग भी पैसे कमाने के लिए गलत रास्ते चुनेंगे। लेकिन बंसल को पैसा कमाने क़े लिए चुना गया रिश्वत का रास्ता मौत के रास्ते ले गया। पहले रिश्वत लेते समय पकडे जाने पर बदनामी के कारण उनकी पत्नी व बेटी ने खुदकुशी कर ली थी और कल खुद बंसल और उनका बेटा फांसी पर लटक गए। बंसल के अरबों की सम्पति मिली है, अब आखिर उसका क्या मोल रह गया ? जब परिवार ही नहीं बचा तो पैसा किस काम को ? वैसे रिश्वत के मामलों मे परिवार की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहती है। अगर रिश्वत लेने वाले के परिजन ही इसका विरोध करें तो इस बीमारी को रोका जा सकता है। लेकिन आज घरों मे सुख सुविधाओं की बढ़ती भूख के कारण परिजन खुद ही इसमें भागीदार बनते हैं और नतीजतन व्यक्ति पैसा कमाने गलत राह पर चल पड़ता हैं। ऐसे परिवार भी बंसल की मौत से सबक ले सकते हैं।

error: Content is protected !!