विश्व भर के लिए लाइलाज बीमारी बन चुका चीन उन्मादी बोल बोल रहा है। भारत के साथ-साथ, मंगोलिया, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, बर्मा, लाओस, विएतनाम, उत्तरी कोरिया से चीन की थल सीमाएं मिलती हैं। जापान, फिलिपीन्स, दक्षिण कोरिया तथा ताइवान से उसकी समुद्री सीमाएं मिलती हैं। इन सभी देशों से उसका सीमा विवाद है। तिब्बत को वह हड़प कर चुका है। भूटान पर उसकी कुदृष्टि है। पाकिस्तान से वह भारतीय काश्मीर का बड़ा हिस्सा ले चुका है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर होते हुए वह, अरब सागर के ग्वादर बंदरगाह तक सड़क बना चुका है। नेपाल में उसकी सड़क मौजूद है तथा यूरोप के मैड्रिड शहर तक उसकी रेललाइन जाती है। हिंद महासागर में उसने कृत्रिम द्वीप बनाकर अपनी मिसाइलें और युद्धपोत खड़े कर दिए हैं। पाकिस्तान तथा श्रीलंका में वह अपने बंदरगाह बना चुका है। भारत के सिक्किम, लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश को वह अपनी पांच में से तीन अंगुलियां बताता है। अक्साईचिन पर भी उसने दांत गढ़ा रखे हैं। जिन देशों से उसकी सीमा नहीं मिलती, उनसे भी चीन का विवाद है। यदि सारी दुनिया की धरती चीन को दे दी जाए तो भी चीन का उन्माद समाप्त नहीं होगा।
यह बौना चीनी दैत्य पूरी दुनिया पर अपनी दादागिरि थोप रहा है। जब भी भारत शक्ति अर्जन का प्रयास करता है, लाल चीनी आंखें और भी अधिक लाल हो जाती हैं। जब भारत ने तिब्बत के दलाई लामा को शरण दी, तब उसने भारत पर हथियार उठाए। 1971 में भारत -पाकिस्तान युद्ध हुआ, तब चीन ने पाकिस्तान को सहायता दी। 1998 में भारत ने पोकरण परमाणु बम विस्फोट किया, तब चीन ने आंखें तरेरीं। जवाहरलाल नेहरू की कमजोरी को चीन ने भारत की कमजोरी समझ लिया किंतु इंदिरा गांधी ने चीन की कभी परवाह नहीं की इसलिए चीन अपनी मांद में दुबका रहा। राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी तथा नरेन्द्र मोदी ने चीन के साथ शांति और सहयोग की नीति अपनाई तो चीन को फिर से गलत फहमी उत्पन्न हो गई।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि यदि भारत और चीन के बीच युद्ध होगा तो वह द्विपक्षीय नहीं रह जाएगा। पाकिस्तान निश्चित रूप से भारत पर टूट कर पड़ेगा। ट्रम्प के नेतृत्व में अमरीका, पुतिन के नेतृत्व में रूस और नेतन्याहू के नेतृत्व में इजराइल भी चुप नहीं बैठेंगे। अरब देश, इजराइल से अपनी खुन्नस निकालने के लिए लपकेंगे और 1945 के बाद से शांति की राह पर चल रहा जापान भी प्रधानमंत्री शिन्हो आबे के नेतृत्व में हिन्द महासागर में अपनी शक्ति दिखाएगा और चीन से अपना सीमा विवाद हल करने का प्रयास करेगा। कट्टर सुन्नी देश इस बीच, शिया देश ईरान को निबटाने का प्रयास करते देखे जा सकते हैं।
विश्व के और भी कई देश, विश्व भर में आरम्भ हई जंग में कूदेंगे और अपनी निर्दोष जनता की आहुति देंगे। प्रथम विश्वयुद्ध की त्रासदी को भुगतने के बाद भी 1945 में विश्व शक्तियां परमाणु बम का उपयोग करने से स्वयं को नहीं रोक पाई थीं। 2017 में शक्ति और समृद्धि के घमण्ड से चूर दुनिया लाखों गुना शक्तिशाली हाइड्रोजन बमों का उपयोग करने से स्वयं को कैसे रोक पाएगी। सरलता से अनुमान लगाया जा सकता है कि चीन के उन्माद का अंत कहाँ जाकर होगा तथा मानवता को चीन के उन्मादी बोलों की कितनी कीमती चुकानी होगी!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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