पाकिस्तान भारत को युद्ध के लिए क्यों उकसा रहा है ?

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
डॉ. मोहनलाल गुप्ता
जब से केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली नरेन्द्र मोदी सरकार बनी है तब से पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों में तेजी को जो दौर शुरु किया, वह रुकने का नाम नहीं ले रहा। उसने बॉर्डर पर आतंकियों के लिए बड़ी संख्या में लांचिंग पैड बनाये जहां से आतंकी बड़े पैमाने पर कश्मीर घाटी में घुसपैठ और हमले कर रहे हैं। पाकिस्तान की सेना काश्मीर तथा जम्मू बॉर्डर पर ताबड़तोड़ हमले करके युद्ध जैसी स्थिति बनाए हुए है। मार्च 2016 में पाकिस्तान ने ईरान से भारतीय पूर्व नौसैनिक अधिकारी कुलभूषण जाधव का अपहरण किया जिसे पाकिस्तान के सैनिक कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। सितम्बर 2016 में जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने भारत के 18 जवान मार दिए। कश्मीरी युवाओं एवं स्कूली लड़कियों द्वारा भारतीय सैनिकों पर पत्थर फैंकने की घटनाओं में तेजी आई। आतंकवादियों ने बैंक कैश-वैन एवं एटीएम लूटने शुरु कर दिए तथा पुलिस वैनों पर फायरिंग में वृद्धि की। हाल ही में शोपियां क्षेत्र में एक शादी समारोह में लेफ्टिनेंट उमर फयाज का अपहरण करके उसकी हत्या की। पिछले तीन माह में पाकिस्तान ने जम्मू के नौशेरा क्षेत्र में जो हमले किए हैं उनके कारण भारत को अपनी सीमा में 130 गांव खाली करने पड़े हैं।
इन सारी कार्यवाहियों तथा ऐसी ही सैंकड़ों अन्य कार्यवाहियों से लगता है कि पाकिस्तान आगे भी रुकने वाला नहीं है। क्या पाकिस्तान भारत को युद्ध के लिये उकसा रहा है? आखिर क्यों? इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले हमें उन कदमों पर भी एक दृष्टि डालनी चाहिए जो भारत ने उठाए हैं और यह भी जानना चाहिए कि उनका परिणाम क्या हुआ ?
सीज फायर का उल्लंघन होने पर भारतीय सेना भी क्रॉस फायरिंग करती है। किसी भी क्षत्र में आतंकियों के होने की सूचना मिलते ही उन्हें ढूंढकर मारा जाता है। 25 दिसम्बर 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक नवाज शरीफ के घर पहुंचकर माहौल को सकारात्मक बनाने का प्रयास किया। आसानी से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री वहां दावत खाने नहीं गए थे अपितु उन्होंने नवाज शरीफ को कठोर शब्दों में धमकी भी दी होगी कि वह अपने देश की हरकतों पर लगाम कसे। 28 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सीमा में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक किया जिसमें आतंकियों के लांचिंग पैड नष्ट किए गए। भारत सरकार ने कूटनीतिक स्तर पर विश्व भर में पाकिस्तान को अलग-थलग करने की मुहिम छेड़ी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान पर भारत में आतंकी गतिविधियां चलाने का आरोप लगाया तथा कहा कि कश्मीर छीनने का उसका सपना कभी पूरा नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को धमकी दी कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते, अतः भारत ने सिंधु जल संधि की समीक्षा शुरु की। पाकिस्तान ने इसे युद्ध की कार्यवाही बताया और भारत के खिलाफ परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकी दी। संधि रद्द होने के डर से पाकिस्तान ने विश्व बैंक का दरवाजा भी खटखटाया। भारत ने नवम्बर 2016 में इस्लामाबाद में होने वाले दक्षेस शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया। बांग्लादेश, अफगानिस्तान एवं भूटान ने भारत के इस कदम का समर्थन किया। भारत ने पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन के दर्जे पर पुनर्विचार करने की घोषणा की। कुलभूषण जाधव के मामले को भारत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले गया।
इन सारी कार्यवाहियों के बावजूद पाकिस्तान अपने रुख पर कायम है जिसे देखकर लगता है कि वह चाहता है कि भारत, पाकिस्तान पर आक्रमण करे और भारत है कि आक्रमण की पहल करने से बच रहा है। आखिर पाकिस्तान और भारत अपने-अपने रुख पर कायम क्यों हैं? इसका उत्तर देना बहुत कठिन नहीं है। पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतें भारत पर परमाणु हमला करना चाहती हैं किंतु उन्हें मालूम है कि ऐसा करके वे भी बचे नहीं रहेंगे क्योंकि वे अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की सहानुभूति खो देंगे। अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की सहानुभूमि उस पक्ष की ओर होगी जिस पर हमला होगा। इसलिये पाकिस्तान चाहता है कि हमले की पहल भारत करे ताकि चीन, रूस और अमरीका तीनों ही अपने-अपने बहाने बनाकर भारत के विरुद्ध हमला बोल दें। पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतें यह भी समझती हैं कि यदि भारत पहल करके पाकिस्तान पर हवाई हमले बोलता है तो पाकिस्तान को भारत पर परमाणु हमला करने का बहाना मिल जाएगा और उसके लिए उसे अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की नाराजगी भी नहीं झेलनी पड़ेगी। यही कारण है कि पाकिस्तान लगातार भारत को उकसा रहा है और भारत सरकार अपने ही देश में अपने देशवासियों की आलोचना सहने के लिए विवश है।
कोई भी देश यह नहीं कहेगा कि वह अमुक कारण से अपने शत्रु पर हमला नहीं कर रहा। भारत भी कभी नहीं कहेगा। कहना भी नहीं चाहिए। हमें अपनी जनता और अपनी सेनाओं का मनोबल सदैव ऊंचा रखना पड़ेगा, राष्ट्र के जीवित रहने का आधार भी यही है किंतु सच्चाई को पहचानना भी होगा कि यदि भारत युद्ध की पहल करता है तो पाकिस्तान द्वारा किए गए परमाणु हमले को रोक पाना संभवतः हमारे लिए संभव नहीं होगा। अब जो परमाणु हमले होंगे उनके सामने हिरोशिमा और नागासाकी फीके पड़ जाएंगे। समय बहुत आगे बढ़ चुका है, तकनीकी बहुत विकराल रूप ले चुकी है। उसकी विध्वंसक शक्ति का अनुमान लगाना भी हमारे लिए कठिन हैं। एक अनुमान है कि भारत की एक तिहाई से दो तिहाई जनसंख्या तक संभावित परमाणु हमलों में या तो मारी जाएगी या रेडिएशन से पीड़ित होकर सिसकती रहेगी जिसका खामियाजा वर्तमान जनसंख्या को ही नहीं, आने वाली कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। एक अनुमान के अनुसार एक परमाणु बम के हमले में लगभग 2.1 करोड़ जनसंख्या एक सप्ताह में मरेगी जो कि पाकिस्तान द्वारा 10 साल में आतंकवादी घटनाओं में मारे गए भारतीयों की संख्या से 2 हजार 2 सौ 21 गुना होगी।
ऐसी स्थिति में क्या भारत को वास्तव में सोच-समझ कर कदम उठाने की आवश्यकता नहीं है। मोदी सरकार वही तो करती आई है। आज संसार के हालात ये हैं कि समझदारी दिखाने में ही समझदारी है। ट्रम्प ने सीरियाई सरकार की सेना पर अचानक हमला बोला किंतु रूस को अपना भेजा ठण्डा रखना पड़ा और वह केवल यह कहकर चुप हो गया कि जो हुआ सो हुआ किंतु अब किया तो मैं भी ठण्ड नहीं रखूंगा। आज चीन, रूस और अमरीका महत्वाकांक्षाओं के घोड़ों पर सवार हैं, इनमें से कौन भारत का मित्र है और कौन शत्रु, इसका निर्णय केवल वह क्षण करेगा जिसमें भारत को वास्तव में किसी मित्र की आवश्यकता होगी। इनमें से कोई भी विशुद्ध रूप से विश्वसनीय नहीं है।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार।

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