हाल ही दैनिक भास्कर के तेजतर्रार पॉलिटिकल रिपोर्टर त्रिभुवन ने एक खबर उजागर की है कि भाजपा के टिकट पर केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीना के खिलाफ चुनाव लड़ चुके गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला को अशोक गहलोत सरकार कुछ ज्यादा ही तवज्जो दे रही है। उनके मुताबिक बैंसला को गुर्जरों से संबंधित योजनाओं में रिव्यू का अधिकार दे रखा है। इस लिहाज से गुर्जर आंदोलन के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला सरकार का हिस्सा बन गए हैं। उनकी बैठकों में आने के लिए छह जिला परिषदों के सीईओ, सीएमएचओ, जिला शिक्षा अधिकारी और सामाजिक न्याय विभाग के जिला अधिकारी पाबंद किए गए हैं। सामाजिक न्याय विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव अदिति मेहता ने एक आदेश जारी कर बैंसला की नई हैसियत से कलेक्टरों और कई मंत्रियों को अवगत कराया है।
जाहिर सी बात है गहलोत सरकार का इस प्रकार बैंसला को सिर पर बैठाना गुर्जर समाज के कांग्रेसी नेताओं को नागवार गुजर रहा होगा, क्योंकि इससे सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के गुर्जर समुदाय से आने वाले मंत्रियों, संसदीय सचिव और विधायकों की हैसियत कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला के सामने गौण हो गई है। समझा जाता है कि सियासी तौर पर गहलोत हाईकमान को यह संदेश देना चाह रहे हैं कि बैंसला को सेट करने के कारण गुर्जर पूरी तरह शांत हैं। मगर उनकी यह हरकत अन्य गुर्जर नेताओं के गले नहीं उतर रही। विशेष रूप से केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के लिए यह खबर चौंकाने वाली है। एक ओर जहां कांग्रेस हाईकमान विशेष रूप से राहुल गांधी की कोशिश है कि सचिन को सर्वमान्य गुर्जर नेता के रूप में राजस्थान में लॉंच किया जाए, वहीं दूसरी ओर अपनी कुर्सी के पाये मजबूत करने के लिए गहलोत बैंसला को इस प्रकार तवज्जो रहे हैं। आपको याद होगा कि हाल ही सचिन के नेतृत्व में गुर्जर नेताओं को एक दल राहुल गांधी से मिल कर गुर्जर आंदोलन का समाधान निकालने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर चुके हैं। उसे इस रूप में लिया गया था कि राहुल गुर्जर आंदोलन के समाधान का श्रेय सचिन को देना चाहते हैं। ऐसे में गुर्जर आंदोलन को लेकर उभर रहे ताजा तथ्य कहीं न कहीं विरोधाभास का संकेत दे रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि सचिन के राजस्थान आगमन से घबरा कर गहलोत कोई चाल चल रहे हैं? इसमें तनिक सच्चाई इस कारण भी नजर आ रही है कि पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से राजस्थान में बदलाव की बयार चल रही है, कुछ दिग्गज लामबंद होने लगे हैं। बहरहाल, राज क्या है, ये तो गहलोत ही जानें, मगर इतना तय है कि अगर राहुल बाबा ने चाहा कि सचिन को ही तवज्जो देनी है तो गहलोत लाख चाह कर भी अपने मन की नही कर पाएंगे।
-तेजवानी गिरधर
1 thought on “बैंसला को तवज्जो सचिन को रोकने की कवायद तो नहीं?”
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बहुत अच्छा विश्लेषण है तेजवानी जी आपने अशोक गहलोत की दुखती राग पहचान ली महिपाल के जाने बाद ये ही सबसे बड़ा डर है.