घमण्ड और व्यापार ले डूबेंगे चीनी बौनों को!

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
डॉ. मोहनलाल गुप्ता
चीन जिस तरह से विश्व भर के देशों के साथ घमण्ड भरा व्यवहार कर रहा है, वह चीनी बौनों के लिए तो घातक सिद्ध होने वाला है ही, साथ ही पूरी दुनिया को तबाही की ओर ले जाने वाला है। यह ठीक वैसा ही है जैसे हिटलर का घमण्ड जर्मनी को तथा नेपोलियन बोनापार्ट का घमण्ड फ्रांस को ले डूबा था किंतु उनके आचरण से केवल उनके देश बर्बाद नहीं हुए, पूरी दुनिया में बहुत बड़ी संख्या में मनुष्यों को मौत के मुंह में समा जाना पड़ा।
चीन 1959 में तिब्बत को हड़प चुकने के बाद से नेपाल, लद्दाख, सिक्किम, भूटान तथा अरुणाचल प्रदेश को अपनी पांच अंगुलियां बताता रहा है। इन अंगुलियों को लेकर भारत से उसका सीमा विवाद है जो कभी न सुलझने वाली समस्या का रूप ले चुका है। 1962 में वह अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम को लेकर भारत से दो-दो हाथ कर चुका है। 1975 में जब से सिक्किम, भारत में सम्मिलित हुआ है, चीन, सिक्किम की सीमा को लेकर आए दिन भारत से माथाफोड़ी करता रहता है। वह नेपाल में भारत के विरुद्ध असंतोष उत्पन्न करके, नेपाल के हिन्दू राष्ट्र को समाप्त करवाकर, वहाँ धर्मनिरपेक्ष कम्युनिस्ट शासन स्थापित करवा चुका है। ताइवान को चीन कभी फूटी आंखों से नहीं देख पाया। भूटान में वह डोकलाम क्षेत्र में अवैध घुसपैठ कर रहा है तथा वहां सड़क बनाने का प्रयास कर रहा है।
श्रीलंका के कोलम्बो बंदरगाह में दो पनडुब्बियों को तैनात करने के विषय पर 2014 में हुए समझौते को श्रीलंका द्वारा हाल ही में समाप्त कर दिए जाने के बाद, श्रीलंका के साथ भी चीन के सम्बन्ध खराब हो गए हैं। दक्षिण चीन सागर में अपनी धौंस धुपट्टी जमाने के लिए तैनात किए गये चीनी युद्धपोतों ने अमरीका को अपने समुद्री लड़ाकू पोत दक्षिण चीन सागर में भेजने के लिए उकसाया है। विएतनाम और ऑस्ट्रेलिया, चीनी व्यवहार से बुरी तरह से चिढ़े हुए हैं।
चीन सिल्क रूट निर्माण के नाम पर ‘वन बेल्ट वन रोड’ के फार्मूले पर काम कर रहा है। इसके माध्यम से चीन, एशिया और यूरोप होते हुए अफ्रीकी तटों तक स्थित लगभग 60 देशों में अपना व्यापार फैलाने के बड़े एजेण्डे पर कार्य कर रहा है। स्पेन के मैड्रिड शहर के लिए चीन ने वर्ष 2014 में मालगाड़ी आरम्भ कर दी थी जिसके माध्यम से उसका सामान यूरोपीय देशों को पहुंचाया जा रहा है।
चीनी अधिकृत काश्मीर के जरिए चीन, पाकिस्तान तक सड़क बना चुका है ताकि पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक उसे सीधा सड़क मार्ग उपलब्ध हो सके। घोषित रूप में चीन ने ग्वादर बंदरगाह का विकास व्यापारिक उद्देश्यों के लिए किया है जिसके माध्यम से वह विश्व भर के बाजारों में अपना माल थोपना चाहता है किंतु आवश्यकता पड़ने पर वह ग्वादर बंदरगाह में चीनी युद्धपोत तैनात करके हिन्द महासागर, फारस की खाड़ी, मध्य-पूर्व के देशों तथा हॉर्न ऑफ अफ्रीकी रीजन्स तक दबाव बना सकता है। यह स्थिति भारत की सुरक्षा के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होने वाली है। इसलिए भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह का विकास करके समुद्र में बढ़ती हुई चीनी प्रगति को अवरुद्ध करने का प्रयास किया है।
हाल ही में भूटान के डोकलाम क्षेत्र में चीनी बौनों और भारतीय सैनिकों के बीच हुई हाथापाई में ऊपरी तौर पर भले ही सीमा विवाद दिखाई देता है किंतु इसका असली कारण भारत में 1 जुलाई से लागू किया गया जीएसटी जान पड़ता है। चीन, भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उठाए गए अनेक कदमों से तिलमिलाया हुआ है। जापान, अमरीका और इजराइल के साथ बढ़ती हुई भारतीय दोस्ती, भारत द्वारा भारी मात्रा में खरीदी गई युद्ध सामग्री, मिसाइलें एवं युद्ध विमान, मेक इन इण्डिया अभियान तथा श्रीलंका पर प्रभाव डालकर चीनी युद्ध-पोतों की कोलम्बो में तैनाती पर रोक से तो चीन, भारत से नाराज था ही, जीएसटी के माध्यम से चीनी सामग्री पर 38 प्रतिशत कर लगाए जाने से चीन बुरी तरह झल्ला गया है।
आज चीन की हालत ऐसी है कि उसे युद्ध के मैदानों में हराने की आवश्यकता नहीं है, उसके व्यापारिक हितों को नुक्सान पहुंचाकर उसकी कमर तोड़ी जा सकती है। चीन ने अपने विशालतम मानव संसाधन को काम दिया, नदियों को रोककर विश्व के सबसे बड़े बांध बनाए, बांधों से बिजली बनाई, बिजली से हजारों कारखाने खोले तथा बड़ी मात्रा में सैंकड़ों प्रकार के उत्पाद तैयार किए। यहां तक तो सब ठीक रहा किंतु आगे की डगर बहुत कठिन है। इस माल को खपाने के लिए पूरे संसार को चीन, बाजार के रूप में देख रहा है। इस बाजार पर कब्जा करने के लिए वह हर हथकण्डा अपना रहा है। नरेन्द्र मोदी ने जीएसटी के माध्यम से चीन की इसी नस को दबाया है। अब चीन अपना माल चोरी-छिपे भारत को नहीं भेज सकेगा क्योंकि प्रत्येक भारतीय व्यापारी के लिए उस माल को जीएसटी के माध्यम से बेचना अनिवार्य हो गया है। इस माल पर अनिवार्य रूप से 38 प्रतिशत का कर लगेगा। इस कारण भारतीय कारखानों में तैयार उत्पादों के मुकाबले चीनी माल अधिक सस्ता नहीं रह जाएगा और वह भारतीय बाजार में टिक नहीं पाएगा।
इसी बौखलाहट में चीन, भारत को 1962 की याद दिला रहा है। हालांकि चीन को यह समझ में नहीं आता कि यदि 1962 में जवाहरलाल नेहरू की जगह लालबहादुर शास्त्री या इंदिरा गांधी होती तो चीन सपने में भी 1962 को याद नहीं करता। भारत 1962 भूला नहीं है किंतु चीन को भी 1967 नहीं भूलना चाहिए जब इंदिरा गांधी के समय चीनी चूहों को भारतीय शेरों ने दूर तक खदेड़ दिया था। अपने देश की सीमाओं और व्यापार को फैलाने के लिए चीनी बौने पूरी दुनिया में घमण्ड भरा व्यवहार कर रहे हैं, यही घमण्ड और व्यापार चीन को ले डूबे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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