किसका रक्त निर्दोष है आतंकवादियों का या पत्थरबाजों का

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
डॉ. मोहनलाल गुप्ता
राजनीति बुरी चीज नहीं है। युगों-युगों से समाज और राष्ट्र, राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत रहते आए हैं। हर युग में महापुरुष, राजनीति का अवलम्बन लेकर, मानवता के कल्याण के लिए प्रयासरत रहते हैं। राजनीति करने वाले लोग देश को जागृत रखने वाले मंत्रदृष्टा एवं पुरोहित होते हैं। इसीलिए भारतीय संस्कृति में कहा गया है- वयं राष्ट्रे पुरोहितं जागृयाम्। राजनीति से अपेक्षा की जाती है कि वह मानवता और समाज के व्यापक हित में काम करे। यदि क्षुद्र युग-बोध के कारण राजनीति का इतना बड़ा उद्देश्य बनाए न रखा जा सके, तो भी राष्ट्रहित की अपेक्षा तो इससे की ही जाती है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि हर युग में कुछ लोग राजनीति को इतना उथला और गिरा हुआ बना देते हैं कि राजनीति पर अंगुली उठने लगती है, कोई इसे वेश्या कहता है तो कोई इसे त्याज्य बताकर आजीवन इससे दूर रहता है। यह देखना चिंता-जनक है कि भारतीय राजनीति में आज उन लोगों की संख्या बढ़ गई है जो इसे समाज को सुखी बनाने का माध्यम न मानकर सत्ता हड़पने और स्वार्थ सिद्धि का माध्यम मानते हैं।
राजनीति भले ही कितनी ही गिर जाए, हर युग की तरह आज भी राष्ट्र, समाज एवं व्यक्ति की समस्याओं का हल, देश की राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत होना है। यदि आज के राजनीतिज्ञ इस बात को नहीं समझेंगे तो वे राजनीति के परिदृश्य से एकाएक ही विलुप्त हो जाएंगे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय राजनीति को देखकर दुख होता है। एक ओर चीन भारत की सीमाओं पर गरज रहा है, दूसरी ओर पाकिस्तान भयानक खूनी खेल में संलग्न है और तीसरी ओर कश्मीर के युवक अपने ही देश की सेना के विरुद्ध घोषित युद्ध छेड़े हुए है। ऐसी विकट परिस्थितियों में भी देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस जिसके नेतृत्व में देश का स्वतंत्रता संग्राम सफल हुआ, देश की वर्तमान सरकार को बदनाम करने और जनमानस में उसके विरुद्ध उद्वेलन उत्पन्न करने में दिन-रात लगी हुई है। क्या देश को इसीलिए स्वतंत्र कराया गया था कि अनंतकाल तक केवल कांग्रेस ही देश की सत्ता में बनी रहे! क्या वह शांति और सकारात्मकता के साथ विपक्ष में बैठकर जनता की सेवा नहीं कर सकती!
क्यों कांग्रेस यह नहीं स्वीकार कर पा रही कि देश की जनता ने उन्हें अब विपक्ष में बैठने के लिए कहा है तथा जो पार्टी सरकार चला रही है उसे पूरे देश की जनता ने प्रबल बहुमत से चुना है! एक समय था जब कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने प्रतिद्वंद्वी को चुनावों के समय मौत का सौदागर कहा और उसका खामियाजा भुगता किंतु अब तो ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस ने देश की सत्ता को येन-केन प्रकरेण छीनने के लिए सरकार से युद्ध छेड़ रखा है! कांग्रेसी नेताओं द्वारा हर समय देश की सत्तारूढ़ पार्टी को गरिआया जा रहा है। यहाँ तक कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री के लिए लिखा गया है कि कश्मीर में गिरने वाला निर्दोष रक्त, नरेन्द्र मोदी का व्यक्तिगत लाभ है तथा भारत का नुक्सान है। क्या ऐसा लिखते समय, उनकी अंर्तआत्मा ने एक बार भी चेताया नहीं कि विरोधी पर आक्रमण करने के लिए इतना नीचे मत गिरो! देश के प्रधानमंत्री पर ऐसा मिथ्या एवं घिनौना आरोप मत लगाओ!
देश के भीतर ही जब ऐसा नारकीय दृश्य बनाने का प्रयास किया जाएगा कि देश का प्रधानमंत्री अपने स्वार्थ के लिए देश के निर्दोष नागरिकों का रक्त बहा रहा है, तो देश के शत्रुओं का कार्य कितना आसान हो जाएगा! क्या विपक्षी पार्टी के उपाध्यक्ष अपने द्वारा लिखे गए शब्दों का अर्थ भी समझते हैं! वे किसे निर्दोष रक्त बता रहे हैं, आतंकवादियों को, अलगाववादियों को या पत्थरबाजों को! नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कहकर जिस पार्टी ने देश की सत्ता गंवा दी, जिस पार्टी के नेता मणिशंकर अय्यर देश के दुश्मनों से गले मिलते हुए पकड़े गए और पाकिस्तान में जाकर भीख मांगते हुए दिखाई दिए कि नरेन्द्र मोदी को हटाकर हमारी पार्टी की सरकार लाओ, क्या वे पाकिस्तान को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसा रहे हैं। किस नैतिक साहस के सहारे वे पाकिस्तान की सरकार को नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ उकसाने का षड़यंत्र रच रहे हैं! क्या कांग्रेस को अब भी समझ में नहीं आया कि भारत की जनता को घिनौनी बातें अच्छी नहीं लगतीं। यह देश गद्दारों को पसंद नहीं करता। गालियों की भाषा, चुनावी रैलियों में तालियां पिटवा लेती है किंतु मतपेटी में वोट नहीं डलवा पाती।
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने यहाँ तक कहा है कि नरेन्द्र मोदी सरकार की नीतियों ने काश्मीर को आतंकवादियों की भूमि बना दिया है! हैरानी होती है, कौन देता है विपक्षी उपाध्यक्ष को ऐसे घटिया शब्दों का प्रयोग करने की सलाह! क्या पार्टी के भीतर कोई देखता भी है कि उनके उपाध्यक्ष मीडिया में क्या कह अथवा लिख रहे हैं! जब श्रीमती इंदिरा गांधी के समय देश पर शत्रु ने आक्रमण किया था, तब के विपक्षी दल जनसंघ ने महाभारत के श्लोक को उद्धृत करते हुए कहा था- वयं पंचाधिकम् शतम्। अर्थात् राष्ट्र पर आई विपत्ति में आप सौ भाई ही नहीं हैं, हम पांच भाई भी आपके साथ हैं। क्या आज की कांग्रेस में इतना भी नैतिक साहस नहीं है कि काश्मीर समस्या पर वह देश की सरकार का साथ दे!
क्या कांग्रेस यह समझती है कि देश की जनता को काश्मीर समस्या का इतिहास ज्ञात नहीं है! देश अच्छी तरह जानता है कि 1947 में काश्मीर के राजा हरिसिंह ने भारत की अन्य 562 रियासतों की तरह भारत में मिलने की इच्छा व्यक्त की थी किंतु जवाहरलाल नेहरू ने काश्मीर में मुस्लिम जनसंख्या का हवाला देते हुए हरिसिंह का प्रस्ताव यह कहकर नकार दिया था कि इस प्रस्ताव में शेख अब्दुल्ला की सहमति आवश्यक है। इसके बाद नेहरू और अब्दुल्ला की बैठक हुई जिसमें काश्मीर में धारा 307 तथा अन्य प्रावधान हुए जिन्होंने काश्मीर को भारत के लिए नासूर बना दिया। ये प्रावधान कितने विषैले थे, यह बात भी किससे छिपी है!
भारत की जनता देश के भीतर और देश की सीमाओं पर शांति चाहती है। कांग्रेस को यह समय धैर्य पूर्वक जनता की सेवा करने में व्यतीत करना चाहिए। राजनीति का लक्ष्य सत्ता प्राप्त करना नहीं होना चाहिए अपितु जन-मन की सेवा करके उसे शांति और समृद्धि देने का होना चाहिए। जनता कभी भी नहीं चाहेगी कि कोई भी राजनीतिक दल सत्ता पाने की अंधी दौड़ में देश की शांति भंग करे!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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