धार्मिक ग्रंथों का अपमान क्यों …?

दीपक कुमार दासगुप्ता
हम बचपन से देखते आ रहे हैं कि अदालती कार्रवाई के दौरान कठघरे में खड़ा व्यक्ति किसी न किसी धार्मिक ग्रंथ पर हाथ रख कर कहता है कि मैं जो भी कहूंगा , सच कहूंगा … सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा। अदालतों में इस तरह के हजारों मामले चलते रहते हैं और उनका निपटारा भी होता रहता है। इतना तय है कि मामलों में कोई न कोई पक्ष धार्मिक ग्रंथ की शपथ लेने के बावजूद झूठ बोलता है। मेरे विचार से यह गलत है। अदालत के कठघरे में खड़े होने वालों से धार्मिक ग्रंथ की शपथ नहीं दिलवानी चाहिए। क्योंकि यह आस्था का सवाल है। शपथ लेने के बावजूद झूठ बोलने से धार्मिक ग्रंथ का अपमान होता है। अदालत के कठघरे में उपस्थित होकर झूठी कसम खाने से आदमी को आगे भी झूठ का सहारा लेने की प्रेरणा मिल जाती है। dipak das gupta
उसे लगता है कि जब मैने अदालत में खड़े होकर झूठी कसम खाई और मेरा कुछ भी नहीं बिगड़ा तो मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा। इस तरह बेवजह धार्मिक ग्रंथ व आस्था का मजाक उड़ता रहता है। मेरे विचार से अदालतों में धार्मिक ग्रंथों के बजाय राष्ट्रीय ध्वज पर हाथ रखवा कर शपथ लेनी चाहिए। यह देश – समाज में एक नई शुरूआत होगी। अदालतों में मुजरिमों से राष्ट्रीय ध्वज पर हाथ रखवा कर शपथ लेनी चाहिए कि वह देश के लिए झूठ नहीं बोलेगा। ऐसा करने से एक ओर जहां देश व समाज में धार्मिक ग्रंथों का दुरुपयोग रुकेगा। वहीं राष्ट्रीय ध्वज के प्रति लोगों में प्रेम व जुड़ाव भी मजबूत होगा। अदालत में यह प्रयोग अविलंब शुरू करना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज हर नागरिक के लिए समान महत्व का है। यह नहीं होगा कि मुजरुम का धर्म देख कर उससे ग्रंथों के आधार पर शपथ लिया जाए। यही बात राजनेताओं पर भी लागू होनी चाहिए। राजनेता भी जब शपथ लेते हैं तो उनसे राष्ट्रीय ध्वज पर हाथ रख कर शपथ लेने को कहना चाहिए। इससे राजनेताओं में भी अपने दायित्वों व राष्ट्र के प्रति जागरुकता उत्पन्न होगी। छोटे – बड़े हर किसी के लिए राष्ट्रीय ध्वज ही धार्मिक ग्रंथ के समान होने से देश में नया माहौल तैयार होगा। हर किसी को लगेगा कि राष्ट्रीय ध्वज और देश का सम्मान ही उनके लिए सब कुछ है। राष्ट्र और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान उस पर कलंक के समान होगा। संभव है नई शुरूआत से अदालतों में झूठ बोलने का सिलसिला कुछ कम हो सके।

लेखक वरिष्ठ समाजसेवी और प्रख्यात ज्योतिषी व भविष्यवक्ता हैं।
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