असली वंशज कौन?

रास बिहारी गौड़
रास बिहारी गौड़
हरिवंशराय बच्चन की कविता को लेकर जन्मा विवाद कॉपीराईट, आर्थिक उपादान, प्रचार, वैधानिकता, सम्मोहित आकर्षण, इत्यादि में उलझकर ये बात भूल रहा है कि कवि की कविता यदि उसकी विरासत है तो उसका असली वारिस कौन होना चाहिए? जैविक वंशज या काव्य-परम्परा का वाहक..?
प्रश्न ये नहीं है कि इस विवाद के पात्र कौन है।एक ओर सदी का महानायक अभिताभ बच्चन जिसे देखकर एक पूरी पीड़ी आक्रोश की जुबान सीखती है ,दूसरी ओर लोकप्रिय कविता का नायक जिसने युवाओं के लिए काव्य-मंचो पर नया मुहावरा गढा या फिर एक अभिनेता जिसने अपने अभिनय से सभी राजनैतिक दलों के हित साथे , दूसरी ओर एक कवि जिसने कहीं राजनैतिक झंडे को पकड़ कर तिरंगे के गीत गाए। व्यक्तिगत उपलब्धियां, लोकप्रियता, आचरण, एक तरफ रखते हुए, हमे कवि की विरासत पर अधिकार के बारे में सोचना होगा।
हरिवंश राय बच्चन की पैतृक संपत्ति, नाम, रिश्ते, आदि पर निश्चित ही अभिताभजी का अधिकार होगा, लेकिन कवि की कविता पर …? हम सब ही मधुशाला, राम की शक्ति पूजा, रश्मि-रथी, गाते रहे हैं। खुसरो, तुलसी, कबीर , ग़ालिब, टैगोर संस्कृति की शिराओं में रक्त बनकर बहते रहे हैं। कालिदास के औपन्यासिक पात्र के नाम पर ये देश बसा है। मीरा ,सूर, फरीद, नानक को गाने वाले उनके कौन हैं? हम तीन या चार पीढ़ी पुराने जैविक पूर्वज का नाम तक नहीं जानते, किन्तु सदियों पुराने कवि को पढ़ते हुए, लिखते हुए, गुनगुनाते हुए, अपना पूर्वज मानते आये हैं। कविता एक परम्परा है जो सदियों से कलम के रास्ते अपना परिवार बना रही है। उस बहाव को आगे ले जाना उसके उन वंशजो का दायित्व हैं जिन्होंने शब्द के डीएनए को अपने भीतर सहेजा है। हाँ! कृति अथवा नाम से की गई छेड़छाड़ पर किसी को भी आपत्ति का पूरा अधिकार है। लेकिन शब्द की संपत्ति को जैविक वंशजों द्वारा निजी मिलकियत मानना समाज के साथ- साथ स्वम से भी छलना है। क्या कोई कवि अपने परिवार के लिए लिखता है? जाति, समुदाय या व्यक्ति-विशेष के लिए लिखता है? निश्चित ही नहीं। वह देश, समाज, मानव- कल्याण, लोक रंजन, सरोकार, इत्यादि के लिए लिखता है। तो फिर कविता को अपने गंतव्य तक पहुँचने से रोकने का अधिकार किसी को भी कैसे हो सकता है, भले ही वह उसका नाम लेकर ही दुनियां में क्यूँ ना आया हो।
सम्भवतः इस काल- खंड में लोकप्रियता के अपने उपादान और उम्र हो, किन्तु कविता- समय की कोई परिधि नहीं होती। अभिताभ बच्चन की भौतिक सम्पति पर अभिषेक का हक़ हो सकता है, लेकिन अभिनय शैली या मिमिक्री पर हर उस अभिनेता का अधिकार होगा जिसके भीतर अभिनय कला करवट ले रही है। मतलब की कला का वारिस कलाकार ही होगा ठीक वैसे जैसे किसी कविता का वारिश कोई कवि होगा।
प्रयुक्त विवाद में आर्थिकी को लेकर महानायक अपना हिस्सा मांग सकते थे, पर कविता के तर्पण पक्ष को उन्हें हतोत्साहित किया , विशेषकर तब जब एक पूरी पीढ़ी कविता से दूर जा रही हो और कोई कवि मनोरंजन के सतही धरातल को तोड़कर ” महाकवि” सरीखे सरोकारों से जुड़ते हुए अपनी माटी की शाब्दिक-गंध फैलाने को आतुर हो।
बहरहाल,बच्चन साहब की आपत्ति या प्रतिउत्तर में डा कुमार के क्या निहितार्थ हैं, नहीं पता, लेकिन इस बहाने समाज ये जान पाया कि कवि की कविता कितनी बड़ी पूंजी होती है जिसके सामने यश, वैभव, अकूत सम्पदा वाला महानायक पुत्र भी निरीह होता है क्योकिं वह कविता के सही वारिसों को नहीं पहचानता।
रास बिहारी गौड़

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