राज धर्म और राजदंड !

sohanpal singh
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प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जब ओडिशा में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे तो पी. एम. के रूप में उनकी कुछ मजबूरी झलक रही थी जब उन्होंने कहा कि ” कुछ लोग इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि कैसे एक चाय वाला प्रधान मंत्री बन गया ? इस लिए वे हर समय कोई न कोई साजिश रचते रहते रहते हैं ।” उनका दर्द सही भी हो सकता है पर सवाल यह है क़ि वो ऐसा क्यों सोंचते है ? जब उन्होंने चुनाव के दौरान जनता से अनगिनित वायदे किये थे जिनमे से मुख्य , महंगाई, भ्रष्टाचार से मुक्ति, रोजगार , काला धन , 15 लाख का जुमला आदि आदि । जो अभी तक पुरे होने के इन्तजार में है ? प्रधान मंत्री अपने भाषणों में बहुत हाथ हिलाते है लेकिन अगर उन्ही हाथो में राज दंड भी थम ले तो जो उनके अपने संगी साथी जो आपे से बाहर हो जाते है उनको काबू में रखसकें ? लोग बदनाम करते हैं की उन्होंने गुजरात में राज धर्म नहीं निभाया अब राज धर्म नहीं निभा रहे हैं ? वैसे आम जनता के रूप में हमें इस बात का गर्व होता है की प्रधान मंत्री सवा सौ करोड़ लोगो की आशा का प्रतीक हैं लेकिन साथ ही हमें दुःख होता है जब वह अकेले अपने आप को संघ का सेवक होने का दावा करके गौरावविन्त होते है ? आखिर क्या मजबूरी है कि जो व्यक्ति अपना परिवार त्याग चूका है लेकिन संघ परिवार का मोह नहीं छोड़ पा रहा है ? इस लिए 130 करोड़ भारत वासियों की ताकत और आस्था के प्रतीक मोदी जी को राजधर्म के साथ साथ राजदंड को भी मजबूती से थामना चाहिए क्योंकि जोड़तोड़ करके वो कितनी बारभी प्रधान मंत्री बन जाएँ लेकिन जनता की आशा और आकांशा के हक़ दार नहीं बन पाएंगे जब तक पार्टी और आरएसएस की समृद्धि के लिए प्रयत्न शील रहेंगे ?

एस.पी.सिंह,मेरठ ।

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