सरकार की नजर में मोत की कीमत में इतना फर्क क्यो

हेमेन्द्र सोनी
हेमेन्द्र सोनी
सरकारी आंकड़ों का आंकलन किया जाये तो जब भी देश मे किसी की मोत होती है और उस पर सरकारी मुआवजे का एलान होता है तो उस होने वाले एलान मे मुआवज़ा राशी का बहुत बड़ा अंतर देखने को मिलता है ।
सरकार की नजर में अलग अलग प्रकार से हुई मौत की कीमत अलग अलग तय की जाती है ।
“क्या सरकार की नजर में मौत कई प्रकार की होती है ???”
जैसे सरकारी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मोत, किसान की खुदकुशी से मौत, पानी मे डूबने से मौत, बाढ़ ओर आकाशीय बिजली से मौत, बिजली के करंट से मौत, दुर्घटना में मौत, हत्या से मौत, भूख से मौत, साम्प्रदायिक झगड़े में मौत, कर्फ्यू में मौत, आतंकवाद के हमले में मौत, ट्रैन दुर्घटना में मौत, हवाईजहाज दुर्घटना में मौत, रोड रेजिंग में मौत, रेप पीड़िता की हत्या या मानसिक तनाव से मौत, अस्पताल में डॉक्टर की लापरवाही से मौत, बाढ़ और भूकंप से मोत, नाव इलेक्ट्रिक बोट, या पानी के जहाज में दुर्घटना से मौत या किसी अन्य प्रकार से अकाल मौत होती है ।
जैसे ही मौत होती है सरकार की ओर से मुवावाजा देने के लिए राजनीति शुरू हो जाती है ओर फिर मुवावाज़ा तय करने के लिए होता है राजनीतिक फायदे का आंकलन, जातिगत समीकरण का आंकलन, सामाजिक प्रतिष्ठा का आंकलन, समाज के बाहुबलियों से होने वाले नफा नुकसान का आंकलन, की मरने वाला ओर उसका परिवार का अपना कितना सामाजिक और राजनीतिक रुतबा रखता है, उसके संपर्को के तार कहा कहा से जुड़े है, इस आंकलन में कभी कभी धार्मिक भेदभाव के आरोप भी लगते है ।
बड़ी शर्म की बात है हमारी सरकारों के लिए की एक केवल मोत जिसका नाम केवल मोत है उसकी अलग अलग कीमत लगाई जाती है । आज तक सरकार एक मोत की कीमत को तय नही कर पाई है की परिवार में असामयिक मोत पर मुवावजे का मरहम लगाने के लिए कोई निश्चित सम्मानजनक मुआवज़ा राशि की घोषणा नही कर पाई।
एक उदाहरण से आप समझ सकते है कि राजस्थान मे बाढ़ से मरने वालो को 1 लाख, गुजरात मे 2 से 3 लाख, ओर उत्तर प्रदेश में रेल दुर्घटना में मरने वालों को 3 लाख पचास हजार, केरल उड़ीसा तमिल, राजस्थान, महारष्ट्र, बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि में किसानों की मौत पर अलग अलग राज्यो में अलग अलग मुवावाज़ा तय किया जाता है । नक्सल वाद या कश्मीर या ओर कही आतंकवाद के शिकार पीड़ितों को अलग अलग राज्यो में अलग मुवावाज़ा तय किया जाता है ।
ऐसा क्यो??? क्या मोत सिर्फ मोत नही होती फिर क्यों अलग अलग प्रकार से हुई मोत का अलग अलग सरकारों ओर संस्थाओ द्वारा अलग अलग मुवावाज़ा राशि की घोषणा की जाती है ओर कभी कभी तो राजनीतिक फायदों का आंकलन इस प्रकार किया जाता है कि उस के परिवार वालो को सरकारी नोकरी तक दे दी जाती है ।
यह भेदभाव नही तो ओर क्या है???
केंद्र सरकार को चाहिए कि मोत के समय दिए जाने वाले मुवावजे की एक निश्चित राशि तय की जानी चाहिए । इसके लिए एक केंद्रीय नीति बनानी चाहिए जिससे एक समान मुवावजे की घोषणा की जा सके ओर जिससे कि उसके परिवार वाले सम्मान जनक जीवन जी सके ।
http://beawardailynews.com/mot-kaa-muaavja/
*हेमेन्द्र सोनी @ BDN जिला अजमेर*

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