राजस्थान में राजे के कार्यकाल में जब भी कोई सामाजिक आन्दोलन हुआ तो राजे सदैव उससे निपटने में असफल रहीं, चाहे गुर्जर आन्दोलन हो, चाहे मीणा समाज का आन्दोलन हो या फिर रावला घडसाना हो, चाहे भरतपुर का जाट आन्दोलन हो, चाहे किसान आन्दोलन हो या मेवाड़ का आदिवासी आन्दोलन हो या जयपुर के राजघराने का सिटी पैलेस का आन्दोलन हो या जयपुर के सार्वजनिक मार्गों पर मन्दिर तोड़ने का आन्दोलन हो या वर्तमान में नागौर जिले के कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल के प्रकरण का रावणाराजपूत व राजपूत समाज का आन्दोलन हो।
प्रारम्भ में गुर्जर आन्दोलन को राजे ने बड़े हलके से लिया और जब निपटने में असफल होने लगीं उनका सारा तन्त्र फेल हो गया, तो फिर उन्होंने परम आदरणीय सुनील अरोड़ा साहब को बीच में डाला कि कैसे भी आन्दोलन को निपटाओ, शुरू में तो अरोड़ा साहब से बात तक नहीं की, जब फेल होने लगीं तो अरोड़ा साहब याद आए और उन्होंने अपनी योग्यता से निपटा भी दिया परन्तु फिर अपने अहम में आ गईं और इस हद तक राजीनामे किये कि किरोड़ी सिंह बैसला को ही भाजपा का टोंक से सांसद का टिकिट तक दे दिया, फिर भी आज तक गुर्जर आन्दोलन नहीं निपटा और वसुन्धरा जी हरदम की तरह इस आन्दोलन में बैक फुट पर आ गईं।
मीणा आन्दोलन में डा0ॅ किरोड़ी मीणा ने सरकार के झाग निकाल दिए और आखरी समय तक डॉ0 किरोड़ी को मनाती रहीं और अब तो सांसद हरीश मीणा जी, आई.पी.एस. को बीच में डालकर समझौता वार्ताएं दो बार कर चुकी हैं परन्तु डॉ0 किरोड़ी काबू ही नहीं आ रहे हैं।
इसी प्रकार जयपुर में सिटी पैलेस के दरवाजे बन्द करवा दिए और जे.डी.सी. शिखर अग्रवाल, आई.ए.एस को बीकानेर जैसा फ्री-हैण्ड दे दिया -‘‘कमाओ खाओ योजना के तहत‘‘ परन्तु जैसे ही जयपुर राजघराने के समर्थन में लोगों ने रैली निकाली तो अपने स्वभाव के मुताबिक राजे तुरन्त बैक फुट पर आईं और दरवाजे खोल दिए और जयपुर राजघराने जाकर समझौता कर आईं।
इसी प्रकार नागौर के गैंगस्टर आनंदपाल प्रकरण में भी 24 दिन तक कोई फैसला नहीं किया, बेचारे गृहमन्त्री जी की जो दुर्दशा की, वह सार्वजनिक जीवन में किसी मन्त्री की कभी नहीं हुई और उनको ना घर का, ना घाट का छोड़ा, सांवराद की रैली से जो जन आक्रोश उभरा और भाजपा के राजपूत विधायकों, मंत्रीयों, सांसदों ने जैसे ही तेवर बदले और दिल्ली में बैठे राजपूत गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आंख दिखाई और अमित शाह की जयपुर 3 दिन की यात्रा सामने आई, तो एक ही मिनट में रावणाराजपूतों की सारी मांगें मान ली और एकआध अपनी तरफ से भी उनको खुश करने के लिये जोड़ दी और राजस्थान की राजनीति व पुलिस के इतिहास में वह दिन भविष्य में ‘‘काला दिन‘‘ के रूप में मनाया जाएगा, जिस दिन समझौता पत्र सरकार की कमेटी व रावणाराजपूत व राजपूत समाज के मध्य हस्ताक्षरित हुआ।
इसके विपरीत अशोक गहलोत जी के कार्यकाल में हुए कर्मचारी आन्दोलन, वकील आन्दोलन या अन्य कोई भी आन्दोलन तथा स्व0 बाबोसा भैरूसिंह जी के कार्यकाल में हुए किसी भी आन्दोलन ने भैरूसिंह जी को कभी विचलित नहीं किया और वह सदा अपने निर्णयों पर अडिग रहे और इसी प्रकार स्व0 हरदेव जोशी जी दिवराला सती काण्ड में वे कभी विचलित नहीं हुए जबकि राजस्थान के सारे महत्वपूर्ण आन्दोलन राजपूत समाज ने ही किये परन्तु ऐसी सफलता जो वसुन्धरा जी के राज में राजपूत समाज को मिली और जो सरकार ने मुंह की खाई, पूर्व में कभी भी ऐसा नहीं हुआ, कोई भी पूर्ववर्ती सरकार इस तरह से इतनी जल्दी बैक फुट पर नहीं आती, जितनी जल्दी वसुन्धरा जी घबरा कर पल्ला झाड़ लेती हैं और राजस्थान के किसी भी वर्ग के आन्दोलन व सामाजिक आन्दोलन को झेल ही नहीं पातीं, शुरू में तो बड़ा साहस दिखातीं हैं परन्तु बाद में रणछोड़दास बन जातीं हैं, उसका मूल कारण है कि चुनाव में ये गुर्जरों की समधन, जाटों की बहू, राजपूतों की बेटी बनने का जो स्वांग भरती हैं उससे यह किसी की भी नहीं बन पातीं और विफल हो जाती हैं, और राज्य में बहुरूपीयेपन का एक गलत संदेश जाता है जो कि राजस्थान सरकार, राजस्थान पुलिस और भाजपा की सरकार के लिए अत्यन्त ही दुर्भाग्यपूर्ण है, नौकरशाही हताश, निराश होकर तमाश देखती रहती है और कहती है कि ‘‘देख तेरे राजस्थान की हालत क्या हो गई मोदी महान, कितना पिछड़ गया राजस्थान‘‘।
आपका अपना राजेश टंडन, वकील, अजमेर।